उच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में सोमवार को उनपर एक रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने कहा कि यदि वह इसे 15 सितंबर तक जमा नहीं कराते हैं तो उन्हें तीन महीने की जेल और तीन साल तक प्रैक्टिस करने से रोक दिया जाएगा। यह फैसला न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया।
Supreme Court imposes a fine of Re 1 fine on Prashant Bhushan. In case of default, he will be barred from practising for 3 years & will be imprisoned of 3 months https://t.co/0lMbqiizBb
— ANI (@ANI) August 31, 2020
इससे पहले अदालत ने 25 अगस्त को उनकी सजा पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। प्रशांत भूषण को सजा सुनाने के मुद्दे पर शीर्ष अदालत ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से राय मांगी थी। जिस पर वेणुगोपाल ने कहा था कि प्रशांत भूषण को चेतावनी देकर छोड़ देना चाहिए। बता दें कि वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट के लिए सर्वोच्च न्यायालय से माफी मांगने से इनकार कर दिया था।
25 अगस्त को अदालत ने सुरक्षित रख लिया था फैसला
शीर्ष अदालत 25 अगस्त को वकील प्रशांत भूषण से उनके द्वारा उच्चतम न्यायालय और न्यायाधीशों के बारे में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों पर माफी मंगवाने में सफल नहीं हो सका था। अदालत ने बीते मंगलवार को अवमानना में दोषी ठहराए गए भूषण की सजा पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए अफसोस जताया कि जजों की निंदा की जाती है। उनके परिवारवालों को अपमानित किया जाता है और वह बोल तक नहीं सकते।
क्या है पूरा मामला
22 जून को वरिष्ठ वकील ने अदालत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे और चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को लेकर टिप्पणी की थी। इसके बाद 27 जून के ट्वीट में प्रशांत भूषण ने सर्वोच्च न्यायालय के छह साल के कामकाज को लेकर टिप्पणी की थी। इन ट्वीट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए अदालत ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी।
अदालत ने उन्हें नोटिस भेजा था। इसके जवाब में भूषण ने कहा था कि सीजेआई की आलोचना करना उच्चतम न्यायालय की गरिमा को कम नहीं करता है। उन्होंने कहा था कि पूर्व सीजेआई को लेकर किए गए ट्वीट के पीछे मेरी एक सोच है, जो बेशक अप्रिय लगे लेकिन अवमानना नहीं है।