शहर की मुख्य सड़क हो या गली मोहल्ले, आए दिन शहरवासी जाम में फंसे रहे। किसी की ट्रेन छूटी तो कोई समय पर कार्यालय नहीं पहुंच पाया। जाम में फंसे स्कूली बच्चे बिलखते रहे तो एम्बुलेंस में सवार मरीज जीवन-मौत से जूझते रहे। वाहन सड़कों पर सरकते नजर आए तो पैदल यात्री व्यवस्था को कोसते रहे। ऐसी स्थिति हर दिन होती है।
शहरवासियों को जाम से मुक्ति दिलाने की पहल साल दर साल होती रही, लेकिन सफलता नहीं मिली। यातायात व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पा रही है। वन-वे व्यवस्था लागू की गई, चौक-चौराहों एवं गलियों के मोड़ पर जवान खड़े किए गए। डिवाइडर बनवाए गए, लेकिन जाम के मूल कारणों की अनदेखी कर दी गई। परिणाम, समस्या जस की तस है।
ये हैं जाम के झाम
-अतिक्रमण के कारण सिमट चुकी हैं शहर की सड़कें और चौक-चौराहे
-पार्किंग स्थलों के अभाव में सड़क पर खड़ा किए जाते हैं वाहन
-यातायात नियंत्रण के बने कानून का नहीं हो रहा सख्ती से पालन
-बेवजह सड़क पर खड़े टेलीफोन के खंभे
-बीच रोड पर खड़ा विद्युत पोल
-सड़क किनारे एवं बीच में लगी स्ट्रीट लाइट
-यातायात नियंत्रण के लिए बने ट्रैफिक पोस्ट फल एवं फूल की दुकानों में तब्दील
-लंबे समय से मांग के बावजूद ट्रैफिक डीएसपी की नियुक्ति नहीं
-नो इंट्री के बावजूद शहर में वाहनों का प्रवेश
-सड़क किनारे बेतरतीब तरीके से लगे होर्डिंग
-जगह-जगह सड़क पर लगे तोरणद्वार
-पाइपलाइन बिछाने के नाम पर पीएचईडी द्वारा काटी गई सड़क
-सड़क पर डाला गया घर का मलबा
सिमट रहीं सड़कें, बढ़ रहे वाहन
शहर की आबादी बढ़ रही है। बड़े-बड़े मॉल-मार्केट तथा अपार्टमेंट बन रहे हैं। वाहनों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। शहर की सड़कों पर एक लाख से अधिक दोपहिया, 25 हजार से अधिक थ्री व फोरव्हीलर तथा पांच हजार से अधिक रिक्शा समेत प्रतिदिन पांच से सात लाख लोगों का दबाव है। इसके विपरीत अतिक्रमणकारियों एवं अवैध पार्किंग के कारण सड़कों की चौड़ाई लगातार घट रही है। ऐसे में सड़क पर वाहन दौडऩे की जगह सरक रहे हैं।
भीड़ में हांफ जाती है ‘व्यवस्था’ यहां प्रतिदिन हजारों छोटे-बड़े वाहन सड़क पर उतरते हैं। लेकिन, इसके लिए बना ट्रैफिक सिस्टम पूरी तरह से कमजोर है। नतीजा, भीड़ एक तरफ नियंत्रित होती है तो दूसरी तरफ…। जैसे ही भीड़ होती है ट्रैफिक सिपाही हांफने लगते हैं। स्थापना काल से ही यहां का ट्रैफिक सिस्टम बिना ईंधन के वाहन जैसा रहा है। मसलन ट्रैफिक अधिकारी, सिपाही व मूलभूत संसाधनों की कमी। जानकार बताते हैं कि ट्रैफिक कंट्रोल के लिए यहां कम से कम तीन सौ से अधिक सिपाही होने चाहिए, जो नहीं हैं। जो हैं भी उनमें से अधिकतर को ट्रेनिंग देने की जरूरत है।
ये हैं निदान
-जगह-जगह वाहन पार्किंग स्पॉट का निर्माण हो
-सड़कों को अतिक्रमण मुक्त करना होगा
-खराब सड़कों की मरम्मत करनी होगी
-चुस्त-दुरुस्त यातायात व्यवस्था करनी होगी
-स्कूल, ऑफिस टाइम में विशेष सतर्कता बरतनी होगी
-यातायात कानून को कठोरता से लागू करना होगा
-मुख्य सड़क की जमीन छोड़ दुकान एवं मकान बनाने होंगे
Input : Dainik Jagran