इंसानों के लापता होने की खबर अक्सर सुने जाते रहे हैं, लेकिन अब बिहार के सुपौल जिले में ऐसा मामला सामने आया है जिसमें ग्रामीण कार्य विभाग के 34 कार्यालय ही ‘गायब’ हैं. खास बात यह कि इन लापता कार्यालयों के लिए कोषागार से हर महीने लाखों रुपए की निकासी भी हो रही है. हालांकि मामला सामने आने के बाद अब इन कार्यालयों को सरकार ढूंढने में लगी है और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की कवायद कर रही है

बता दें कि सुपौल ग्रामीण कार्य विभाग के 34 कार्यालयों का सात वर्षों से जमीन पर अस्तित्व ही नहीं है. आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल कुमार सिंह ने जब इसकी शिकायत की तो जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने अंतरिम आदेश पारित कर 34 लापता कार्यालयों की जल्द से जल्द तलाश कर तत्काल प्रभाव से धरातल (ज़मीन) पर लाने का निर्देश दिया है.

इसके साथ ही सात वर्षों से ग्रामीण कार्य विभाग के कार्यालयों को ‘गायब’ करने के आरोपी 14 कार्यपालक अभियंताओं के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुशंसा भी ग्रामीण कार्य विभाग के सचिव एवं सुपौल के जिलाधिकारी से की गई है.

2012 में जारी हुआ था आदेश, बता दें कि सुपौल के 11 प्रखंड मुख्यालय में कार्य अवर प्रमंडल और 23 कार्य प्रशाखा खोलने के लिए सरकार ने निर्णय किया था. इसके तहत कार्य प्रशाखा कार्यालय के लिए सुपौल प्रखंड में तीन, किसनपुर प्रखंड में दो, निर्मली में एक, मरौना में दो, बसंतपुर में दो, राघोपुर में दो, प्रतापगंज में एक, सरायगढ़ भपटियाही में दो, छातापुर में तीन, त्रिवेणीगंज में तीन और पिपरा में दो कार्यालय खोलने का सरकारी निर्णय वर्ष 2012 में लिया गया था.

वेतन भुगतान का भी जारी हुआ था आदेश, ग्रामीण कार्य विभाग के सचिव ने सभी कार्यालयों को 1 अप्रैल, 2012 से अस्तित्व में आ जाने का निर्देश दिया था. इसके लिए सबंधित इलाके के कोषागार वेतन भुगतान होने का आदेश भी जारी किया था. लेकिन, अधिकारियों ने वेतन निकासी के लिए तीन कार्य प्रमंडल कार्यालय तो खोल दिए, लेकिन 11 कार्य अवर प्रमंडल और 23 कार्य प्रशाखा कार्यालय कागजों पर ही चलते रहे.

लाखों रुपये की निकासी हुई, अधिकारियों की जेब में सात वर्षों से चल रहे 34 कार्यालयों के लिए कई अभियंताओं (इंजीनियरों) ने कोषागार से हर महीने वेतन के नाम पर लाखों रुपये की निकासी की. जिसमें शिकायत के बाद 14 कार्यपालक अभियंताओं को दोषी माना गया है.

कार्यपालक अभियंता भी मानते हैं गलती, कार्यपालक अभियंता सुरेश कुमार सिंह भी मानते हैं कि कार्यालय आज तक नहीं खुल सका. हालांकि कार्रवाई से नाराज अभियंता का कहना है कि कार्यालय क्यों नहीं खुला इसका उन्हें नहीं पता.

बहरहाल ग्रामीण इलाकों में चल रही सरकारी योजनाओं को समय से लागू करने के लिए सरकार का यह निर्णय विकास की गति को और तेज कर सकता था, लेकिन इंजीनियरों ने इसे खुलने ही नहीं दिया. देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर आगे और क्या कार्रवाई करती है.

रिपोर्ट- अमित कुमार झा (News18)

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