सनातन धर्मावलंबियों का पवित्र पितृपक्ष भाद्रपक्ष शुक्ल पूर्णिमा बुधवार दो सितंबर से शुरू होगा। अगस्त्य तर्पण के साथ ही पितरों का तर्पण पहले दिन से ही शुरू हो जायेगा। हालांकि कोरोना महामारी के चलते इस बार पितृपक्ष मेला को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। बिहार के गया और पुनपुन में पितृपक्ष के दौरान एक पखवारे तक पितृपक्ष मेला लगता है। इन जगरों पर देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग अपने पूर्वज पितरों का पिंडदान और तर्पण करने पहुंचते हैं।
हालांकि अभी तक इन मेलों के आयोजन को लेकर प्रशासनिक स्तर पर किसी तरह की तैयारी नहीं दिख रही है। पटना से सटे पुनपुन में भी हर साल पितृपक्ष मेला लगता है। लेकिन अभी तक मेले के आयोजन को लेकर अधिकारियों का दौरा तक नहीं हुआ है। वैसे पुनपुन में भले ही प्रशासनिक स्तर पर पितृपक्ष मेला के आयोजन को लेकर कोई तैयारी नहीं है पर पिंडदान करने वालों का आना शुरू हो गया है। रविवार को भी यहां कई लोगों ने अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण किया।
बता दें कि एक पखवारे तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जायेगा। पितृपक्ष का समापन आश्विन मास की अमावस्या यानी 17 सितंबर को होगा।इस पखवारे के दौरान श्रद्धालु गंगा सहित पवित्र अन्य नदियों के किनारे और घरों में श्रद्धालु अपने अपने पितरों को याद करके पिंडदान श्राद्ध व तर्पण करेंगे। हालांकि सनातन धर्म को माननेवाले जो तर्पण के अधिकारी हैं,को तो सालों भरनित्य देवता, ऋषि एवं पितर का तर्पण करना चाहिए। ऐसा नहीं कर सकें तो कम-से-कम पितृपक्ष में तो अवश्य तर्पण, अन्नदान, तथा संभव हो तो पार्वण श्राद्ध करना चाहिए। मान्यता है कि तर्पण करने सेदेव ऋषि तथा पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है तथा जन्म कुंडली का पितृ दोष का निवारण होता है।
इधर पुनपुन में अंतर्राष्ट्रीय पितृपक्ष मेला पुनपुन नदी घाट पर लगेगा कि नहीं ,इसे लेकर स्थानीय प्रशासन कुछ स्पष्ट नहीं कह रहा।
पुनपुन सीओ इंद्र्राणी देवी व बीडीओ उदय कुमार ने बताया कि मेला को लेकर जिले से अब तक कोई मार्गदर्शन नहीं आया है। हालांकि,उन्होंने संभावना जताया है कि कोरोना को लेकर सरकार के द्वारा जो प्रतिबंध लगाया गया है,उसके दायरे में ही आता है पितृपक्ष मेला। इस वजह से लोगों की भीड़ नहीं जुटे इस वजह से मेला का आयोजन संभवत: नहीं हो पायेगा। उन्होंने कहा कि मेला का आयोजन होता तो इसकी तैयारी एक सप्ताह पूर्व से ही शुरू हो जाती थी। जिला के वरीय अधिकारियों का दल पुनपुन मेला स्थल का मुआयना कर चुके रहते थे। इधर अंतर्राष्ट्रीय पितृपक्ष मेला नहीं लगने की स्थिति में पुनपुन बाजार समेत आसपास के लोगों में भी मायूसी छायी हुयी है। इस दौरान बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की वजह से उनकी कमाई हो जाती थी।
इक्का-दुक्का श्रद्धालुओं का आना पुनपुन में है शुरू
अंतर्राष्ट्रीय पितृपक्ष मेला का आयोजन सरकारी स्तर पर भले ही न हो,लेकिन श्रद्धालुओं का पुनपुन नदी घाट पर पहुंचना शुरू हो गया है। ऐसे तो आगामी बुधवार से पितृपक्ष शुरू है,लेकिन रविवार को पुनपुन में कुछ श्रद्धालु पहुंच नदी में तर्पण कर अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिये पिंडदान किया। स्थानीय पंडा सुदामा पांडेय का कहना है कि सरकार द्वारा पितृपक्ष मेला का आयोजन नहीं करने का प्रभाव तो मेला पर निश्चित पड़ेगा। उन्होंने कहा कि स्थानीय कुछ श्रद्धालु अवश्य यहां आकर पिंडदान करेंगे। हालांकि उन्होंने कहा कि इस दौरान उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अवश्य कराया जायेगा। पंडा पांडेय ने बताया कि बाहर , गुजरात , दिल्ली , सूरत , उत्तरप्रदेश , नेपाल सहित विदेशों से आने वाले श्रद्धालु इसबार नहीं आ पायेंगे।
इन पूर्वज पितरों का होगा श्राद्ध व तर्पण
ज्योतिषाचार्य पं. विप्रेंद्र झा माधव ने शास्त्रों के हवाले से बताया कि परम्परा के अनुसार पिता, पितामह, प्रपितामह, माता, पितामही,
प्रपितामही, मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह, मातामही प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही, के अलावे अन्य स्वर्ग गत सगे संबंधियों को गोत्र और नाम लेकर तर्पण करना चाहिए। तर्पण के बाद निम्न मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए:-ऊं देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च, नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः। इसके करने से देव ऋषि तथा पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है तथा जन्म कुंडली का पितृ दोष निवारण होता है।
काला तिल व जल लेकर होगा तर्पण
ज्योतिषाचार्य पीके युग ने बताया कि प्रात:काल स्नान के बाद काला तिल और गंगाजल या जल से पितरों का तर्पण होगा। दक्षिण मुख होकर तर्पण किया जायेगा। इस दौरान श्रीमद्भागवत पाठ,गीता व गजेंद्र मोक्ष का पाठ किया जायेगा।
मातृनवमी 11और अमावस्या 17 को है
पितृपक्ष के दौरान जिस तिथि को जिन पूर्वजों की मृत्यु हुई हो उस दिन ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। तिथि पता नहीं होने पर मातृनवमी को स्त्री वर्ग के निमित्त तथा अमावस्या के दिन पुरुष वर्ग के निमित्त ब्राह्मण भोजन कराने का विधान है। इस वर्ष 11 सितंबर को मातृनवमी है। वहीं अमावस्या 17 सितंबर को है।
पितर करते हैं पिंडदान व तर्पण का इंतजार
शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में, पुण्यतिथि के दिन तथा अमावस्या तिथि को पितर लोग वायु रूप में घर के दरवाजे पर आकर सुबह से शाम तक इन्तजार करते हैं तथा अपने पुत्रों /वंशजों द्वारा तर्पणादि कार्य नहीं करने पर क्षुधा की पूर्ति नहीं होने के कारण कुपित होकर अपने लोक को लौट जाते हैं। इसमें एक और अहम बात ज्ञातव्य है कि हमलोग भगवान को जल अर्पित करने दूर-दूर तक जाते हैं। भगवान को जल, प्रसादादि अर्पित करने वाले बहुत भक्त हैं किन्तु मेरे पितर तो केवल मेरे ही द्वारा दिए गए पिंडदान तथा
तर्पण से तृप्त होते हैं।
वर्ष पितृपक्ष की मुख्य तिथियां :—
2 सितम्बर –महालयारंभ, अगस्त्य मुनि तर्पण, पितृपक्षीय,तर्पणारंभ।
10 सितम्बर –जीमूतवाहन व्रत,
11 सितम्बर–मातृनवमी
17 सितम्बर–पितृपक्षांत, महालया ।
17 सितम्बर शाम से मलमासारंभ
Source : Hindustan