बिहार में एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) या इंसेफेलौपैथी से मौत का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा। इस साल अभी तक मौत का आंकड़ा 143 पार कर गया है। बुधवार की सुबह भी कुछ बच्चों की मौत हुई है। बीमारी के इस कहर के कारण केंद्र व राज्य सरकारों पर मुकदमों का सिलसिला चल पड़ा है। बुधवार को अस्पतालों में सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई।
मंगलवार को भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा केंद्र व राज्य के स्वास्थ्य मंत्रियों के खिलाफ मुकदमा किया गया। इसके पहले भी केंद्र व राज्य के स्वास्थ्य मंत्रियों पर एक और मुकदमा दर्ज किया जा चुका है। उधर, मानवाधिकार आयोग ने भी केंद्र व राज्य से रिपोर्ट तलब किया है।
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर
बिहार में एईएस से बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। इसे देखते हुए अब सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर इलाज की सुविधाएं बढ़ाने तथा इसमें अभी तक हुई लापरवाही की जिम्मेदारी तय करने का आग्रह किया गया है। याचिका में प्रभावित इलाकों में सौ मोबाइल आइसीयू बनाने तथा अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने की मांग की गई है।
वकील मनोहर प्रताप और सनप्रीत सिंह अजमानी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर इस जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इसकी सुनवाई सोमवार को होगी।
सीएम नीतीश-हर्षवर्धन पर मुकदमा
एईएस से बच्चों की मौत को लेकर मुजफ्फरपुर के अधिवक्ता पंकज कुमार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य के विरुद्ध मंगलवार को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) कोर्ट में परिवाद दाखिल किया गया। इसमें उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार, बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएमएसआइसीएल) के प्रबंध निदेशक संजय कुमार सिंह, जिलाधिकारी आलोक रंजन घोष, सिविल सर्जन डॉ.शैलेश प्रसाद सिंह व एसकेएमसीएच के अधीक्षक डॉ.सुनील कुमार शाही को आरोपित बनाया है।
परिवाद में आरोप लगाया गया है कि सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की जाने वाली दवाएं केंद्रीय व राज्य प्रयोगशालाओं से जांच रिपोर्ट मिले बिना ही मरीजों को दी जाती हैं। सरकारी अस्पतालों में जेनरिक दवाओं की आपूर्ति की जाती है। इनकी पोटेंसी सामान्यत: छह माह की होती है। जबकि, इनका उपयोग एक से दो साल तक किया जाता है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी जानकारी में बीएमएसआइसीएल ने बताया है कि दवाओं की गुणवत्ता की जांच निजी जांच प्रयोगशाला में कराई जाती है।
केंद्रीय व बिहार के स्वास्थ्य मंत्री पर एक और मुकदमा
इसके पहले भी बिहार में एईएस से बच्चों की लगातार हो रही मौतें व बीमारी के इलाज में लापरवाही के आरोप में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन तथा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के खिलाफ मुजफ्फरपुर कोर्ट में परिवाद दायर किया गया है। परिवाद सोमवार को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ( सीजेएम) सूर्यकांत तिवारी के कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता तमन्ना हाशमी ने दाखिल किया है। कोर्ट ने इसपर सुनवाई के लिए 24 जून की तारीख मुकर्रर की है।
अपने परिवाद पत्र में तमन्ना हाशमी ने आरोप लगाया है कि उक्त मंत्रियों ने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया। जागरूकता अभियान नहीं चलाने के कारण बच्चों की मौतें हो गईं। आरोप के अनुसार बीमारी को लेकर आज तक कोई शोध भी नहीं किया गया। लापरवाही के कारण बच्चों की मौत हुई है।
मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट
भयावह हालात को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र व राज्य सरकारों से जवाब-तलब किया है। एनएचआरसी ने मौत के आंकड़ों, बीमारी से बचाव व इसके इलाज की तैयारियों को लेकर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
जानिए बीमारी के लक्षण
एईएस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसमें दिमाग में ज्वर, सिरदर्द, ऐंठन, उल्टी और बेहोशी जैसी समस्याएं होतीं हैं। शरीर निर्बल हो जाता है। बच्चा प्रकाश से डरता है। कुछ बच्चों में गर्दन में जकड़न आ जाती है। यहां तक कि लकवा भी हो सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार इस बीमारी में बच्चों के शरीर में शर्करा की भी बेहद कमी हो जाती है। बच्चे समय पर खाना नहीं खाते हैं तो भी शरीर में चीनी की कमी होने लगती है। जब तक पता चले, देर हो जाती है। इससे रोगी की स्थिति बिगड़ जाती है।
वायरस से होता राग, ऐसे करें बचाव
यह रोग एक प्रकार के विषाणु (वायरस) से होता है। इस रोग का वाहक मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो विषाणु उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। बच्चे के शरीर में रोग के लक्षण चार से 14 दिनों में दिखने लगते हैं। मच्छरों से बचाव कर व टीकाकरण से इस बीमारी से बचा जा सकता है।
10 सालों में 485 से अधिक बच्चों की मौत
विदित हो कि पिछले 10 सालों के दौरान उत्तर बिहार के 485 से अधिक बच्चों की मौत एईएस या इंसेफेलौपैथी से हो गई है। वर्ष 2012 व 2014 में इस बीमारी के कहर से मासूमों की ऐसी चीख निकली कि इसकी गूंज पटना से लेकर दिल्ली तक पहुंची थी। बेहतर इलाज के साथ बच्चों को यहां से दिल्ली ले जाने के लिए एयर एंबुलेंस की व्यवस्था करने का वादा भी किया गया। मगर, पिछले दो-तीन वर्षों में बीमारी का असर कम होने पर यह वादा हवा-हवाई ही रह गया। पर इस वर्ष बीमारी अपना रौद्र रूप दिखा रही है। इस साल तो मौत का आंकड़ा 10 सालों में सर्वाधिक हो गया है।
वर्षवार एईएस से मौत, एक नजर
2010: 24
2011: 45
2012: 120
2013: 39
2014: 86
2015: 11
2016: 04
2017: 04
2018: 11
2019: 143 (अब तक)
Input : Dainik Jagran