पटना. बिहार विधानपरिषद (Bihar Legislative Council Election) के लिए 6 जुलाई को जिन 9 सीटों के लिए चुनाव होना है, उसमें कांग्रेस (Congress) के हिस्से में एक सीट आ रही है. विधानपरिषद के लिये होने वाले इस चुनाव में कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की महत्वाकांक्षा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 3200 से अधिक आवेदन प्रत्याशियों के चयन को लेकर आलाकमान के पास पहुंचे हैं. यानी कुल मिलाकर हालात एक अनार सौ बीमार वाले बन गए हैं. जहां तक पार्टी प्रत्याशियों की बात है तो पार्टी के कई प्रमुख नेता चुनावी राजनीति से किनारा कर पिछले दरवाजे से ही सदन में प्रवेश करना अच्छा मान रहे हैं, ऐसे में कई नामों के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है.

सभी के अपने-अपने दावे

कांग्रेस आलाकमान के पास सामने भी चुनौती कम नहीं है. पार्टी के कार्यकर्ताओं से लेकर छोटे-बड़े नेताओं के अपने-अपने दावे भी हैं. जातीय लिहाज से देखें तो पिछड़ा, दलित, राजपूत, भूमिहार सहित अल्पसंख्यकों के भी अपने-अपने दावे और तर्क हैं. पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इस चुनावी मैदान में अपने भाग्य की आजमाइश करना चाहते हैं. कई वरिष्ठ नेता तो इस मामले में अपनी दावेदारी को मजबूती तरीके से सामने रखने से गुरेज भी नहीं कर रहा है. कई ऐसे हैं जो अपने प्रत्याशी को खुले तौर पर सामने नहीं लाना चाहते. क्षत्रपों में कौकब कादरी जहां खुद की दावेदारी मजबूती से पेश करते नजर आते हैं. वहीं, श्याम सुंदर सिंह धीरज जैसे वरिष्ठ नेता अपनी दावेदारी को आलाकमान की इच्‍छा पर छोड़ते नजर आते हैं.

प्रदेश अध्यक्ष बोले- ये तो लोकतांत्रिक परंपरा का हिस्सा

जाहिर सी बात है हजारों की संख्या में आए आवेदनों में से किसी एक को प्रत्याशी के तौर पर चुनना कांग्रेस आलाकमान के लिए भी इतना आसान नहीं है. वैसे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं नेताओं की बढ़ती महत्वाकांक्षा को पार्टी अध्यक्ष मदन मोहन झा बुरा नहीं मानते हैं. प्रदेश अध्यक्ष का मानना है कि केवल कांग्रेस में ही नहीं सभी पार्टियों में हालात कमोबेश ऐसे ही हैं. एक पद के लिए हजारों की संख्या में आवेदनों को पार्टी के शीर्ष नेता स्वस्थ्य लोकतांत्रिक परम्परा का पर्याय बताने से गुरेज नहीं करते हैं.

सबको खुश करना चुनौती

कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व चाहे जो कहे लेकिन किसी एक को प्रत्याशी के तौर पर घोषित कर सामने लाना पार्टी के लिए आसान नहीं हो रहा. बिहार विधानसभा के चुनावी साल में कार्यकर्ताओं और नेताओं की महत्वाकांक्षा पर को शांत रखना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है.

Input : News18

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