अभी तक आपने घर, जमीन और गाड़ी खरीदने के लिए बैंक से लोन लेने की बातें तो सुनी होगी, लेकिन पेन, पेंसिल, कॉपी के लिए भी लोन लेते नहीं सुना होगा। जी हां, अपने प्रदेश में ऐसा स्कूल है जहां पढ़ाई के साथ बच्चों की दिनचर्या की जरूरत के सामान के लिए लोन दिये जाते हैं। उत्क्रमित मध्य विद्यालय कबीरपुर बुडसी गोपालगंज में बच्चों को पठन- पाठन में दिक्कत न हो, इसके लिए चिल्ड्रेन बैंक खोला गया है। अब यहां से बच्चे लोन लेकर पढ़ाई करते हैं। इतना ही नहीं बच्चों का उनकी दिनचर्या की चीजें साबून, शैम्पू, ब्रश, कंघी आदि के लिए भी लोन दिया जाता है।

स्कूल प्रशासन द्वारा अक्टूबर 2019 में यह अनोखा बैंक शुरू किया गया। बैंक खुलने का असर भी हुआ है। बच्चों की उपस्थिति बढ़ी है। प्राचार्य बलिंद पलित ने बताया कि बैंक में हर दिन तीन से चार बच्चे लोन लेने आते हैं। एक महीने के लिए लोन दिया जाता है। सबसे ज्यादा कॉपी, पेंसिल और बाल कटवाने के लिए बच्चे लोन लेते हैं।

डेढ़ हजार से शुरू किया, आज दस हजार है बैंक में जमा

चिल्ड्रेन बैंक खोलने के लिए पूंजी की जरूरत थी। इसके स्कूल प्रशासन ने बच्चों के सामने प्रस्ताव रखा। इसके बाद बच्चों ने एक-एक, दो -दो रुपया दिया। इससे डेढ़ हजार जमा हो गए। इसके बाद शिक्षक, प्राचार्य और गांव के लोगों की मदद ली गयी। शिक्षक और चिल्ड्रेन बैंक के प्रबंधक अष्टभुजा सिंह ने बताया कि बैंक से बच्चों को लोन के रूप में जो राशि दी जाती है, उसकी वापसी पर कोई ब्याज नहीं लिया जाता है।

एक रुपये से लेकर दो सौ तक मिलता है लोन

बच्चों को एक रुपये से लेकर दो सौ रुपये तक लोन मिलता है। पढ़ाई के सामान के अलावा चप्पल, जूता, मोजा आदि के लिए भी लोन मिलता है। इसके अलावा अगर किसी बच्चे के अभिभावकों को पैसे की जरूरत होती है तो भी 50 से 100 रुपया लोन दिया जाता है। बच्चों में अनुशासन आये, इसके लिए एनसीसी क्लब भी चलता है।

केस:1

निधि पांचवीं की छात्रा है। लेकिन पठन-पाठन सामग्री न होने से वह स्कूल नहीं जा पाती थी। अब जब स्कूल में चिल्ड्रेन बैंक से लोन पर कॉपी और पेंसिल मिल रही है तो निधि हर दिन स्कूल आने लगी है। अर्द्धवार्षिक परीक्षा में निधि को ए ग्रेड मिला है।

केस : 2

कुंदन कुमार के घर वाले पेंसिल, रबर और कॉपी खरीदने के लिए पैसे न होने का बहाना बनाते थे। ऐसे में कुंदन स्कूल नहीं जा पाता था। लेकिन स्कूल में चिल्ड्रेन बैक खुल तो अब उसे पेंसिल, कॉपी आदि खरीदने को पैसे मिल जाते हैं।

इस स्कूल के प्रयास को दूसरे स्कूल में शुरू किया जायेगा। इसके लिए प्रदेश के दूसरे स्कूल से भी संपर्क किया जा रहा है। यह बहुत ही अच्छा और कारगर प्रयास हैं। इससे बच्चों को स्कूल में आसानी से रोका जा सकेगा। साथ में बच्चे ड्रॉपआउट भी नहीं होंगे।– शिव कुमार, को-ऑर्डिनेटर, टीचर्स ऑफ बिहार

Input : Hindustan

 

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