तस्वीर मध्य प्रदेश के धार जिले की है। साइकिल चला रहा शख्स मजदूर है। पीछे इनका बेटा बैठा है, जिसकी पीठ पर किताबों का बैग और गोद में राशन सामग्री है। मजदूर पिता 105 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करके बेटे को 10वीं बोर्ड की परीक्षा दिलवाने लेकर आया है। चेहरे पर लम्बे सफर की थकान तक नहीं है। एक आत्मविश्वास है कि जो दिन मजदूर बनकर खुद को देखने पड़े रहे हैं वो दिन बेटे नहीं देखने पड़े। इसलिए तीन दिन का राशन साथ लेकर बेटे को परीक्षा दिलवाने के लिए साइकिल से आए हैं।
मनावर का रहने वाला है दसवीं का छात्र आशीष
दरअसल, पूरा मामला ये है कि मध्य प्रदेश शिक्षा बोर्ड की ओर से आयोजित होने वाली 10वीं और 12वीं की परीक्षा में असफल होने वाले विद्यार्थियों को पास होने का एक और मौका देने के लिए प्रदेश में ‘रुक जाना नहीं’ अभियान चला रखा है। इसी अभियान के तहत धार जिले के मनावर तहसील के गांव बयड़ीपुरा के शाेभाराम के बेटे आशीष को 10वीं में तीन विषय की परीक्षा देनी है। मंगलवार को गणित विषय की परीक्षा थी।
12 बजे साइकिल लेकर निकले पिता-पुत्र
आशीष का परीक्षा केन्द्र घर से करीब 105 किलोमीटर दूर धार के स्कूल में आया है। कोरोना महामारी के चलते बसें नहीं चल रही है। ऐसे में आशीष का परीक्षा केन्द्र तक पहुंचना आसान नहीं हो रहा था। ऐसे में पिता शोभाराम ने तय किया कि वे साइकिल पर सफर करके बेटे को परीक्षा केन्द्र तक पहुंचाएंगे। सोमवार रात करीब 12 बजे पिता-पुत्र साइकिल पर सवार होकर घर से धार के लिए रवाना हो गए।
7 घंटे में तय किया पूरा सफर
शोभाराम ने करीब 7 घंटे लगातार साइकिल चलाकर 105 किलोमीटर का सफर तय किया। मंगलवार सुबह आठ बजे परीक्षा शुरू होने से 15 मिनट पहले केन्द्र पहुंचे। बुधवार को सामाजिक विज्ञान और गुरुवार को अंग्रेजी की परीक्षा है। घर दूर होने के कारण एक दिन में लौटना संभव नहीं होने के कारण शोभाराम व आशीष अपने साथ तीन दिन का राशन भी लेकर आए हैं। परीक्षा पूरी होने तक दोनों यहीं पर रुकेंगे।
मीडिया से बातचीत में शोभाराम ने बताया कि वो मजदूरी करते हैं। ज्यादा पढ़-लिख नहीं पाए थे, मगर बेटे को खूब पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाने का ख्वाब है। कोरोना महामारी में बेटे की पढ़ाई नहीं हो पाई। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण ट्यूशन नहीं लगवा पाया। अब भी किसी से 500 रुपए उधार लेकर तीन दिन का राशन लेकर आया हूं।