डॉ. सीमा राव देश की पहली और इकलौती महिला कमांडो ट्रेनर हैं। इन्हें भारत की ‘सुपर वुमेन’ भी कहा जाता है। 49 साल की सीमा 20 साल से बिना सरकारी मदद के मुफ्त में आर्मी, एयरफोर्स और नेवी समेत पैरामिलिट्री फोर्स के कमांडो को ट्रेनिंग दे रही हैं। उनका नाम उन पांच चुनिंदा महिलाओं में आता है, जिन्हें ‘जीत कुन डो’ मार्शल आर्ट आता है। इसे ब्रूस ली ने ईजाद किया था।
डॉ. राव सशस्त्रबलों के जवानों को रिफ्लेक्स फायर यानी आधे सेकंड में किसी को शूट कर देने की ट्रेनिंग देने के लिए भी जानी जाती हैं। महिला दिवस पर भास्कर प्लस एप ने उनसे बातचीत की और उनकी कहानी के बारे में जाना।
सवालों पर डॉ. सीमा राव के जवाब
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सुरक्षाबल पहले से एक स्तर तक प्रशिक्षित होते हैं। ऐसे में उनके जवानों को कमांडो ट्रेनिंग देने का विचार कैसे आया? उन्हें कैसे अप्रोच किया?
मैं बचपन में बहुत कमजोर थी। इसी कमजोरी को दूर करने के लिए मैंने मार्शल आर्ट्स सीखा और अनआर्म्ड कॉम्बैट में ब्लैक बेल्ट हासिल किया। उसके बाद मेरी शादी मेजर दीपक राव से हुई। एक दिन हम मॉर्निंग वॉक पर गए तो देखा कि जवान अनआर्म्ड कॉम्बैट की ट्रेनिंग ले रहे हैं। हमने जब पूछा तो पता चला कि ये आर्मी का ट्रेनिंग स्कूल है। फिर हमने वहां के कमांडेंट ऑफिसर से मिलकर एक वर्कशॉप की योजना बनाई। इस वर्कशॉप के बाद कमांडेंट ने हमें अच्छे रिव्यू दिए और इसी रिव्यू के आधार पर हम मुंबई पुलिस कमिश्नर आरडी त्यागी से मिले। जब त्यागी एनएसजी के महानिदेशक बने तो उन्होंने हमें अनआर्म्ड कॉम्बैट ट्रेनिंग देने के लिए इनवाइट किया। उसके बाद हम आर्मी चीफ से मिले और बताया कि हम आर्मी को भी ऐसी ट्रेनिंग देना चाहते हैं। उन्होंने पैरासेंटर बेंगलुरु में कॉम्बैट ट्रेनिंग के लिए आर्मी का पहला कोर्स शुरू करवाया। धीरे-धीरे आर्मी की अलग-अलग यूनिट्स हमें ट्रेनिंग देने के लिए बुलाने लगीं। इसके बाद मैंने शूटिंग सीखी। मैंने आर्मी की अलग-अलग यूनिट्स में भी इसके डैमाे दिए। इस तरह मैं नेवी, आर्मी, एयरफोर्स, पुलिस फोर्स और पैरामिलिट्री फोर्स को ट्रेनिंग देने लगी।
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आप किस तरह की ट्रेनिंग देती हैं?
मेरा ट्रेनिंग सब्जेक्ट है क्लोज क्वार्टर बैटल (सीक्यूबी)। सीक्यूबी यानी दुश्मन के साथ 30 मीटर के अंदर लड़ाई करना। इसे हम दो तरह की स्थिति में देखते हैं।
- पहला– कमांडो सिचुएशन, जहां हम दुश्मन की धरती पर जाकर कमांडो ऑपरेशन करते हैं। दुश्मन के इलाके में जाकर और उससे लड़कर जब कमांडो वापस आता है तो उसे क्लोज क्वार्टर बैटल कहते हैं। सीक्यूबी में विस्फोटक इस्तेमाल करना और रूम के अंदर फायरिंग करना भी सिखाया जाता है।
- दूसरा– काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन। इसमें हमारे कमांडो आतंकी से 30 मीटर की दूरी से लड़ाई करते हैं। सीक्यूबी का काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन और कमांडो मिशन में फायदा होता है। इस ट्रेनिंग में अलग-अलग सब्जेक्ट होते हैं।
- अनआर्म्ड कॉम्बैट : इसमें बिना हथियार के दुश्मन से लड़ाई करना सिखाया जाता है।
- रिफ्लेक्स शूटिंग : जब दुश्मन 30 मीटर के अंदर है तो हमें उसकी गोली लगने से पहले उसे हमारी गोली लगनी चाहिए।
- ग्रुप शूटिंग : इसमें हम बताते हैं कि एक टीम या ग्रुप कैसे दुश्मन पर गोली चला सकते हैं। इसमें सिखाया जाता है कि कैसे एक टीम मिलकर दुश्मन को गोली मारे।
- हमने आर्मी, आर्मी की स्पेशल फोर्सेस, कमांडो विंग, एनएसजी, मरीन कमांडो, एयरफोर्स के गरुड़ कमांडो, पैरामिलिट्री फोर्स जैसे- बीएसएफ, आईटीबीपी को ट्रेन किया है। 1997 से लेकर अभी तक हमने अलग-अलग प्रकार की फोर्सेस को ट्रेन किया है। साथ ही हमने 12 राज्यों की पुलिस को भी प्रशिक्षण दिया है।
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आपने ट्रेनिंग का एक नया तरीका ‘राव सिस्टम ऑफ रिफ्लेक्स फायर’ खोजा है, यह क्या है?
यह एक अलग तरीके से शूट करने की तकनीक है। जब दुश्मन 30 मीटर के अंदर होता है, तब आप राइफल लेकर बराबर निशाना लगाकर शूट नहीं कर सकते, क्योंकि इसमें 1-2 सेकंड का समय लगता है। जब दुश्मन पास होता है तो हमारे पास 2 सेकंड नहीं होते। इसलिए हमें आधे सेकंड के अंदर शूटिंग करनी होती है। यह एक ऐसी तकनीक है जब दुश्मन 30 मीटर के अंदर हो तो राइफल के फोरसाइट से निशाना लगाकर दुश्मन को शूट किया जाता है और इससे सिर्फ आधे सेकंड या उससे भी कम वक्त में टारगेट को हिट किया जा सकता है।
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आपने ब्रूस ली का खास मार्शल आर्ट जीत कुन डो सीखा है। यह क्या होता है? और बाकी मार्शल आर्ट्स से यह कितना अलग है?
1970 में ब्रूस ली की जब ‘इंटर द ड्रैगन’ रिलीज हुई तो पूरी दुनिया ब्रूस ली के मार्शल आर्ट्स ‘जीत कुन डो’ से इम्प्रेस हो गई। लेकिन उस जमाने में सिर्फ कराटे ही था तो लोगों को लगा कि यही ब्रूस ली का मार्शल आर्ट है। लेकिन कराटे और जीत कुन डो पूरी तरह से अलग हैं। जीत कुन डो में किक, पंच, कोहनी और घुटनों का इस्तेमाल होता है। इसमें कुश्ती भी होती है और दुश्मन को जमीन पर लिटाकर हिट करना होता है। कुल मिलाकर, ब्रूस ली के जीत कुन डो में किकिंग, पंचिंग, कुश्ती और मैट फाइटिंग भी है। इसलिए ये बाकी मार्शल आर्ट से अलग है। जैसे- ताइक्वांडो में सिर्फ किकिंग है, बॉक्सिंग में पंचिंग है, ग्रेको रैमन रेसलिंग में कुश्ती है, लेकिन ब्रूस ली के जीत कुन डो में सभी का मिश्रण है। आजकल मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स होता है, वह भी ब्रूस ली के मार्शल आर्ट से ही प्रेरित है। इसलिए ब्रूस ली को फादर ऑफ मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स कहा जाता है। ब्रूस ली अपने निधन से पहले पांच लोगों को यह आर्ट सिखाकर गए थे। मैंने ब्रूस ली के स्टूडेंट रहे ग्रैंड मास्टर रिचर्ड बूफ्तिलो से जीत कुन डो सीखा है। दुनियाभर की सिर्फ पांच महिलाओं के पास ही जीत कुन डो सीखने का इंस्ट्रक्टर सर्टिफिकेशन है। इनमें से एक मैं हूं।
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अब तक के सफर में जवानों को ट्रेनिंग देते हुए आपकी लर्निंग क्या रही?
पहली और सबसे बड़ी लर्निंग है अनुशासन। अनुशासन के बिना कोई भी जंग जीती नहीं जा सकती। दूसरी लर्निंग- रणनीति। सही रणनीति का इस्तेमाल कर एक हारी हुई जंग को जीत में बदला जा सकता है। तीसरा- साहस। जब हार का सामना करना पड़े तो साहस ही एक ऐसी चीज है, जिसके सहारे आगे बढ़ा जा सकता है।
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कौन-सी ऐसी बातें हैं जो किसी व्यक्ति की हार-जीत तय करती हैं?
- पहली : कोई भी महिला, पुरुष के बराबर ही होती है। वह हर वह काम कर सकती है जो एक पुरुष कर सकता है।
- दूसरी : जब किसी चीज में हार का सामना करना पड़े तो निश्चय बनाए रखिए और प्रयास करते रहिए।
- तीसरी : हिम्मतवाले की ही जीत होती है।
- चौथी : अपने लिए ऊंचे लक्ष्य तय कीजिए और अपनी योग्यता की दिशा में आगे बढ़िए।
- पांचवीं : एक अलग सोच बनाइए और परंपरा से हटकर सोचना सीखिए।
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पुलवामा हमले के बाद देश में हर कोई अपनी तरह से सेना की मदद करना चाहता है। आपने भी सशस्त्र बलों की अपने तरीके से मदद की है। ऐसे में आम नागरिक किस तरह मदद कर सकते हैं?
आम आदमी के लिए जरूरी है कि वे अफवाहों पर भरोसा न करें, वे सशस्त्र बलों पर भरोसा करें। आप अपने बच्चों को सुरक्षाबल ज्वाइन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसका सबसे अच्छा तरीका एनसीसी है। इसके जरिए काफी सारे सुरक्षाबलों में शामिल होने के अवसर रहते हैं। हम अपने बच्चों या स्टूडेंट्स को एनसीसी में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
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एक महिला होकर पुरुषों को ट्रेनिंग देने का ख्याल कैसे आया?
हमें फोर्सेस को ट्रेन करना था और 1996-97 में कमांडो यूनिट्स और इन्फेन्ट्री यूनिट्स में सिर्फ पुरुष ही थे। हालांकि, आज कई फोर्सेस में महिलाएं हैं।
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Input : Dainik Bhaskar