साहब के तेवर कड़े हैैं, लेकिन फीलगुड में रहते हैैं। थाने से ज्यादा मतलब नहीं रखते। इससे वहां अराजकता की स्थिति बनी है तभी तो बिना चढ़ौना थाने में कोई काम नहीं होता है। हर काम के लिए वहां इसका रेट भी तय कर दिए गए हैैं। मुंशी से लेकर कोतवाल तक को चढ़ौना चढ़ाना पड़ता है। उसके बाद ही काम शुरू होता। अगर नहीं दिया तो निराशा हाथ लग सकती। स्थिति यह कि अगर आपके साथ अप्रिय घटना हो जाए और इंसाफ की उम्मीद करते हैं तो इसे छोड़ दीजिए। जिस थाने पर आवेदन देने के बाद मुंशी या वहां बैठे स्टार वाले हाकिम रिसीविंग तक नहीं दे पाते उनसे आगे की क्या उम्मीद की जा सकती है। इसका अंदाजा आप लगा सकते। वहीं, रेंज वाले साहब का आदेश हैं कि थाने पर पीडि़त का आवेदन लेते ही रिसीविंग दें, लेकिन सब कागज में ही चल रहा है।

लाल पानी के धंधेबाजों पर कार्रवाई से पीछे रहते हाकिम

कागज के बंडल के लिए कई कोतवाल सभी नियम-कानून ताक पर रख देते हैैं तभी तो लाल पानी के धंधेबाजों पर कार्रवाई करने में कई कोतवाल भी पीछे हट जाते हैं। मुख्यालय का आदेश है कि थाना क्षेत्र में लाल पानी की खेप मिलने पर कोतवाल जिम्मेदार होंगे। हाल ही में शहर से सटे टोल प्लाजा वाले थाना क्षेत्र में सादे लिबास वाली दूसरे विभाग की टीम ने लाल पानी की बड़ी खेप पकड़ी। वहीं, कोतवाल चैन की नींद सोते रहे। उन्हें भनक तक नहीं लगी। बताते हैैं कि सूचना होने के बाद भी कोतवाल ने कार्रवाई नहीं की। ऐसी ही स्थिति कई थानों की है। मुख्यालय स्तर से पूर्व में कई कोतवालों पर कार्रवाई भी की जा चुकी है, लेकिन कुर्सी मिलते ही सभी नियम व आदेश संबंधित हाकिम भूल जाते हैं। बड़े साहब भी इसे नजरअंदाज किए हैैं।

साहब के चहेते जवान का जलवा

साहब के चहेते जवान का जलवा इन दिनों सुर्खियों में है। थाने पहुंचने पर कई कोतवाल कुर्सी छोड़कर खड़े हो जाते हैैं। जवान सिपाही की तरह नहीं, बल्कि साहब की समांतर भूमिका में चलता है। कहने को तो एक सिपाही है। उसे सादे लिबास वाली टीम में रखा गया है। वह अपने साथ आगे-पीछे 47 वाले अत्याधुनिक हथियार लेकर चलने वाले जवानों को रखता है। इसकी आड़ में पकडऩे व छोडऩे के साथ ही कई तरह के बड़े-बड़े खेल भी किए जाते हैैं। विवादित जमीन पर कब्जा कराने का भी खेल चलता है। इसके बदले कागज के मोटे बंडल उसे दिए जाते हैैं। हाल ही में चौराहे वाले थाना क्षेत्र में एक जमीन पर कब्जा करने का मामला सामने आया तो संबंधित कोतवाल वहां कार्रवाई करने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके।

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लॉकडाउन चल रहा है। इसका सख्ती से अनुपालन कराने के बदले कई वर्दीधारी अपनी जेब गर्म करने में जुटे हंै। शहर के चौराहे वाले थाने के गश्ती दल हर दिन आदेश के विरुद्ध इलाके में चोरी-छिपे दुकान खोलने वाले कई दुकानदारों को पकड़ता है। इसके बाद उन्हें गश्ती वाहन पर बैठाकर कुछ दूर आगे ले जाया जाता है और फिर शुरू हो जाता है सेटिंग का खेल। मुकदमा दर्ज होने का भय दिखाकर वर्दीधारी अपनी जेब गर्म करने में जुट जाते हैैं। सेटिंग होने के बाद उन्हें छोड़ दिया जाता है। इस काम में पुरुष की तुलना में महिला वर्दीधारी भी कम नहीं हैं। मास्क की जांच के दौरान मनमानी करने पर कई बार वर्दीधारियों से विवाद भी हो चुका है। इसके बाद भी बड़े साहब की इसपर नजर नहीं है। वह कभी औचक जांच करना भी मुनासिब नहीं समझते हैैं। नतीजा इलाके में वर्दीधारियों की मनमर्जी चलती है।

Input: संजीव कुमार (dainik jagran)

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