सात साल पहले प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत का सपना देखते हुए स्वच्छ भारत अभियान का आगाज किया था। तब शहर में भी इस अभियान को लेकर खूब तामझाम हुआ था। नेता से लेकर कार्यकर्ता तक, अधिकारी से लेकर समाजसेवी तक सभी झाड़ू-टोकरी लेकर शहर की सड़कों पर उतर आए थे। शहर को स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाने को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए। लोगों को जागरूक करने के लिए शहर को नारों एवं पोस्टरों से पाट दिया गया था। लेकिन सात साल बाद जमीनी हकीकत यह है कि साफ-सफाई के मामले में हम जहां थे आज भी वहीं है।

#AD

#AD

पहले की तरह ही शहर में नारकीय हालात बने हुए है। मुख्य सड़कों से लेकर गली-मोहल्लों तक कचरे का अंबार लगा हुआ है। इस प्रकार प्रधान मंत्री का अभियान नारों एवं घोषणाओं तक सिमट कर रह गया। गांधी जयंती पर शहर में ताम-झाम के साथ शुरू किए गए इस अभियान से न आम जनता जुड़ पाई और न ही सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाओं ने इसे गंभीरता से लिया

न जनता जागी न जनप्रतिनिधि हुए सजग : धीर-धीरे स्वच्छ भारत अभियान आगे बढ़ते गया। अब तो सात साल बीत गए। पर, अभियान को लेकर न जनता जागी और न जनप्रतिनिधि सजग हुए। अभियान की शुरुआत होने पर सांसद हो विधायक या फिर वार्ड पार्षद, सभी सक्रिय दिखे मगर दो कदम चलने के बाद ही सो गए। ग्रास रूट पर वार्ड पार्षदों पर अभियान को सफल बनाने की जिम्मेदारी थी। लेकिन वे अपनी जवाबदेही नहीं निभा पाए। वार्डो की सफाई से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े वार्ड पार्षद अभियान से नहीं जुड़ पाए। विधायक एवं सांसद ने अभियान शुरू होने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर अभियान के प्रति जोश दिखाया। सड़कों पर झाड़ू लगाए, फोटो खिंचवाया और जमकर वाहवाही लूटी। लेकिन उनका जोश एक माह भी कायम नहीं रह सका।

आम लोगों से नहीं जुड़ पाया स्वच्छता अभियान : स्वच्छ भारत अभियान से आम लोग नहीं जुड़ पाए, जबकि अभियान का मूल उद्देश्य आम लोगों को साफ-सफाई के प्रति सजग करना था। सरकार द्वारा जिलाधिकारी, उपविकास आयुक्त, पंचायती राज पदाधिकारियों समेत अन्य विभागों को पत्र लिखकर अभियान चलाने को कहा गया था। नगर निगम एवं पीएचईडी ने अभियान की शुरुआत जरूर की, लेकिन वह महज उद्घाटन समारोह तक सीमित रहा। किसी ने भी अभियान से आम जनता को जोड़ने का ईमानदारी से प्रयास नहीं किया।

बगैर अनुदान एनजीओ को रास नहीं आया अभियान : अनुदान वाली योजनाओं को पाने के लिए दौड़ लगाने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं को स्वच्छ भारत अभियान रास नहीं आया। अभियान को शुरू हुए सात साल पूरे हो चुके है, लेकिन अबतक एक या दो संस्थाओं को छोड़ दे तो किसी ने भी अपने को अभियान से नहीं जोड़ा। जो जुड़े उनकी भूमिका भी महज औपचारिकता मात्र रही। जिले में दो हजार से अधिक स्वयं सेवी, समाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाएं हैं। अभियान से उनका जुड़ाव नहीं होना, उनकी भूमिका को लेकर सवाल खड़े कर रहा है।

Input: Dainik Jagran

Muzaffarpur Now – Bihar’s foremost media network, owned by Muzaffarpur Now Brandcom (OPC) PVT LTD