मुजफ्फरपुर : बीते दिनों एईएस से अछूता जिले का कोई गाँव नहीं था। लेकिन इन विपरीत हालातों में भी जिले के कांटी ब्लॉक का बरियारपुर ततमा टोला एईएस से प्रभावित नहीं हो सका। जबकि आस-पास के कई इलाके एईएस से प्रभावित रहे। यह तो एईएस की बात हुई। लेकिन सिर्फ एईएस की रोकथाम में यह गाँव सफल नहीं हुआ है। कांटी प्रखण्ड का ऐसा गाँव भी बना है, जहाँ शत-प्रतिशत संस्थागत प्रसव हो रहा है। इन बदलावों के पीछे बरियारपुर ततमा टोला की आंगनबाड़ी सेविका पूनम कुमारी का अहम योगदान है। घर-घर जाकर पोषण पर लोगों को जागरूक करने से लेकर गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इन्हें जाना जाता है। कांटी प्रखंड में पूनम बदलाव वाली दीदी के नाम से प्रचलित है। कार्य के प्रति निष्ठा एवं विपरीत परिस्थितियों में भी समुदाय को सेवा प्रदान कर पूनम ने यह तमगा हासिल किया है।
चुनौतियों को किया स्वीकार : पिछले 25 सालों से पूनम कुमारी आंगनबाड़ी सेविका के पद पर कार्यरत है। एक दौर था जब बरियारपुर ततमा टोला में अधिकतर प्रसव घर में ही होता था। गाँव में प्रसव सामान्यता अप्रशिक्षित दाई के द्वारा घर पर ही होता था। गर्भवती माताएँ प्रसव-पूर्व जाँच के लिए भी अस्पतालों तक कभी नहीं जा पाती थी। ऐसे चुनौती भरे माहौल में पूनम ने दृढ़ता से कार्य शुरू किया। घर-घर जाकर उन्होंने महिलाओं को समझाना शुरू किया। सरकार की योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करना शुरू किया। सामुदायिक बैठकों में महिलाओं के साथ घर के बुजुर्ग महिलाओं को शामिल किया एवं घर पर प्रसव कराने के नुकसान पर विस्तार से जानकारी देती रही। शुरुआती मुश्किलों के बाद धीरे-धीरे बदलाव देखने को मिला। जिस गाँव में संस्थागत प्रसव के प्रति कोई जागरूकता नहीं थी और ना ही अस्पतालों में प्रसव ही होता था। आज तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है। आज यह गांव शत-प्रतिशत संस्थागत प्रसव सुनिश्चित कराने वाला गांव बना है।
बेहतर देखभाल सफलता की वजह : गर्भावस्था से लेकर बच्चे के 2 साल तक की उम्र की अवधि माँ एवं बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अहम मानी जाती है। पूनम ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया है। गर्भावस्था में महिलाओं के बेहतर पोषण के साथ प्रसव-पूर्व जाँच को सुनिश्चित कराने पर भी ध्यान देती हैं। अपने क्षेत्र की सभी गर्भवती महिलाओं की सूची के अनुसार उनके संस्थागत प्रसव को सुनिश्चित करती हैं। इसके लिए वह प्रसव के 7 दिनों के अंदर उनके घर का भी दौरा करती है। दौरा कर वह गर्भवती महिलाओं की समस्या का समाधान करती हैं।
बच्चों के लिए बनी जीवन रक्षक : जब जिले में एईएस का प्रकोप चरम पर था, उस समय पूनम अपने गाँव के बच्चों को सुरक्षित करने में जुटी थी। एईएस के प्रकोप के पहले ही लोगों को एईएस पर जागरूक करना शुरू किया। सरकारी निर्देशों के अनुसार बच्चों को एईएस से बचाने के लिए पूनम ने घर-घर जाकर लोगों को जागरूक किया। इसका नतीजा रहा कि ततमा टोला एईएस के प्रकोप से सुरक्षित हो सका।
अनुभव ने सिखाया लोगों से जुड़ने की कला : पूनम ने बताया पिछले 25 सालों से वह सेविका के पद पर कार्य कर रही है। यह अनुभव उन्हें लोगों से जुड़ने में काफी सहयोग किया है। बदलाव कभी अचानक नहीं होता। इसके लिए धैर्य की जरूरत होती है। उन्होंने बताया वह लोगों से जुड़ने पर हमेशा से ध्यान देती रही है। इसका नतीजा रहा कि वह महिलाओं को संस्थागत प्रसव जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जागरूक करने में सफलता मिली। अभी भी बहुत परिवर्तन की जरूरत है। इसके लिए वह अपने दायित्वों का पूरी लगन से निर्वहन कर रही है।