मोक्ष प्राप्ति का साधन नहीं है गेरुआ वस्त्र। यह तो मोक्ष के मार्ग पर चलने की प्रतिबद्धता का सूचक है। ये अपने आप में गंतव्य नहीं है, बल्कि उस ओर प्रस्थान की तैयारी है। जब आप किसी काम के लिए तैयार होंगे, तभी उसे पूरा कर पाने की संभावना बनेगी।

तरतम में उतरना हो तो थोड़ा पागल होना जरूरी है। ये पागल होने के रास्ते हैं, और कुछ भी नहीं। ये तुम्हारी होशियारी को तोड़ने के रास्ते हैं, और कुछ भी नहीं। ये तुम्हारी समझदारी को पोंछने के रास्ते हैं, और कुछ भी नहीं। गेरुआ वस्त्र पहना दिया, बना दिया पागल! अब जहां जाओगे, वहीं हंसाई होगी। जहां जाओगे, लोग वहीं चैन से न खड़ा रहने देंगे। सब आंखें तुम पर होंगी। हर कोई तुमसे पूछेगा: ‘क्या हो गया? ’ हर आंख तुम्हें कहती मालूम पड़ेगी, ‘कुछ गड़बड़ हो गई। तो तुम भी इस उपद्रव में पड़ गए? सम्मोहित हो गए?’

गेरुआ वस्त्रों का अपने आप में कोई मूल्य नहीं है। कोई गेरुआ वस्त्रों से तुम मोक्ष को न पा जाओगे। गेरुआ वस्त्रों का मूल्य इतना ही है कि तुमने एक घोषणा की, कि तुम पागल होने को तैयार हो। तो फिर आगे और यात्रा हो सकती है। यहीं तुम डर गए तो आगे क्या यात्रा होगी? आज तुम्हें गेरुआ वस्त्र पहना दिए, कल एकतारा भी पकड़ा देंगे।

उंगली हाथ में आ गई तो पहुंचा भी पकड़ लेंगे। यह तो पहचान के लिए है कि आदमी हिम्मतवर है या नहीं। हिम्मतवर है तो धीरे-धीरे और भी हिम्मत बढ़ा देंगे। आशा तो यही है कि कभी तुम सड़कों पर मीरा और चैतन्य की तरह नाच सको। ये गेरुआ वस्त्र तुम्हें भीड़ से अलग करने का उपाय है, तुम्हें व्यक्तित्व देने की व्यवस्था है; ताकि तुम भीड़ से भयभीत होना छोड़ दो; ताकि तुम अपना स्वर उठा सको, अपने पैर उठा सको, पगडंडी को चुन सको।

राजमार्गों से कोई कभी परमात्मा तक न पहुंचा है, न पहुंचेगा; पगडंडियों से पहुंचता है। और हम धीरे-धीरे इतने आदी हो गए हैं भीड़ के पीछे चलने के, कि जरा-सा भी भीड़ से अलग होने में डर लगता है। जिन मित्र ने पूछा है, किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, बुद्धिमान हैं, सुशिक्षित हैं… फिर विश्वविद्यालय में गेरुआ वस्त्र पहन कर जाएंगे, तो अड़चन मैं समझता हूं।

प्रश्न पूछा है तो जानता हूं कि मन में आकांक्षा भी जगी है, नहीं तो पूछते क्यों। अब सवाल है… हिम्मत से चुनेंगे, कि फिर हिम्मत छोड़ देंगे, साहस खो देंगे? कठिन तो होगा। कहना हो, यही तो पूरी व्यवस्था है।
पूछा है कि माला वस्त्रों के ऊपर ही पहननी क्यों जरूरी है। इच्छा पहनने की साफ है, मगर कपड़ों के भीतर पहनने की इच्छा है। नहीं, भीतर पहनने से न चलेगा; वह तो ना पहनने के बराबर हो गया। वह बाहर पहनाने के लिए कारण है। कारण यही है कि तुम्हें किसी तरह भी भीड़ के भय से मुक्त करवाना है… किसी भी तरह।

किसी भी भांति तुम्हारे जीवन से यह चिंता चली जाए कि दूसरे क्या कहते हैं, तो ही आगे कदम उठ सकते हैं। अगर परमात्मा का होना है तो समाज से थोड़ा दूर होना ही पड़ेगा, क्योंकि समाज तो बिल्कुल ही परमात्मा का नहीं है। समाज के ढांचे से थोड़ा मुक्त होना पड़ेगा।

न तो माला का कोई मूल्य है, न गेरुआ वस्त्रों का कोई मूल्य है; अपने आप में कोई मूल्य नहीं है… मूल्य किसी और कारण से है। अगर यह सारा मुल्क ही गेरुआ वस्त्र पहनता हो तो मैं तुम्हें गेरुआ वस्त्र न पहनाऊंगा; तो मैं कुछ और चुन लूंगा: काले वस्त्र, नीले वस्त्र। अगर यह सारा मुल्क ही माला पहनता हो तो मैं तुम्हें माला न पहनाऊंगा; कुछ और उपाय चुन लेंगे। बहुत उपाय लोगों ने चुने। बौद्ध भिक्षुओं ने केश त्याग किया, उपाय है। अलग हो गए। महावीर दिगंबर हो गए।

थोड़ा सोचो, जिन लोगों ने इन लोगों का अनुसरण करने की सोची होगी, जरा उनके साहस की खबर करो। जरा विचारो। उस साहस में ही सत्य ने उनके द्वार पर आकर दस्तक दे दी होगी। बुद्ध ने राजपुत्रों को, संपत्तिशालियों को धनत्याग कराया, भिक्षापात्र हाथ में दे दिए। जिनके पास कोई कमी न थी, उन्हें भिखारी बनाने का क्या प्रयोजन रहा होगा? अगर भिक्षा से परमात्मा मिलता है तो कई को कभी का मिल गया होता। नहीं, इसका सवाल न था… दरअसल उन्हें उतार कर लाना था वहां, जहां वे निपट पागल सिद्ध हो जाएं। उन्हें तर्क की दुनिया से बाहर खींच लाना था।

उन्हें हिसाब-किताब की दुनिया के बाहर खींच लाना था। जो साहसी थे, उन्होंने चुनौती स्वीकार कर ली। जो कायर थे, उन्होंने अपने भीतर तर्क खोज लिए। उन्होंने कहा, क्या होगा सिर घुटाने से? क्या होगा दिगंबर होने से? क्या होगा गेरुआ वस्त्र पहनने से?

यह असली सवाल नहीं है। असली सवाल यह है, तुममें हिम्मत है? पूछो यह बात कि क्या होगा हिम्मत से। हिम्मत से सब कुछ होता है। साहस के अतिरिक्त और कोई उपाय आदमी के पास नहीं है। दुस्साहस चाहिए!

लोग हंसेंगे। लोग मखौल उड़ाएंगे। और तुम निश्चिंत अपने मार्ग पर चलते जाना। तुम उनकी हंसी की फिक्र न करना। तुम उनकी हंसी से डांवाडोल न होना। तुम उनकी हंसी से व्यथित मत होना। और तुम पाओगे, उनकी हंसी भी सहारा हो गई; और उनकी हंसी ने भी तुम्हारे ध्यान को व्यवस्थित किया; और उनकी हंसी ने भी तुम्हारे भीतर से क्रोध को विसर्जित किया; और उनकी हंसी ने भी तुम्हारे जीवन में करुणा का प्रवेश किया।

यह सब समाज के दायरे से मुक्त करने की व्यवस्था है। जिसको मुक्त होना हो और जिसे थोड़ी हिम्मत हो अपने भीतर, भरोसा हो थोड़ा अपने पर; अगर तुम बिल्कुल ही बिक नहीं गए हो समाज के हाथों; और अगर तुमने अपनी सारी आत्मा गिरवी नहीं रख दी है; तो चुनौती स्वीकार कर लो।

सत्य कमजोरों के लिए नहीं है, साहसियों के लिए है। गेरुआ का सत्य उस मार्ग पर जाने के लिए है, जहां आपको साहस के साथ आगे बढ़ते रहना है, जब तक परमात्मा ना मिल जाएं।

गेरुआ वस्त्रों का अपने आप में कोई मूल्य नहीं है। गेरुआ वस्त्रों से तुम मोक्ष न पा जाओगे। गेरुआ वस्त्रों का मूल्य इतना ही है कि तुमने एक घोषणा की, कि तुम पागल होने को तैयार हो। तो फिर आगे और यात्रा हो सकती है।

(सौजन्य: ओशोधारा नानक धाम, मुरथल, सोनीपत)

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