राजस्थान में सीकर जिले के खाटू में खाटूश्यामजी के फाल्गुन मेले में राजस्थान ही नहीं, दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं। खाटूश्यामजी का मेला पूरे विश्व में विख्यात है। खाटू मंदिर में पाण्डव महाबली भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र वीर बर्बरीक का शीश विग्रह रूप में विराजमान है। बर्बरीकजी को उनकी अतुलनीय वीरता एवं त्याग के कारण भगवान श्री कृष्ण से वरदान मिला था कि कलियुग में बर्बरीक स्वयम् श्री कृष्ण के नाम एवं स्वरूप में पूजे जाएंगे। इसलिए बर्बरीक श्री श्याम बाबा के रूप में खाटू धाम में पूजे जाते हैं। बर्बरीक जी का शीश फाल्गुन शुक्ल एकादशी को प्रकट हुआ था, लिहाजा इस उपलक्ष्य में फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की दशमी से द्वादशी तक यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें विश्वभर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है । यह मेला फाल्गुन शुक्ल दशमी से द्वादशी तक तीन दिनों तक चलता है एवं यह होली से कुछ समय पूर्व ही लगता है। श्याम बाबा की महिमा का गुणगान पुरे विश्व में होता है।
मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु श्रीश्याम प्रभु को अपनी विनयांजलि देने के लिए एकत्र होते हैं। भक्तों के बड़े-बड़े दल पदयात्रा करते श्री श्याम प्रभु के गीत एवं जयकारे लगाते खाटू की ओर उमड़े आते हैं। इस यात्रा को ‘निशान यात्रा’ भी कहा जाता है। मेले के दौरान लाखों भक्त्त श्री श्याम को निशान (ध्वज) अर्पित करते हैं। कहा जाता है कि श्री श्याम को निशान अर्पित करने से श्याम हमारी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। भक्त श्री श्याम के उपनामों के उल्लेख से उनका महिमा का वर्णन एवं उनके प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते चलते हैं।
मेले के समय श्रद्धालु श्याम कुण्ड में डुबकी भी लगते लगाते हैं। श्याम कुण्ड वही स्थान है, जहां श्री श्याम का शालिग्राम विग्रह प्राप्त हुआ था। कहते हैं की श्याम कुण्ड के जल में आरोग्य कारक और पापों का नाश कर देने की शक्ति है। अत: इसे बहुत पवित्र माना जाता है। श्याम मेले के दौरान इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इसलिए मेले के तीनों दिनों में प्रतिदिन लाखों लोग खाटू आते हैं और श्याम कुण्ड में डुबकी लगते है। श्रद्धालु श्री श्याम की एक अनमोल झलक पाने के लिए घण्टों मंदिर के बाहर पंक्तियों में लगे रहते हैं और श्याम नाम का गुणगान करते रहते हैं।
इस दौरान खाटू में भक्तों के भोजन के लिये व्यवस्था बड़े स्तर पर की जाती है और खाटू आने वाले सभी यातायात के साधन बढ़ा दिए जाते हैं। यह मेला समाज में न केवल धार्मिक एकता का प्रतीक है, लेकिन यह समाज में शक्ति, एकता एवं उत्साह को भी दशार्ता है।