केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा है कि नौकरियों में एससी-एसटी समुदाय के लिए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को दुरुस्त करने के लिए सरकार एक अध्यादेश लाए। साथ ही न्यायिक समीक्षा से अलग रखने के लिए सरकार ऐसे सभी मुद्दों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करे। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार शीर्ष कोर्ट के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने पर विचार कर रही है और इसपर कानूनी राय ले रही है।
अध्यादेश जारी करने के बाद संविधान संशोधन है आसान रास्ता
पासवान ने कहा, ‘समीक्षा याचिका दायर की जाएगी, लेकिन मुद्दा फिर कोर्ट में जाएगा। यह देखना चाहिए कि इसमें सफलता मिलेगी या नहीं, इसलिए मेरे विचार से आसान रास्ता अध्यादेश जारी करने के बाद संविधान संशोधन है।’ लोक जनशक्ति पार्टी के नेता ने यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले के बाद पैदा हुए राजनीतिक तूफान के परिप्रेक्ष्य में की। कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि नियुक्तियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को आरक्षण मुहैया कराने के लिए राज्य बाध्य नहीं हैं। प्रोन्नति में कोटा का दावा करना बुनियादी अधिकार नहीं है।
एससी और एसटी के हितों के खिलाफ है फैसला
केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पासवान ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट कहता है कि नौकरी में आरक्षण देना राज्य सरकार पर निर्भर है और यह बुनियादी अधिकार नहीं है। लोगों की आपत्ति है कि यह एससी और एसटी के हितों के खिलाफ है।’ पासवान ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर इस मुद्दे पर राजनीति करने का आरोप लगाया।
अध्यादेश के बाद कानून लाया जाए
इस बीच, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो उस दौरान अध्यादेश लाया जा सकता है। जारी सत्र के थोड़े समय के विराम की अवधि में भी यदि सरकार अध्यादेश लाना चाहती है तो दोनों सदनों में से एक स्थगित (अनिश्चितकाल) होना चाहिए। जैसे ही राष्ट्रपति अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर देंगे, उद्देश्य के लिए स्थगित किया गया सदन फिर से बहाल किया जा सकता है। इसके कई दृष्टांत हैं। अध्यादेश का काल छह महीने का होता है। सत्र शुरू होने पर छह सप्ताह में इसे कानून का रूप दिया जाना चाहिए अन्यथा यह निष्प्रभावी हो जाएगा।