जोधपुर. (चेतनकुमार मालवीय). यह है बिलाड़ा के बडेर बास में रहने वाली घीसी देवी। 75 साल की उम्र है। उनके साथ बेटा रहता है। दोनों लॉकडाउन के दौरान घर से नहीं निकले। यहां तक कि आटा पिसाने भी नहीं गए। वे खुद बरसों पुरानी घर में रखी चाकी से आटा पीस रहीं हैं। वे बतातीं हैं कि आम दिनों में भी आटा घर में पीस लेते हैं। अब तो घर से बाहर निकलने की मनाही भी है। कहतीं हैं मैंने तो 15 साल की उम्र में मां खमु के साथ आटा पीसना सीख लिया था। बाजार में आटा चक्कियों की सुविधा तो हाल ही के बरसों में हुई है। दो बेटियां ससुराल चली गई। अब मां-बेटे घर में हैं। दोनों के लिए रसोई भी खुद बनाती है। पिछले एक महीने में करीब 30 किलो गेहूं व बाजरी पीसे। एक किग्रा गेहूं की पिसाई एक घंटे में कर पाती है।

75-year-old Gheesi Devi did not come out of her house in lockdown, she was grinding herself with flour and spices for years.

पौष्टिक भोजन, शुद्धता भी और शरीर भी स्वस्थ

दालें भी घर पर खुद बना लेतीं हैं। मिर्च, धनिया, हल्दी जैसे मसाले भी बाजार से नहीं लाते। सर्दी के मौसम में बाजरी की पिसाई भी इसी घटी से करती हैं। घीसी देवी ने बताया कि घटी के आटे से बनी रोटी स्वादिष्ट होती है। साथ ही इसमें पसीना बहाने से शरीर स्वस्थ रहता है।

कहा- अस्पताल का मुंह नहीं देखना पड़ेगा

उन्होंने कहा कि उसका अनुभव है कि घटी फेरने वाली महिलाओं को कभी अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही उनका कहना है कि गर्भवास्था में महिला को किसी समस्या का सामना भी नही करना पड़ता है।

Input : Dainik Bhaskar

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