स्थानीय निकाय प्राधिकार के जरिए विधान परिषद के होने वाले चुनाव में अमीर उम्मीदवार और चुनाव आयोग के बीच तू डाल-डाल, मैं पात-पात वाला खेल चल रहा है। अब तक की परिपाटी यह रही है कि धन-बल के मजबूत उम्मीदवार पहले त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधियों से जीत का प्रमाण-पत्र (सर्टिफिकेट) ले लेते थे। मतदान के दिन मतदाता के साथ किसी अपने को भेज कर पक्ष में वोट दिलवा देते थे। इस बार आयोग ने प्रमाण-पत्र के बदले जिला निर्वाचन कार्यालय से जारी आइडी कार्ड के आधार पर मतदान कराने का फैसला किया है। जिला स्थित निर्वाचन कार्यालयों में आइडी बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।’

आशा की जा रही है कि चुनाव की बदली प्रक्रिया से स्थानीय निकाय से होने वाले विधान परिषद के चुनाव की बदनामी कम होगी। यह ऐसा (एकमात्र कह सकते हैं) चुनाव है, जिसमें पार्टियां उम्मीदवारों से जन-सरोकार और समाज-सेवा के बदले बैंक बैलेंस और नकदी खर्च करने के हौसला के बारे में पूछती है। बजाप्ता खर्च करने की क्षमता के आधार पर टिकट का वितरण होता है। नतीजतन, आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग भी उच्च सदन में पहुंच जाते हैं। यह परिपाटी नई नहीं है, लेकिन 2009 के विधान परिषद चुनाव के समय से इसकी अधिक चर्चा शुरू हुई। 2015 के विधान परिषद चुनाव में कई ऐसे चेहरे चुनकर आए, जिनका सामाजिक सरोकार संदिग्ध था।

क्या बदलाव होगा

अगर आइडी के आधार पर मतदान होगा तो पुराने तर्ज पर मतदाताओं के निर्वाचन प्रमाण-पत्र खरीद कर इत्मीनान से बैठे उम्मीदवारों को घाटा उठाना पड़ेगा। नई व्यवस्था में खरीदे गए ये प्रमाण-पत्र रद्दी हो जाएंगे। उम्मीदवारों को नए सिरे से प्रयास करना होगा। फिर भी इसकी कोई गारंटी नहीं रह जाएगी कि मतदाताओं ने धन के बदले वोट दिया या नहीं। पहले मतदाताओं को अशिक्षित बताकर उम्मीदवार किसी अपने आदमी को उसके के साथ लगा देते थे। वह अपना आदमी क्रेता उम्मीदवार के नाम पर निशान लगा देता था।

निरक्षर को मिलेंगे सहयोगी

कोई भी मतदाता खुद को अशिक्षित बताकर वोट गिराने में मदद के लिए सहयोगी नहीं ले जा पाएगा। चुनावी शपथ-पत्र में दर्ज विवरण के आधार पर तय होगा कि मतदाता साक्षर है या निरक्षर। प्रतिनिधियों के आइडी पर भी उनके साक्षर-निरक्षर होने का विवरण दर्ज रहेगा। मतदान अधिकारी इसी जानकारी पर किसी को सहयोगी ले जाने की अनुमति देंगे। इससे यह पता करने में कठिनाई होगी कि वोट बेच चुका प्रतिनिधि क्रेता उम्मीदवार को ही वोट दिया।

Source : Dainik Jagran

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