संतान की दीर्घायु, आरोग्यता व कल्याण के लिए किए जाने वाले जीवित्पुत्रिका व्रत यानी जीउतिया की काफी महत्ता है। यह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ इसकी शुरुआत होगी। व्रत के पूर्व दिवस पर गुरुवार को माताएं जरूरी सामग्री की खरीदारी में जुटी रहीं।
शनिवार को दिन-रात निर्जला व्रत रखने के बाद रविवार की दोपहर तीन बजे के बाद माताएं पारण करेंगी। रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पंडित रमेश मिश्र व सिकंदरपुर मोड़ स्थित बाबा अजगैबीनाथ मंदिर के पुजारी पंडित संजय मिश्र ने बताया कि शनिवार की सुबह पांच बजे के पूर्व ओठगन की रस्म होगी।
शास्त्रों में बताया गया है कि जो भी स्त्रियां संतान के दीर्घायु, आरोग्य व कल्याण की कामना से पूरी निष्ठा से जिमूतवाहन देव की पूजा-आराधना करती हैं। व्रत रखते हुए निष्ठापूर्वक कथा श्रवण कर ब्राह्मण को यथा सामथ्र्य दान-दक्षिणा देती हैं, उन्हें संतान सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है।
सदर अस्पताल स्थित मां सिद्धेश्वरी दुर्गा मंदिर के पुजारी पंडित देवचंद्र झा बताते हैं कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन माताएं निर्जला व्रत करती हैं। सूर्योदय के बाद कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है। अगले दिन नवमी तिथि में व्रत का पारण किया जाता है। व्रत के पहले दिन माताएं नहाय-खाय के साथ इसकी शुरुआत करती हैं।
वे महिला पितरों व जिमूतवाहन को सरसों का तेल व खल्ली चढ़ाती हैं। इसमें मड़ुआ के आटा की रोटी, नोनी का साग व झिंगुनी की सब्जी का खास महत्व बताया गया है। शुक्रवार को माताएं सुबह जल्दी जगने के बाद पूजा-पाठ कर भोजन ग्रहण करेंगी। एक बार भोजन करती हैं। उसके बाद दिन भर कुछ भी नहीं खातीं।
भगवानपुर की गीता देवी ने कहा कि जीवित्पुत्रिका संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। कई विवाहित महिलाएं इसे पुत्र प्राप्ति के लिए भी करती हैं। बीबीगंज की रानी देवी ने कहा कि व्रत के बारे में लोगों की आस्था है कि इसे करने से भगवान जिमूतवाहन पुत्र पर आने वाली सभी परेशानियों से उसकी रक्षा करते हैं।
Input : Dainik Jagran