हमारी रोजमर्रा की जिदगी पर दिन-प्रतिदिन आधुनिकता हावी होती जा रही है और इसका साफ असर हमारी संस्कृति हमारी परंपरा पर परिलक्षित हो रहा है। आधुनिकता की चकाचौंध में हम अपनी संस्कृति अपनी परंपरा को भूलते जा रहे हैं। वैश्वीकरण के इस बाजार ने भारतीय परंपरा, त्योहारों को भी पूरी तरह से अपने आगोश में जकड़ लिया है।
यही कारण है कि सदियों से चली आ रही परंपरा अपने वजूद से कोसों दूर भाग रही है। आधुनिकता का असर दीपावली जैसे पर्व पर भी पड़ा और वह परंपरा से दूर होती जा रही है। यही वजह है कि दीपावली के मौके पर घरौंदा बनाने की परंपरा भी आज महज औपचारिकता बनकर रह गई है।
दीपों के पर्व दीपावली पर गणेश लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ घरौंदा की पूजा करने की भी परंपरा सदियों से चली आ रही है लेकिन समय के साथ घरौंदा पूजा में भी आधुनिकता का रंग चढ़ गया है। जहां दीपावली के एक पखवाड़े पूर्व से ही अविवाहित लड़कियां मिट्टी का घरौंदा बनाने की तैयारी में जुट जाती थी। अपने हाथों से मिट्टी से घरौंदा तैयार करती थी, फिर उसको रंगों से सजाती थी। मिट्टी के दीये जलाकर नौ प्रकार की मिठाई, सात प्रकार का भूंजा आदि मिट्टी के बर्तन में भरकर विधि-विधान के साथ घरौंदा पूजन करती थी।
मान्यता है कि ऐसा करने से विवाह के बाद उनका दांपत्य जीवन सुखमय होगा लेकिन इस कंप्यूटर युग में लोग इस परंपरा से भी कटते जा रहे हैं। दीपावली के मौके पर मिट्टी का घरौंदा अब विरले ही दिखाई पड़ता है पर कुछ घरों में मिट्टी के घरौंदे की जगह थर्मोकोल व चदरा निर्मित बाजार में बिक रहे घरौंदा खरीदकर पूजा की रस्म अदायगी जरूर की जाती है।
Source : Dainik Jagran
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