मुजफ्फरपुर। रंगों का उत्सव होली। अब जबकि, होली में गिनती के दिन शेष रह गए है, इलाके में उल्लास दिख रहा है। गांव से लेकर शहर तक पर्व मनाने की तैयारी है। बदलते दौर में रंगों के पर्व होली की तस्वीर बदल गई है। परंपरा पर आधुनिकता हावी हो गया है। हर साल होली में लोग होलिका दहन के नाम पर पेड़ों की कटाई कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वहीं केमिकल युक्त रंग-पेंट का उपयोग कर सेहत खराब कर रहे है। इतना ही नहीं होली के नाम पर हर साल लाखों गैलन पानी की बर्बादी करते है। हालांकि, पर्यावरण की रक्षा को लेकर दैनिक जागरण के सूखी होली अभियान में लोग शामिल हो रहे हैं। लोग, खुद सूखी होली खेलने का संकल्प ले रहे हैं। वहीं दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं। बोले लोग, पेड़ और जल बचाना जरूरी डॉ. ललित किशोर कहते हैं कि होली रंगों का त्योहार है। लेकिन इस पर्व के दौरान हम जल और पेड़ को क्षति पहुंचा कर अपने जीवन को असुरक्षित कर रहे है। प्रकृति की रक्षा के लिए पेड़ और जल बचाना जरूरी है। ऐसे में रासायनिक रंग से परहेज करें। स्वदेशी गुलाल व फूलों की होली खेले। इससे पानी की बचत होगी और पर्यावरण की रक्षा भी।
राजनीतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अवधेश कुमार के अनुसार, सूखी होली त्वचा की रक्षा के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी आवश्यक है। सूखी होली खेलने से पानी की बचत होती है। साथ ही केमिकल युक्त रंगों का असर त्वचा पर पड़ता है। पेड़ों की कटाई से पर्यावरण प्रभावित होता है। ऐसे में जरूरी है कि हम पेड़ों की रक्षा करें और पानी की बर्बादी रोकें।
रामबाग चौरी के रीतेश रंजन कहते हैं कि होली रंगों का उत्सव है। यह हमारी संस्कृति की पहचान है। दशकों से होली खेलने की परम्परा है। लेकिन, हर साल होलिका दहन में हरे-भरे पेड़ काट दिए जाते हैं और लाखों लीटर पानी बर्बाद कर दिया जाता है। ऐसे में सूखी होली खेलकर पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
बीबीगंज के आनंद स्वरूप वर्मा कहते हैं कि सूखी होली खेल सेहत और पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है। होली के नाम पर लोग पेड़ों की कटाई कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे है। ऐसे में गुलाल से होली खेलने का आनंद उठाना चाहिए। पानी अनमोल है। होली के दौरान लाखों गैलन पानी की बर्बादी को रोके।
Input : Dainik Jagran