भारत के लिए एक बड़ी ही मशहूर कहावत है, कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी. ऐसे में भारत की अलग-अलग संस्कृति और सभ्यताओं से हर देश भारत और हिंदू धर्म का लोहा मानता है. दरअसल हिंदू धर्म में बड़ों के सामने नतमस्तक होना और विवाहित महिलाओं का अपनी मांग में सिंदूर लगाना जैसी प्राचीन परंपराएं और संस्कार है जो सदियों से चली आ रही हैं और आज के आधुनिक युग में भी इनका पालन हो रहा है. हिंदू धर्म की इन परंपराओं के आगे विज्ञान भी नतमस्तक है, वास्तव में इनके पीछे भी कई वैज्ञानिक आधार हैं. आइए जानते हैं हिदू धर्म की परंपराओं का वैज्ञानिक अर्थ..
बड़ों के पैर छूना
हिंदू धर्म में आज भी हर छोटे बच्चे को सिखाया जाता है कि बड़े का आशीर्वाद लेने के लिए उनके चरण स्पर्श करें. विज्ञान में भी माना जाता है कि पैर छूने से दिमाग से निकलने वाली सकारात्मक एनर्जी हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्कर पूरा कर लेती है. इससे नकारात्मकता दूर होती है, अहंकार मिटता है और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रेम, समर्पण का भाव जागता है जो हमारे व्यक्तित्व को भी प्रभावशाली बनाता है.
माथे पर तिलक लगाना
हिदुओं में पूजा पाठ के दौरान या किसी शुभ कार्य के मौके पर माथे पर तिलक लगाए जाने की परंपरा है. तिलक लगाने के पीछे का तथ्य ये है कि हमारे माथे के बीचोंबीच आज्ञाचक्र होता है. यही जगह पीनियल ग्रन्थि का होता है. जब उस जगह पर तिलक लगाया जाता है तो पीनियल ग्रन्थि का उद्दीपन होता है. इससे शरीर के सूक्ष्म और स्थूल कॉम्पोनेंट जागते हैं. मस्तक पर तिलक लगाने से बीटाएंडोरफिन और सेराटोनिन नामक रसायनों का स्राव भी संतुलित होता है. इससे मस्तिष्क शांत होता है. एकाग्रता बढ़ती है, गुस्सा और तनाव कम होता है और सकारात्मक सोच विकसित होती है.
हाथ जोड़ कर नमस्ते करना
भारत में आज भी लोग एक-दूसरे के सम्मान में नमस्ते करते हैं. पूरी दुनिया ने कोविड काल में इस बात की महत्वता समझी लेकिन भारत ऐसा कई सदियों से करता आ रहा है. दरअसल नमस्ते करने का एक वैज्ञानिक तर्क भी है. विज्ञान कहता है कि जब हम नमस्ते करने के लिए हाथ जोड़ते हैं तो हमारी उंगलियां एक-दूसरे को स्पर्श करती हैं. इस दौरान एक्यूप्रेशर से हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किसी तरह के संक्रमण का भी खतरा नहीं रहता. वहीं विदेशी परंपरा है कि लोग जब मिलते हैं तो हाथ मिलाते हैं. ऐसे में एक-दूसरे के हाथों को छूने से बैक्टीरिया के संपर्क में आने का खतरा बढ़ता है. इसीलिए कोविड के समय में विदेशी लोगों ने भी नमस्ते की संस्कृति को अपनाया है.
जमीन पर बैठकर खाना
आजकल दुनिया भर के साथ भारत में भी डाइनिंग टेबल पर खाना खाने का चलन चल रहा है. लेकिन प्राचीन भारत में लोग जमीन पर तसल्ली से बैठकर ही खाना खाते थे. हालांकि आज भी भारत के अधिकतर घरों में लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ जमीन पर बैठकर ही खाना खाते हैं. जमीन पर पालथी लगाकर बैठा जाता है, तब भोजन किया जाता है. वास्तव में पालथी लगाकर बैठना एक योग क्रिया है. इससे हमारा डायजेशन सिस्टम दुरुस्त होता है. साथ ही साथ बैठकर भोजन करने से आपसी प्रेम बना रहता है.
मांग में सिंदूर भरना
हिंदू धर्म की महिलाएं आज भी शादी के बाद मांग में सिंदूर भरती हैं. इसका वैज्ञानिक तथ्य ये है कि सिंदूर को सिर के जिस हिस्से पर लगाया जाता है, वो बहुत ही कोमल होता है. इस जगह को ‘ब्रह्मरंध्र’ कहते हैं. दरअसल सिंदूर में पारा (Mercury) होता है, जो एक दवा की तरह काम करता है और महिलाओं का ब्लडप्रेशर कंट्रोल में रखने में मददगार माना जाता है. ये तनाव और अनिद्रा की समस्या को भी कंट्रोल करता है. साथ ही यौन उत्तेजना को बढ़ाता है. यही वजह है कि कुंवारी लड़कियों और विधवा महिलाओं के सिंदूर लगाने पर पाबंदी होती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. मुजफ्फरपुर नाउ इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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