लगभग एक महीने की हील-हुज्जत के बाद देशभर में फंसे मज़दूरों को उनके गांव लाने के लिए ट्रेने चलीं. नाम दिया गया श्रमिक एक्सप्रेस. अब ख़बर आ रही है कि इसी श्रमिक एक्सप्रेस में बिठाकर क़रीब-क़रीब 222 मजदूरों को तेलंगाना के लिंगमपल्ली भेजा गया है.
ये हैरान करने वाली स्थिति है कि जिस दौर में लाखों बिहारी मज़दूर बिना किसी सुविधा के भी अपने घर आना चाह रहे हैं. आ भी रहे हैं उसी वक्त में इतने मजदूरों को उनके घर से दूर तेलंगाना भेजा जा रहा है.
बिहार के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस बाबत सोशल मीडिया पर सवाल किया है. उन्होंने ट्विट्ट करके बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल पूछा है कि क्या आपकी जानकारी में ये मामला है?
वहीं ख़गड़िया के वरिष्ठ पत्रकार अजिताभ ने कंफर्म किया है कि जो मजदूर भेजे गए हैं वो ख़गड़िया के ही थे. पटना में रहने वाले और बिहार की घटनाओं पर बारीक नज़र रखने वाले पुष्यमित्र ने पत्रकार अभिजीत के हवाले से फ़ेसबुक पर लिखा है, “रिवर्स माइग्रेशन : देशभर से प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है. पैदल चलकर पदाति श्रम योद्धाओं ने हठी सरकारों को स्पेशल श्रमिक ट्रेन चलाने पर मजबूर कर दिया. लेकिन खगड़िया से रिवर्स माइग्रेशन का पहला मामला 222 मजदूरों के तेलंगाना के लिंगमपल्ली जाने का है. ये सभी वहां चावल मिलों में काम करते थे. होली में अपने गांव आए थे और लाॅक डाउन में फंस गए थे. तेलंगाना सरकार ने 1200 मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेन बुक कराया लेकिन गये 222. डीएम आलोक रंजन घोष का कहना है कि बिहार सरकार के आदेश से इन मजदूरों को अपनी मर्जी से तेलंगाना राज्य भेजा गया है.”
क्या माननीय मुख्यमंत्री @NitishKumar जी बताएँगे कि कल रात बिहार के ख़गड़िया से लगभग 250-300 मज़दूरों को ट्रेन द्वारा तेलंगाना क्यों भेजा गया है? क्या यह मामला आपके संज्ञान में है? https://t.co/aw0DVqtntN
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) May 7, 2020
सवाल उठता है कि देशभर में फंसे मजदूरों को बिहार लाने के लिए ट्रेन चलवाने में एक महीना लग गया लेकिन घर से मज़दूरों को चावल मील तक पहुंचाने के लिए ट्रेन इतनी जल्दी कैसे चल गई? तेलंगाना सरकार ने कहा और बिहार सरकार ने तुरंत इजाज़त भी दे दी? रात में अंधेरे में मज़दूर अपने घर से दूर भेज दिए गए और कह दिया गया कि ये सब अपनी मर्ज़ी से गए हैं.
पत्रकार अजिताभ द्वारा दी गई जानकारी को देखिए तो समझ आता है कि ये मज़दूर कैसे गए होंगे. सरकार ने 1200 मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेन बुक करवाई थी और गए केवल 222 मज़दूर. ख़गड़िया के ज़िलाधिकारी का कहना है कि सभी मज़दूर अपनी मर्ज़ी से गए हैं. क्या लॉकडाउन के दौरान किसी को भी अपनी मर्ज़ी से कहीं जाने का अधिकार है? जब एक वायरस की वजह से पूरे देश की मर्ज़ी पर ‘लॉकडाउन’ लगा है तो मजदूरों की मर्ज़ी से उन्हें तेलंगाना क्यों भेज दिया गया?
आज ही ये ख़बर भी आई कि तीन ट्रेन मांग चुकी बैंगलोर सरकार ने ऐन मौक़े पर ट्रेनों को कैंसल करवा दिया जबकि राज्य के “सेवा सिंधु पोर्टल” पर 2,40,000 से अधिक प्रवासी मजदूरों ने रजिस्टर करवाया था कि वो राज्य में वापिस लौटना चाहते हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक़ बिल्डरों और ठेकेदारों की लॉबी “CREDAI” से मीटिंग के बाद कर्नाटक भाजपा सरकार ने प्रवासी मजदूरों को ले जाने वाली “स्पेशल ट्रैन” कैंसिल कर दी हैं. हालंकी देर रात मालूम हुआ कि कर्नाटक सरकार ने ट्रेन रद्द करने वाला अपना फ़ैसला वापिस ले लिया है.
सवाल ये भी है गुजरात के सूरत में दो बार प्रवासी मजदूर सड़कों पर निकल चुके हैं. पुलिस और मजदूरों के बीच भिड़ंत भी हो चुकी है. आरजेडी के एक विधायक से बात करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने कहा था कि नीतीश कुमार कह दें तो वो सभी मजदूरों को घर भेज देंगे. इतना सब कुछ होने के बाद भी अभी तक सूरत से कोई ट्रेन बिहार क्यों नहीं आई है? कैसे बिहार से मजदूरों को लॉकडाउन के बीच में तेलंगाना भेज दिया है?
Input : Asiaville News