मुंबई. शायद ही कभी किसी ने सोचा होगा कि दुनियाभर में ब्लैक गोल्ड (Black Gold) के नाम से मशहूर कच्चा तेल पानी से भी सस्ता हो जाएगा. लेकिन बीते हफ्ते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल (Crude Oil Price) के दाम जीरो डॉलर प्रति बैरल के नीचे चले गए. हालांकि, अब कीमतों में फिर से तेजी आ रही है. डब्ल्यूटीआई क्रूड के दाम 50 फीसदी बढ़कर 17 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गए हैं. इस पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा समय में तो सस्ते कच्चे तेल का फायदा भारत को नहीं मिलेगा. लेकिन 3 मई को लॉकडाउन खुलने के बाद इसका अर्थव्यवस्था और उपभोक्ताओं पर सकारात्मक असर होगा.

कैसे पानी से भी सस्ता हुआ कच्चा तेल- मौजूदा समय में एक लीटर कच्चे तेल के दाम 17 डॉलर प्रति बैरल है. एक बैरल में 159 लीटर होते हैं. इस तरह से देखें तो एक डॉलर की कीमत 76 रुपये है. इस लिहाज से एक बैरल की कीमत 1292 रुपये बैठती है. वहीं, अब एक लीटर में बदलें तो इसकी कीमत 8.12 रुपये के करीब आती है. जबकि देश में बोतलबंद पानी की कीमत 20 रुपये के करीब है.

Why Crude Oil Price Crash Hasn't Made Petrol, Diesel Cheaper For ...

मई महीने में तेल का करार निगेटिव हो गया है. मतलब ये कि खरीदार तेल लेने से इनकार कर रहे हैं. खरीदार कह रहे हैं कि तेल की अभी जरूरत नहीं, बाद में लेंगे, अभी अपने पास रखो. वहीं, उत्पादन इतना हो गया है कि अब तेल रखने की जगह नहीं बची है. ये सब कुछ कोरोना महामारी की वजह से हुआ है.

गाड़ियों का चलना लगभग बंद हैं. कामकाज और कारोबार बंद होने की वजह से तेल की खपत और उसकी मांग भी कमी आई है. कनाडा में तो तेल के कुछ उत्पादों की कीमत माइनस में चली गई है. सोमवार को जब बाजार खुला तो अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट कच्चे तेल का भाव 10.34 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया था जो 1986 के बाद इसका सबसे निचला स्तर था.

इसके बाद दोपहर तक ये दो डॉलर प्रति बैरल के न्यूनतम स्तर पर आया और गिरते-गिरते 0.01 डॉलर प्रति बैरल पर जा पहुंचा.

अब आप जानना चाहेंगे कि ब्रेंट और WTI में क्या अंतर होता है? ब्रेंट क्रूड को उत्तरी समुद्र से निकाला जाता है. जबकि WTI अमेरिका में स्थित लुसियाना, टेक्सास और उत्तरी डेकोटा से तेल निकालते हैं.

3 मई के बाद मिल सकता है भारत को फायदा- केडिया कमोडिटी के एमडी अजय केडिया कहते हैं कि 3 मई के बाद अगर लॉकडाउन हटता है तो भारत की अर्थव्यवस्था को इसका फायदा मिलेगा. क्रूड की गिरती कीमतों से भारत को अपना व्यापार घाटा कम करने में कुछ हद तक मदद जरूर मिलेगी. लेकिन गिरती अर्थव्यवस्था के बीच क्रूड की गिरती कीमतें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बहुत ज्यादा मददगार नहीं होंगी. भारत में अभी स्लोडाउन के चलते कंजम्पशन कम है. इसलिए इसका बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा. वैसे भी कच्चे तेल के अधिकांश सौदे भविष्य के आधार पर किए जाते हैं.ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (ओएमसी), टायर इंडस्ट्री, सिंथेटिक फाइबर प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियां, पेंट कंपनियों और साबुन और डिटर्जेंट कंपनियों को क्रूड की गिरती कीमतों से लाभ हो सकता है.

How Much Crude Oil Has The World Really Consumed? | OilPrice.com

क्यों गिर रहे हैं कच्चे तेल के दाम-  अजय केडिया का कहना है कि असल में रूस प्रोडक्शन घटाने के पक्ष में नहीं था, जबकि ओपेक देश प्रोडक्शन घटाने की बात कह रहे थे. यही असहमति प्राइस वार का कारण बन गई. इसी वजह से सऊदी अरब ने रूस के साथ क्रूड को लेकर प्राइस वॉर छेड़ दिया है. उसने क्रूड की कीमतें भी घटा दी हैं. जिसके बाद कच्चे तेल के दामों में भारी गिरावट आई.

अब सवाल उठता है कि क्या वाकई भारत को इस भारी गिरावट से फायदा होगा? इसका जवाब है बिल्कुल नहीं. क्योंकि भारत ब्रेंट क्रूड आयात करता है. भारत की आपूर्ति OPEC मुल्कों से होती हैं. साथ ही ब्रेंट कूड की कीमतों के लिए बेंचमार्क तय है.

रूस गिरती कीमतों को थामने के लिए प्रोडक्शन कट करने को तैयार नहीं था. इसी वजह से सऊदी अरब ने प्राइस वार छेड़ा और क्रूड की कीमतों में भारी कटौती कर दी. वहीं, आगे के लिए प्रोडक्शन बढ़ाने की योजना का ऐलान किया.

अब सवाल उठता है कि क्या और सस्ता होगा पेट्रोल-डीज़ल. इस पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि पेट्रोल के दाम कई चीजों से तय होते हैं. इसमें एक कच्चा तेल भी है. इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद भारत में उस अनुपात में पेट्रोल-डीजल की कीमतें क्यों नहीं घटतीं? इसकी दो बड़ी वजह हैं-

पहली वजह-भारत में पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला भारी टैक्स है. वहीं, दूसरी वजह डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी है. आपको बता दें कि पेट्रोल पर फिलहाल 19.98 रुपये एक्साइज ड्यूटी लगती है. वैट के तौर पर 15.25 रुपये वसूले जाते है.

पेट्रोल पंप के डीलर को 3.55 रुपये कमीशन दिया जाता है. राज्यों में वैट की दरें अलग-अलग हैं. यह रेंज 15 रुपये से लेकर 33-34 रुपये तक है. इसलिए राज्यों पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी अलग-अलग हैं. एक लीटर डीजल पर यह टैक्स लगभग 28 रुपये का पड़ता है. यानी पेट्रोल-डीजल की कीमत का आधा से ज्यादा हिस्सा टैक्स का है.

Nigeria's crude oil production dips by 95,000 bpd

दूसरी वजह यानी रुपये की कमजोरी की बात करते हैं. इकोनॉमी में लगातार गिरावट के साथ ही हमारा रुपया भी लगातार कमजोर होता जा रहा है. दिसंबर 2015 में हम एक डॉलर के बदले 64.8 रुपये अदा करते थे. लेकिन अब ये 76 रुपये से ज्यादा हो गया हैं. सीधे-सीधे 15 फीसदी अधिक कीमत देनी पड़ रही है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय क्रूड हमारे लिए सस्ता होकर भी महंगा पड़ रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार के लिए यह बोझ बना हुआ है.

Input : News18

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