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केंद्रीय कर्मचारियों को मिला दिवाली गिफ्ट, सरकार ने 3% DA बढ़ाने का किया ऐलान

केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए आज बड़ा फैसला लिया गया है. उनके लिए दिवाली के तोहफे के रूप में महंगाई भत्ते को बढ़ाने का फैसला लिया गया है. कैबिनेट मीटिंग में गुरुवार को केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए महंगाई भत्ते को 3 फीसदी बढ़ाने को मंजूरी दी गई है.
DA में 3 फीसदी की और बढ़त होने का मतलब यह है कि अब महंगाई भत्ता (DA) 31 फीसदी होगा. इस बढ़त का सीधा फायदा 1 करोड़ से ज्यादा केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनर्स को मिलेगा.
गौरतलब है कि इस साल जुलाई में ही सरकार ने महंगाई भत्ता में 11 फीसदी की बढ़त कर इसे 28 फीसदी किया था. इससे पहले DA का भुगतान 17 फीसदी की दर से हो रहा था.
क्यों हुई बढ़त
असल में लेबर मिनिस्ट्री ने AICPI के पिछले तीन महीनों के आंकड़े जारी किए थे. इनमें जून, जुलाई और अगस्त का नंबर शामिल था. AICPI इंडेक्स अगस्त में 123 अंक पर पहुंच चुका है. इससे ही यह संकेत मिल गया कि महंगाई भत्ते में सरकार आगे और बढ़त कर सकती है. इसके आधार पर ही केंद्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता तय होता है.
बढ़त का असर दूसरे अलाउंस में भी
महंगाई भत्ता बढ़ने से दूसरे अलाउंस में भी इजाफा होगा. इसमें ट्रैवल अलाउंस और सिटी अलाउंस शामिल हैं. वहीं, रिटायरमेंट के लिए प्रोविडेंट फंड और ग्रेच्युटी में भी बढ़ोतरी होगी.
एक साल में कम से कम इतने का मिलेगा फायदा
न्यूनतम सैलरी 18000 रुपये पर फायदे का गणित इस तरह से होगा-
1. कर्मचारी की बेसिक सैलरी 18,000 रुपये
2. नया महंगाई भत्ता (31%) 5580 रुपये/महीने
3. अब तक महंगाई भत्ता (28%) 5040 रुपये/महीने
4. कितना महंगाई भत्ता बढ़ा 5580-5040 = 540 रुपये/महीने
5. सालाना सैलरी में इजाफा 540X12= 6480 रुपये
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38 साल बाद मिला शहीद चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर, हल्द्वानी में होगा अंतिम संस्कार

15 अगस्त को पूरा देश आजादी की 75वीं सालगिरह अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है. वहीं, सियाचिन पर अपनी जान गंवाने वाले एक शहीद सिपाही का पार्थिव शरीर 38 साल बाद उनके उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित घर आ रहा है. हम बात कर रहे हैं 19 कुमाऊं रेजीमेंट के जवान चंद्रशेखर हर्बोला की.

शहीद चंद्रशेखर की पत्नी
दरअसल, 29 मई 1984 को सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान हर्बोला की जान चली गई थी. बर्फीले तूफान में उस दौरान 19 जवान दब गए थे, जिनमें से 14 के शव बरामद कर लिए गए थे. लेकिन पांच जवानों के शव नहीं मिल पाए थे. इसके बाद सेना ने पत्र के जरिए घरवालों को चंद्रशेखर के शहीद होने की सूचना दी थी. उसके बाद परिजनों ने बिना शव के चंद्रशेखर हर्बोला का अंतिम क्रिया-कर्म पहाड़ी रीति रिवाज के हिसाब से कर दिया था.
डिस्क नंबर से हुई पहचान
इस बार जब सियाचिन ग्लेशियर पर बर्फ पिघलनी शुरू हुई, तो खोए हुए सैनिकों की तलाश शुरू की गई. इसी बीच, आखिरी प्रयास में एक और सैनिक लॉन्स नायक चंद्रशेखर हर्बोला के अस्थि शेष ग्लेशियर पर बने एक पुराने बंकर में मिले. सैनिक की पहचान में उसके डिस्क ने बड़ी मदद की. इस पर सेना कर दिया हुआ नंबर (4164584) अंकित था.
28 की उम्र में छोड़ गए थे बिलखता परिवार
बता दें कि 1984 में सेना के लॉन्स नायक चंद्रशेखर हर्बोला की उम्र सिर्फ 28 साल थी. वहीं, उनकी बड़ी बेटी 8 साल और छोटी बेटी करीब 4 साल की थी. पत्नी की उम्र 27 साल के आसपास थी.
राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार
अब 38 साल बाद शहीद चंद्र शेखर का पार्थिव शरीर सियाचिन में बर्फ के अंदर दबा हुआ मिला, जिसे 15 अगस्त यानी आजादी के दिन उनके घर पर लाया जाएगा और पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा.
चेहरा तक देख नहीं सकी थी पत्नी
शहीद चन्द्रशेखर हर्बोला के पत्नी शांति देवी (65 साल) के आंखों के आंसू अब लगभग सूख चुके हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं हैं. गम उनको सिर्फ इस बात का था कि आखिरी समय में उनका चेहरा नहीं देख सकी.
वहीं, उनकी बेटी कविता पांडे (48 साल) ने बताया कि पिता की मौत के समय वह बहुत छोटी थीं. ऐसे में उनको अपने पिता का चेहरा याद नहीं है. अब जब उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचेगा, तभी जाकर उनका चेहरा देख सकेंगे.
चित्रशाला घाट पर क्रिया-कर्म
भतीजे ने बताया कि चाचा चंद्रशेखर हर्बोला की सियाचिन में पोस्टिंग थी. उस दौरान ऑपरेशन मेघदूत के दौरान बर्फीले तूफान में 19 जवानों की मौत हुई थी, जिसमें से 14 जवानों के शव को सेना ने खोज निकाला था, लेकिन 5 शव को खोजना बाकी था. एक दिन पहले की चन्द्रशेखर हर्बोला और उनके साथ एक अन्य जवान का शव सियाचिन में मिल गया है. अब उनके पार्थिव शरीर को धान मिल स्थित उनके आवास पर 15 अगस्त यानी आज लाया जाएगा है. जिनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ रानी बाग स्थित चित्रशाला घाट में होगा.
Source : Aaj Tak
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आज 15 अगस्त पर जानिए ध्वजारोहण और झंडा फहराने में क्या है अंतर?

आज देशभर में आजादी का 75वां साल धूमधाम से मनाया जा रहा है और इसी खुशी को दोगुना करने के लिए भारत सरकार ने ‘हर घर तिरंगा’ कैंपेन शुरू किया है. इसके तहत आम से लेकर खास हर कोई अपने घर पर तिरंगा लगा रहा है. वहीं, इस जश्न को मनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई तैयारियां की है.
देश का राष्ट्रीय ध्वज आन-बान और शान का प्रतीक है. हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराते हैं, लेकिन स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने में भी होते हैं. दो तरह से झंड़े को फहराया या लहराया जाता है. पहले को ध्वजारोहण कहते हैं और दूसरे को हम ध्वज फहराना कहते हैं. आइए आजादी के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर हम आपको बताते हैं कि इन दोनों के बीच क्या अंतर है?
ध्वजारोहण और झंडा फहराने में अंतर
देश के इन दो खास मौकों पर राष्ट्रीय ध्वज को फहराया या लहराया जाता है जिसके बीच अंतर होता है. स्वतंत्रता दिवस पर जब ध्वज को ऊपर की तरफ खींचकर लहराया जाता है, तो इसको ध्वजारोहण कहते हैं, जिसे इंग्लिश में Flag Hoisting कहते हैं. वहीं, दूसरी तरफ गणतंत्र दिवस पर ध्वज को ऊपर बांधा जाता है और उसको खोलकर लहराते हैं, इसे झंडा फहराना कहते है, जिसे अंग्रेजी में Flag Unfurling कहते हैं.
जानें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति में क्या अंतर है?
स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के कार्यक्रम को आयोजन लाल किले पर होता है. इस खास मौके पर कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री शामिल होते हैं और ध्वजारोहण करते हैं. वहीं, गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के कार्यक्रम का आयोजन राजपथ पर होता है और कार्यक्रम में देश के राष्ट्रपति शामिल होते हैं और झंडे को फहराते हैं. प्रधानमंत्री देश के राजनीतिक प्रमुख होते हैं और राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होते हैं.
गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति क्यों फहराते हैं झंडा?
देश का संविधान 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ था. इससे पहले देश में न तो संविधान था और न राष्ट्रपति. इसी के के कारण हर साल 26 जनवरी को राष्ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं.
Source : Zee News
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लाल किले पर देश ने बनाया नया रिकॉर्ड, पहली बार मेड इन इंडिया तोप ने दी सलामी

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से भारतवासियों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने स्वदेशी चीजों के इस्तेमाल पर जोर दिया है। खास बात है कि पहली बार राष्ट्रीय ध्वज को मेड इन इंडिया तोप के जरिए सलामी दी गई है। पीएम मोदी ने इस बात की जानकारी दी। साथ ही उन्होंने आत्मनिर्भर भारत की बात पर जोर दिया है।
सोमवार को पीएम मोदी ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत, यह हर नागरिक का, हर सरकार का, समाज की हर इकाई का दायित्व बन जाता है। यह सरकारी एजेंडा नहीं है। यह समाज का जन आंदोलन है, जिसे हमें आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि आज जब यह आवाज हमने सुनी, जिसकी लिए कान तरस गए। उन्होंने कहा कि 75 साल के बाद लाल किले से ध्वज को सलामी देने का काम मेड इन इंडिया तोप ने किया है।
9वीं बार लालकिले से फहराया ध्वज
पीएम मोदी ने सोमवार को 9वीं बार लालकिले से तिरंगा फहराया है। इससे पहले यूपीए सरकार के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 10 बार लाल किले पर ध्वजारोहण किया था। इसके अलावा वह लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले आजाद भारत में पैदा होने वाले पहले शख्स हैं।
देश के सामने रख दिया 25 सालों का प्लान
लाल किले से देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी ने 25 सालों का प्लान रख दिया है। उन्होंने पांच प्रणों का जिक्र किया। इसमें विकसित भारत, गुलामी का अंश न होना, विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता और नागिरकों को कर्तव्य शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने डिजिटल इंडिया, नारी शक्ति समेत कई क्षेत्रों में काम की बात कही है।
Source : Hindustan
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