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गांव की समस्या देखकर आया आइडिया
शहर के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम इंजीनियरिंग कॉलेज में फाइनल ईयर में पढ़ने वाले चार छात्रों ने ऐसी बाइक एम्बुलेंस बना डाली जो सिर्फ तीन जगह अटैच करने पर किसी भी बाइक में चंद मिनटों में फिट की जा सकती है। इसे बनाने में भी महज 14 हजार रुपए का खर्च आया। ये एम्बुलेंस चारों छात्रों ने अपने फाइनल ईयर मेजर प्रोजेक्ट के लिए बनाई। उन्होंने बताया ग्रामीण क्षेत्र में जहां सड़कें नहीं होती या संकरी होती है, वहां के बीमार लोगों के लिए ये एम्बुलेंस कारगर साबित होगी। ऐसे में इमरजेंसी के समय बड़ी एम्बुलेंस के आने का इंतजार नहीं करना होगा। इस अब सिर्फ छांव के लिए हुड लगाना बाकी है।
फाइनल इयर के पप्पू ताहेड़ निवासी मेघनगर, वेद प्रकाश निवासी झाबुआ, प्रेमकिशोर तोमर निवासी कट्ठीवाड़ा और सोनू कुमार निवासी बिहार ने इसे बनाया। इस एम्बुलेंस में मरीज काे रखने वाले हिस्से में स्कूटर का एक टायर लगाया गया है। इसमें फर्स्ट एड किट की जगह है और ऑक्सीजन सिलेंडर रखने की भी। मरीज की सुविधा के लिए लेटने वाली जगह पर गद्दा लगाया है। छात्रों का कहना है पंद्रह मिनट में इस एम्बुलेंस को एक बाइक से निकालकर दूसरी बाइक में लगाया जा सकता है।
ऐसे जुड़ जाएगी बाइक से
तीन वी क्लेम्प लगाकर एम्बुलेंस को किसी भी बाइक से जाेड़ा जा सकता है। एक इंजन के नीचे चेसिस पर, दूसरा लेग गार्ड पर और तीसरा पीछे वाले फुट रेस्ट के पास जाली में। वी क्लेम्प ऐसा गोल उपकरण है, जिससे अलग-अलग साइज होने पर भी किसी वस्तु पर कसा जा सकता है। विद्यार्थियों ने ये बाइक एम्बुलेंस बनाई जिसमें हुड लगना बाकी है।
हर पुर्जा लगाकर टेस्टिंग की
छात्रों ने बताया एम्बुलेंस बनाने के दौरान हर एक नया पुर्जा लगाने के बाद उसकी टेस्टिंग की, ताकि बाद में परेशानी न हो। कई सारे उपकरण बदलना पड़े या उनमें सुधार करना पड़ा। अब हमें लगता है, परफेक्ट एम्बुलेंस बन चुकी है।
गांव की समस्या देख आया आइडिया
पप्पू, वेद, सोनू और प्रेमसिंह को अपने-अपने गांव में आने वाली समस्या देखकर ये आइडिया आया। उन्होंने बताया बाइक एम्बुलेंस पहले भी आई हैं, लेकिन हम सस्ती और आसानी से उपयोग करने लायक एम्बुलेंस बनाने में सफल हुए। ये एक बाइक में हमेशा के लिए फिक्स नहीं रहेगी, इसलिए बाइक का नियमित उपयोग भी किया जा सकेगा।
Input : Danik Bhaskar
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ऐसे होते हैं IAS कीचड़ में घुसकर असम के बाढ़ प्रभावित लोगों तक पहुंच रही महिला अधिकारी, तस्वीरें वायरल

कुत्ते को सैर कराने के लिए पूरा स्टेडियम खाली कराने वाले आईएस अधिकारी की आलोचनाओं के बीच एक ऐसी महिला आईएएस अधिकारी की तस्वीरें सामने आई हैं जो बाढ़ से प्रभावित लोगों तक पहुंचने के लिए कीचड़ में घुसने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाती हैं। असम के कछार जिले के बाढ़ प्रभावित इलाकों में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी कीर्ति जल्ली (Keerthi Jalli) की तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो रही हैं। लोग इस महिला उपायुक्त की बाढ़ प्रभावित लोगों तक पहुंचने के लिए जमकर प्रशंसा कर रहे हैं।
असम का कछार जिला हाल ही में आई बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से एक है और जिले भर के 259 राहत शिविरों में अब भी 54,000 से अधिक लोग शरण लिए हुए हैं। डीसी कीर्ति जल्ली ने बुधवार को बोरखोला विकास खंड और अन्य हिस्सों के तहत विभिन्न बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था। उन्हें साड़ी पहने कीचड़ भरे इलाकों में घूमते हुए देखा जा सकता है। तस्वीरें और वीडियो शुरू में जिला प्रशासन के फेसबुक पेज पर साझा किए गए थे। तस्वीरों में देखा जा सकता है कि IAS अधिकारी कीर्ति जल्ली लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याएं सुन रही हैं। वे कीचड़ में चल रही हैं। लोग कीर्ति जल्ली की तस्वीरें शेयर कर उनकी जमकर तारीफ कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ‘ऐसे होते हैं IAS अधिकारी।’
इस दौरान जल्ली ने कहा कि वे असली समस्याओं का आकलन करने के लिए निचले इलाकों का दौरा करना चाहती हैं जो जिला प्रशासन और सरकार को भविष्य के लिए बेहतर कार्य योजना बनाने में मदद कर सकता है। उन्होंने बताया, “स्थानीय लोगों ने कहा कि वे पिछले 50 वर्षों से एक ही समस्या का सामना कर रहे हैं और हमने सोचा कि हमें वहां जाने और वास्तविक मुद्दों को देखने की जरूरत है। और उसके लिए सबसे अच्छा समय बाढ़ के दौरान होता है।”
स्थानीय लोगों ने बताया कि यह पहला मौका है जब जिले के उपायुक्त उनके गांवों का दौरा कर रहे हैं। उन्होंने बराक नदी के उफान से होने वाली बाढ़ के कारण हर साल होने वाली पीड़ाओं के बारे में विस्तार से बताया। उपायुक्त ने कहा कि वे गांवों की सुरक्षा पर जोर देने जा रही हैं ताकि भविष्य में नुकसान को कम किया जा सके। जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, कछार के अनुसार, इस वर्ष 291 गांवों में 163,000 से अधिक लोग बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। कछार में 11,200 घर क्षतिग्रस्त हुए हैं, जबकि 5,915 हेक्टेयर फसल क्षेत्र जलमग्न हो गया है।
Source: Live Hindustan
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हमें नींद नहीं आ रही और डरावने सपने से परेशान हूं… चिट्ठी लिखकर चोरों ने वापस की बेशकीमती मूर्तियां

चित्रकूट. उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. बहुचर्चित बाला जी मंदिर से लाखों की मूर्ति चोरी मामले में नया मोड़ आया है. चोरी हुई मूर्तियां एक चिट्ठी के साथ मानिकपुर कस्बे में महावीर नगर वार्ड स्थित महंत के घर के बाहर मिली हैं. इसके बाद महंत ने मूर्तियां पुलिस को सौंप दी हैं. फिलहाल अष्ट धातु की कीमती मूर्तियां अब भी पहुंच से दूर हैं. पीड़ित महंत रामबालक दास ने बताया, “अगर जल्द इस घटना का खुलासा नहीं हुआ तो वह बड़ा आंदोलन करेंगे”.
बता दें कि शहर कोतवाली क्षेत्र के तरौहां में बने सैकड़ों साल पुराने बालाजी मंदिर से बीते 9 मई को अष्ट धातु, पीतल और तांबे की 16 मूर्तियां चोरी हुई थीं. मंदिर के महंत राम बालक दास ने बताया कि मंदिर का ताला तोड़कर चोरों ने अष्टधातु से बनी 5 किलो की श्रीराम की मूर्ति, पीतल की राधाकृष्ण की मूर्ति, बालाजी की मूर्ति और लड्डू गोपाल की मूर्ति समेत नकदी और चांदी का सामान चोरी कर लिया. पुजारी की पत्नी सुबह मंदिर में सफाई करने के लिए पहुंची तो मंदिर का ताला टूटा और मंदिर में रखी मूर्तियां गायब देखीं.
इस घटना से मंदिर परिसर में हड़कंप मच गया. सूचना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने मामले की छानबीन शुरू कर दी थी. पीड़ित महंत ने कर्वी कोतवाली में तहरीर देकर चोरों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की थी. मंदिर प्रशासन के लोगों कहना था कि मंदिर परिसर के आस-पास अराजक लोगों ने शराब और जुए के अड्डे बना रखे हैं. उन्होंने ही मंदिर में चोरी की घटना का अंजाम दिया है.
अष्ट धातु की दो मूर्तियां नहीं मिली
शनिवार को मानिकपुर स्थित उनके ही घर के बाहर मूर्ति मिलने के बाद महंत राम बालक दास ने बताया कि सुबह जब वो गोवंशों को चारा-पानी देने निकले तो उन्हें एक चिट्ठी पड़ी मिली. उसमें मूर्तियों के जिक्र के साथ लिखा था कि मूर्ति चोरी करने के बाद उन्हें नींद नहीं आ रही और डरावने सपने आ रहे हैं. इसलिए मूर्तियां वापस कर रहे हैं और मूर्तियों को आप दोबारा मंदिर में स्थापित करवा दें. चिट्ठी पढ़ने के बाद महंत ने मूर्तियों की खोज की तो मूर्तियां घर के बाहर टोकरी के नीचे रखी बोरी के अंदर मिलीं. उन्हें पीतल व तांबे की 12 मूर्तियां बरामद हुईं लेकिन अष्ट धातु की दो मूर्तियां नहीं मिली. इसकी सूचना उन्होंने कोतवाली पुलिस को दी और पुलिस मुख्यालय पहुंचकर मूर्तियां पुलिस को सौंप दी है.
Source : News18
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महिलाओं के विकास के लिए है आत्म विश्वास जरूरी

चाहे किसी प्रकार की परीक्षा हो या खेल जगत, है मैदान में महिलाएं अवल दर्जे पर नजर आ रही है। वो अपने हौसले के साथ हर बाधाओं को पर कर हर एक छेत्र में अपना नाम रोशन कर रही। कई क्षेत्र में तो नारी पुरुषों से दो कदम आगे है। घुंघट व लोक-लज्जा की बेड़िया अब टूट चुकी हैं। बावजूद महिलाओं को और सशक्त होने की जरूरत हैं। कई दफा ये देखा गया है कि महिलाओं के आवाज को दबा दिया जाता है, या उन्हें समाज का खौफ देकर आगे बढ़ने नही दिया जाता, मगर कब तक?
एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है “कहने वाले कहते रहेंगे, अगर तुम उनकी बात सुनोगे तो कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे, और अगर कुछ पाना है तो सपने देखो, कदम बढ़ाओ, बिना किसी से डरे”। बस यही एक चीज है जो महिलाओं को आगे बढ़ने में मदद कर सकती है “आत्म विश्वास”।
लेकिन, आत्म विश्वास के अलावा भी बहुत सी चीजें है जो जरूरी है। आज भी महिलाओं के लिए बेहतर शिक्षा व सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत हैं। जिले में बढ़ते अपराध से छात्र-छात्राएं व अभिभावक भयभीत रहते हैं। आज भी ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं पुरुष के दबाव में रहती हैं। ससुराल में महिलाओं को विभिन्न कारणों से पड़ताड़ित किया जाता हैं। जिससे वह या तो आत्महत्या कर लेती है या उसकी हत्या कर दी जाती हैं। इससे निपटने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। लेकिन, महिलाओं के पास न तो रुपए है न ही जमीन। और मुकदमा लड़ने के लिए रुपए की आवश्यकता होती हैं। ऐसे में महिलाओं के लिए बनाए गए कानून को शतप्रतिशत धरातल पर उतारने की बहुत जरूरत है।
आज ही नारी आत्म निर्भर बन रही है मगर उन्हें भी कई सारी कठिनाइयों का सामना करना परता है। जैसे कही भी आते जाते कोई उन्हें छेड़ देता है, उनका मनोवल गिरा देता है, उनकी बेइज्जती करता है, मगर ये गर्व की बात है कि हमारे देश की कई महिलाओं ने आत्म निर्भर बनने का सपना सच किया है, और दूसरो के लिए एक प्रेरणा बनी है। और अगर नारियों ने मन से समाज का डर निकल जाए और उन्हें भी बराबर सम्मान मिले तो वो समय दूर नहीं जब भारत की सभी महिलाएं मर्दों के साथ कंधा मिला कर चलेगी।
कई सालों से महिला सशक्तिकरण का प्रयास चल रहा है, और काफी कुछ बदलाव भी आया है। लेकिन अभी भी काफी कुछ होना बाकी है। रह गई होगी कोई कमी या होगा कुछ नया प्रयास?
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