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मकर संक्रांति से आरंभ होता है देवताओं का दिन व उत्तरायण

मकर संक्रांति से ही देवताओं का दिन और उत्तरायण का शुभारंभ होता है। इस दिन स्नान न करने वाला व्यक्ति जन्म जन्मान्तर मे रोगी तथा निर्धन होता है। वेदों में पौष को रहस्य मास कहा गया है। सूर्यास्त के बाद मकर संक्रांति होने पर पूण्य काल अगले दिन होता है। मकर संक्रांति लगने के समय से 20 घटी (8 घंटा) पूर्व और 20 घटी (8 घंटे) पश्चात पूर्ण काले होता है। उक्त बातें भभुआ शहर के विद्वान डॉ. विवेकानंद तिवारी ने कही। उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, हवन करने का शुभ फल मिलता है। भगवान शिव का घी से अभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। स्वर्ण दान तथा तिल से भरे पात्र का दान करना अच्छे फल को देता है।
उन्होंने बताया कि दक्षिणायन को नकारात्मकता व उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। उत्तरायण के छह माह में देह त्याग करने वाले ब्रह्म गति को प्राप्त होते हैं जबकि और दक्षिणायन के छह माह में देह त्याग करने वाले संसार में वापिस आकर जन्म मृत्यु को प्राप्त होते हैं। यही कारण था कि भीष्म पितामह महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद मकर संक्रान्ति की प्रतीक्षा में अपने प्राण को रोके अपार वेदना सह कर शर-शैय्या पर पड़े रहे। सूर्य की राशि में परिवर्तन हुआ और भीष्म पितामह के प्राणों ने देवलोक की राह ली।
डॉ. विवेकानंद ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन पितरों के लिए तर्पण करने का विधान है। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं और भगीरथ के पूर्वज महाराज सागर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान की थी। इसीलिए इस दिन बंगाल में गंगासागर तीर्थ में कपिल मुनि के आश्रम पर विशाल मेला लगता है, जिसके बारे में मान्यता है कि ‘सारे तीरथ बार-बार, गंगा सागर एक बार। तीर्थराज प्रयाग में लगने वाले कुम्भ और माघी मेले का पहला स्नान भी इसी दिन होता है।
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साल में सिर्फ 24 घंटे के लिए खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर, नेपाल से आई ये प्रतिमा बेहद खास
सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. तिथि के मुताबिक इस बार नाग पंचमी 2 अगस्त को पड़ रही है. नाग पंचमी के दिन स्त्रियां नाग देवता की पूजा करती हैं और सांपों को दूध पिलाया जाता है. सनातन धर्म में सर्प को पूज्यनीय माना गया है. नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है और उन्हें गाय के दूध से स्नान कराया जाता है. माना जाता है कि जो लोग नाग पंचमी के दिन नाग देवता के साथ ही भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करते हैं, उनके जीवन से कालसर्प दोष खत्म हो जाता है. साथ ही राहु और केतु की अशुभता भी दूर होती है.
महाकाल की नगरी उज्जैन को मंदिरों का शहर कहा जाता है. इस शहर की हर गली में एक ना एक मंदिर जरूर है. उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के तीसरे भाग में नागचंद्रेश्वर मंदिर है. नागचंद्रेश्वर मंदिर का अपना अलग महत्व है. इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी के दिन 24 घंटे के लिए ही खुलते हैं. नागचंद्रेश्वर मंदिर की क्या खास बात है यह भी जान लेते हैं
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नेपाल से लाई गई थी प्रतिमा
भगवान नागचंद्रेश्वर की मूर्ति काफी पुरानी है और इसे नेपाल से लाया गया था. नागचंद्रेश्वर मंदिर में जो अद्भुत प्रतिमा विराजमान है उसके बारे में कहा जाता है कि वह 11वीं शताब्दी की है. इस प्रतिमा में शिव-पार्वती अपने पूरे परिवार के साथ आसन पर बैठे हुए हैं और उनके ऊपर सांप फल फैलाकर बैठा हुआ है. बताया जाता है कि इस प्रतिमा को नेपाल से लाया गया था. उज्जैन के अलावा कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है. यह दुनिया भर का एकमात्र मंदिर है जिसमें भगवान शिव अपने परिवार के साथ सांपों की शय्या पर विराजमान हैं.
त्रिकाल पूजा की है परंपरा
मान्याताओं के मुताबिक, भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की परंपरा है. त्रिकाल पूजा का मतलब तीन अलग-अलग समय पर पूजा. पहली पूजा मध्यरात्रि में महानिर्वाणी होती है, दूसरी पूजा नागपंचमी के दिन दोपहर में शासन द्वारा की जाती है और तीसरी पूजा नागपंचमी की शाम को भगवान महाकाल की पूजा के बाद मंदिर समिति करती है. इसके बाद रात 12 बजे वापिस से एक साल के लिए बंद हो जाएंगे.
पौराणिक कथा
मान्यताओं के मुताबिक, सांपों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को मनाने के लिए तपस्या की थी जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए और सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया. वरदान के बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही इच्छा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो.इसलिए यही प्रथा चलती आ रही है कि सिर्फ नागपंचमी के दिन ही उनके दर्शन होते हैं. बाकी समय परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है. दर्शन को उपलब्ध होते हैं. शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है.
नाग पंचमी शुभ मुहूर्त
नाग पञ्चमी मंगलवार, अगस्त 2, 2022 को
पञ्चमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 02, 2022 को सुबह 05 बजकर 13 मिनट से शुरू
पञ्चमी तिथि समाप्त – अगस्त 03, 2022 को सुबह 05 बजकर 41 मिनट पर खत्म
नाग पञ्चमी पूजा मूहूर्त – सुबह 06 बजकर 05 मिनट से 08 बजकर 41 मिनट तक
अवधि- 02 घण्टे 36 मिनट्स
नाग पंचमी की पूजा-विधि
नाग पंचमी के दिन अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया और पिंगल नामक देव नागों की पूजा की जाती है. पूजा में हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नागदेवता की पूजा करें. कच्चे दूध में घी और चीनी मिलाकर नाग देवता को अर्पित करें. इसके बाद नाग देवता की आरती उतारें और मन में नाग देवता का ध्यान करें. अंत में नाग पंचमी की कथा अवश्य सुनें.
Source : Aaj Tak
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हर सोमवार करें शिव पंचाक्षर स्तोत्रम पाठ, आप पर होगी शिव कृपा

सावन का हर दिन शिव जी की भक्ति के लिए अच्छा अवसर माना जाता है. वैसे में सावन सोमवार का दिन तो इसके लिए और भी उत्तम होता है. सावन में आप सच्चे मन से भगवान शिव का ध्यान करते हैं और उनके मंत्रों का जाप करते हैं, तो आपकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए बहुत से मंत्र और स्तोत्र हैं, जिनका जाप या पाठ करने से लाभ प्राप्त होता है, इनमें शिव पंचाक्षर स्तोत्रम भी शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उत्तम साधन है.
काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट कहते हैं कि शिव पंचाक्षर स्तोत्रम में भगवान शिव की स्तुति गान है और उनके गुणों का वर्णन किया गया है. शिव पंचाक्षर स्तोत्रम में नम: शिवाय: बार बार आता है. जिन लोगों को शिव पंचाक्षर स्तोत्रम याद नहीं होता है, उनको पूजा के समय शिव पंचाक्षर मंत्र ओम नम: शिवाय का ही जाप कर लेना चाहिए. यह शिव जी का सबसे प्रभावशाली मंत्र है. इस मंत्र के जाप से सभी प्रकार के मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. इस मंत्र को आप प्रत्येक दिन या फिर प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकते हैं.
शिव पंचाक्षर स्तोत्रम पाठ की विधि
जिस दिन आपको शिव पंचाक्षर स्तोत्रम का पाठ करना हो, उस दिन सबसे पहले भगवान शिव की पूजा करें. शिव जी का गंगाजल से अभिषेक करें. उसके बाद उनको सफेद फूल, भांग, मदार फूल, बेलपत्र, धतूरा, शहद, गाय का दूध, शक्कर, अक्षत्, चंदन आदि अर्पित करें.
फिर धूप, दीप, गंध आदि चढ़ाएं. उसके बाद से शिव पंचाक्षर स्तोत्रम का पाठ करें. इसका पाठ करते समय शब्दों का सही उच्चारण करना चाहिए. यदि संस्कृत शब्दों को पढ़ने में समस्या आती है, तो इसके हिंदी अर्थ को भी पढ़ सकते हैं.
शिव पंचाक्षर स्तोत्रम
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:।।
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:।।
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:।।
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:।।
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:।।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे ‘न’ काराय नमः शिवायः।।
ओम नम: शिवाय…हर हर महादेव…ओम नम: शिवाय!!!
Source : News18
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रक्षाबंधन पर भद्रा का साया… लेकिन आयुष्मान, साैभाग्य रवि और शाेभन योग का संयाेग इसका कम करेगा प्रभाव

11 अगस्त को रक्षाबंधन पर्व पर इस बार अशुभ भद्रा योग का साया रहेगा। पूर्णिमा तिथि इस दिन सुबह 9:37 से शुरू होकर अगले दिन 12 अगस्त को सुबह 7:18 बजे तक रहेगी, लेकिन इसी दौरान भद्रा योग भी शुरू हो जाएगा, जो रात 8:27 बजे तक रहेगा। भद्राकाल में राखी बंधवाना शुभ नहीं माना जाता है। हालांकि पंचांगों में भद्राकाल के समय को लेकर मतभेद होने से संशय की स्थिति बनी हुई है। कुछ पंचांगों में भद्राकाल का समय गुरुवार दोपहर 2:38 तक ही है। पंडितों का कहना है कि भद्रा योग समाप्त होने पर राखी बंधवाएं और ज्यादा जरूरी हो तो प्रदोषकाल में शुभ, लाभ, अमृत में से कोई एक चौघड़िया देखकर राखी बंधवा लें। इस दिन यदि भद्रा का अशुभ योग है तो आयुष्मान, सौभाग्य, रवि, शोभन योग जैसे शुभ योगों का संयोग भी रहेगा। इस बार पाताल में भद्रा का निवास जब भद्रा निवास आकाश लोक में रहता है तो शुभ कार्य किए जा सकते हैं, लेकिन इस बार 11 अगस्त को निवास पाताल लोक में रहेगा।
शास्त्रोक्त मान्यता… सूर्य और छाया की पुत्री भद्रा शनि की बहन शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार सूर्य और छाया की पुत्री भद्रा शनि की बहन है। भद्रा को कुरूप और भक्षण प्रवृत्ति की मानी जाती है। वह जन्म के समय ही सृष्टि का विनाश करने पर उतारू थी। इसे ब्रह्मा ने शांत कर उसे 7वें करण में स्थान दिया। तब से इस योग में रक्षाबंधन और अन्य शुभ कर्म वर्जित माना जाता है।
रक्षाबंधन पर इस बार चार योग
11 अगस्त को सूर्योदय से दोपहर 3:31 तक आयुष्मान योग रहेगा।
सुबह 5:30 से शाम 6:53 तक रवि योग।
गुरुवार दोपहर 3:32 से शुक्रवार सुबह 11:33 तक सौभाग्य योग रहेगा।
गुरुवार को रक्षाबंधन पर धनिष्ठा नक्षत्र के साथ शोभन योग भी बनेगा।
असमंजस… राखी बंधवाने के समय को लेकर पंडित एक मत नहीं
पूर्णिमा पर श्रावणी उपाकर्म दसविधि स्नान आदि सुबह भद्रा शुरू होने से पहले करें। या फिर अगले दिन शुक्रवार को सूर्योदय के बाद से पूर्णिमा रहने यानी शुक्रवार को सुबह 7:18 बजे तक कर लें। भद्राकाल में राखी बंधवाने से बचें। यह अशुभ योग होता है। ज्यादा जरूरी होने पर प्रदोषकाल में शाम 6 से 7:30 के बीच राखी बंधवाएं। वैसे भद्रा का पुच्छकाल शाम 5:17 से शाम 6.18 तक रहेगा।
स्थानीय शिव पंचांग में भद्रा 11 अगस्त को दोपहर 2:38 तक ही है। इसके बाद राखी बंधवा सकते हैं। पूर्णिमा तिथि 12 अगस्त को सुबह 7:05 बजे तक ही है। इसलिए 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनाया जाना उचित है। वैसे ज्यादातर पंचांगों में भद्रा गुरुवार रात 8:27 तक रहने का ही उल्लेख है। पंडितों के अनुसार राखी बंधवाने से पहले दीप जलाकर उसे साक्षी बनाए।
Source : Dainik Bhaskar
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