किसान अतिरिक्त आय और अपनी पोषण के जरूरतों के लिए खेती के साथ ही मछली पालन का काम भी करते हैं. लेकिन अगर आपके पास मछली पालन के लिए कम जगह है तो ज्यादा लाभ प्राप्त नहीं होता. ऐसे में अब किसान अब बायोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल कर मछली पालन का काम कर रहे हैं. इस विधि से मछली पालन करने पर कम जगह में ज्यादा उत्पादन हासिल करने में मदद मिलती है और कमाई भी बढ़ जाती है.

मछली उत्पादन के क्षेत्र में भारत दूसरे नंबर पर है लेकिन अधिक उत्पादन के लिए जो तरीके अपनाए जा रहे हैं, उनसे समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. एक तो जमीन और जलीय संसाधन में प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा हो गई है और लागत काफी बढ़ गई है. इसके अलावा, विदेशी प्रजातियां पालने से मूल किस्मों पर बुरा असर पड़ रहा है और बहुत अधिक बीज संवर्धन करने के कारण बीमारियां भी फैल रही हैं.

बायोफ्लॉत तकनीक के ये हैं फायदे
बायोफ्लॉक तकनीक इन्हीं समस्याओं का निदान है. इस तकनीक के सहारे कम क्षेत्र में मछलियों का अधिक उत्पादन किया जा सकता है. बायोफ्लॉक दरअसल शैवाल, जीवाणु, प्रोटोजोआ, अनुपयुक्त खाना और मछली मल से बना होता है. इसमें 60 से 70 फीसदी कार्बनिक और 30 से 40 फीसदी अकार्बनिक पदार्थ होते हैं. बड़े बायोफ्लॉक्स नग्न आंखों से भी देखे जा सकते हैं.

आमतौर पर मछली पालन में बाहर से दिए गए फीड का 20 से 30 फीसदी हिस्सा ही मछलियां उपयोग करती हैं. बाकी बचे पानी में ही रह जाते हैं. इन्हीं बचे हुए कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थों को बायोफ्लॉक विशेष सूक्ष्म जीवों के जरिए फिर से खाने लायक बना देती हैं. इस तकनीक से लगतार पानी में ऑक्सीजन मिलता रहता है. इस तकनीक के लिए सर्वाहारी स्वभाव वाली किस्में पालनी होंगी.

Due to the discovery of dead bodies in the Ganges in UP-Bihar, the terror in

भारत में तेती से बढ़ रही है जलीय कृषि
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में खाद्यान्न उत्पादन के मुकाबले जलीय कृषि कहीं तेजी से बढ़ रही है. 012-13 में जहां इसकी वृद्धि दर 4.9 थी, वहीं 2018 में यह बढ़कर 11.9 फीसदी तक जा पहुंची है. आने वाले समय में इसमें और बढ़ोतरी की उम्मीद है. ऐसे में उत्पादन बढ़ाने में बायोफ्लॉक तकनीक से किसानों को काफी मदद मिल सकती है.

Source : TV9

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