HEALTH
वैज्ञानिकों ने बनाया दुनिया का पहला यूनिसेक्स कंडोम, महिला-पुरुष दोनों कर सकते हैं उपयोग

कुआलालम्पुर: मलेशिया के एक वैज्ञानिक ने दुनिया का पहला यूनिसेक्स कंडोम बना लिया है. इस यूनिसेक्स कंडोम को महिला और पुरुष दोनों इस्तेमाल कर सकते हैं. ये यूनिसेक्स कंडोम गायनेकोलॉजिस्ट ने मेडिकल ग्रेड मटेरियल से बनाया गया है, ये मटेरियल घावों की सर्जरी की ड्रेसिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
Malaysian gynaecologist creates 'world's first unisex condom' https://t.co/tzAefxBGCp pic.twitter.com/H4SaBjZ5C0
— Reuters (@Reuters) October 28, 2021
यूनिसेक्स कंडोम से महिला-पुरुष दोनों को होगा फायदा
यूनिसेक्स कंडोम बनाने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे लोगों की सेक्सुअल हेल्थ सुधरेगी. यूनिसेक्स कंडोम से महिला और पुरुष दोनों को फायदा होगा. यूनिसेक्स कंडोम एक तरफ से चिपकने वाला है.
रेगुलर कंडोम की तरह ही है यूनिसेक्स कंडोम
ट्विन कैटालिस्ट फर्म के गायनेकोलॉजिस्ट जॉन टैंग इंग चिन ने कहा कि यूनिसेक्स कंडोम बाकी रेगुलर कंडोम की तरह ही है. बस इसे पुरुष और महिला दोनों इस्तेमाल कर सकते हैं. यूनिसेक्स कंडोम में रेगुलर कंडोम से ज्यादा प्रोटेक्शन है.
यूनिसेक्स कंडोम की है इतनी कीमत
बता दें कि Wondaleaf यूनिसेक्स कंडोम के हर पैकेट में दो कंडोम होंगे और इसकी कीमत 14.99 रिंगिट यानी करीब 270 रुपये होगी. मलेशिया में 20-40 रिंगिट में एक दर्जन कंडोम खरीदे जा सकते हैं.
गायनेकोलॉजिस्ट ने यूनिसेक्स कंडोम पोलीयूरीथेन से बनाया है. ये मटेरियल पारदर्शी होता है. पोलीयूरीथेन मटेरियल काफी पतला और फ्लेक्सिबल होता है. ये मजबूत और वाटरप्रूफ होता है.
जॉन टैंग इंग चिन ने दावा किया है कि यूनिसेक्स कंडोम इतना पतला है कि जब आप इसे पहनेंगे तो आपको पता भी नहीं चलेगा. ये ड्रेसिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले मटेरियल से बना है.
गायनेकोलॉजिस्ट जॉन टैंग इंग चिन ने बताया कि यूनिसेक्स कंडोम कई राउंड की क्लीनिकल रिसर्च और टेस्टिंग के बाद बनाया गया है. यूनिसेक्स कंडोम दिसंबर से फर्म की वेबसाइट पर खरीदने के लिए उपलब्ध होगा.
(इनपुट- रॉयटर्स)
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लगातार रहता है रीढ़ की हड्डी में दर्द, तो हो सकती है यह बड़ी वजह : डॉ रीशिकांत सिंह

देश के प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन डॉ रीशिकांत सिंह, पीएमसीएच , पटना का कहना है कि, कोई भी दर्द बड़ा या छोटा नहीं होता लेकिन अगर इसका सही समय पर इलाज नहीं किया गया तो यह भयंकर रुप ले सकता है इसलिए वक्त रहते ही दर्द का इलाज कराना चाहिए। कई रिसर्च् में यह साबित हुई है कि लगातार रीढ़ की हड्डी में दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन अगर सही समय पर इलाज मिल जाए तो ठीक हो सकते है लेकिन अगर सही से इलाज नहीं किया गया तो यह भयंकर रूप ले सकती है। इस आर्टीकल में रीढ़ की हड्डी में दर्द की बीमारी के बारे में है। आप रीढ़ की हड्डी में दर्द का इलाज एवं लक्षण के साथ रीढ़ की हड्डी में दर्द की दवा, उपचार और निदान के बारे में जान सकते हैं कम्प्रेसिव मायलोपैथी नामक बीमारी रीढ़ (स्पाइन) की हड्डियों को संकुचित कर उन्हें विकारग्रस्त कर देती है, लेकिन अब इस समस्या का इलाज संभव है… कम्प्रेसिव मायलोपैथी नामक बीमारी आमतौर पर पचास साल की उम्र के बाद शुरू होती है परंतु कई कारण ऐसे भी हैं जिनकी वजह से यह कम उम्र में भी परेशानी का कारण बन सकती है। कमर से लेकर सिर तक जाने वाली रीढ़ की हड्डी के दर्द को ही स्पॉन्डिलाइटिस कहते हैं। यह ऐसा दर्द है जो कभी नीचे से ऊपर और कभी ऊपर से नीचे की ओर बढ़ता है।
कारणों पर नजर
सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस आदि रीढ़ से संबंधित समस्याओं के कारण जब स्पाइनल कैनाल सिकुड़ जाता है, तब स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव बढ़ जाता है। इसके अलावा अन्य कई कारण हैं। जैसे रूमैटिक गठिया के कारण गर्दन के जोड़ों को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे गंभीर जकड़न और दर्द पैदा हो सकता है। रूमैटिक गठिया आमतौर पर गर्दन के ऊपरी भाग में होता है। स्पाइनल टीबी,स्पाइनल ट्यूमर, स्पाइनल संक्रमण भी इस रोग के प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा कई बार खेलकूद, डाइविंग या किसी दुर्घटना के कारण रीढ़ की हड्डी के बीच स्थित डिस्क (जो हड्डियों के शॉक एब्जॉर्वर के रूप में कार्य करती है) अपने स्थान से हटकर स्पाइनल कैनाल की ओर बढ़ जाती है, तब भी संकुचन की स्थिति बन जाती है।
जांच
इस बीमारी का सबसे सटीक विवरण देता है एमआरआई। इस जांच के द्वारा रीढ़ की हड्डी में संकुचन और इसके कारण स्पाइनल कॉर्ड पर पड़ने वाले दबाव की गंभीरता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसके अलावा कई बार रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर होने पर कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन, एक्स-रे आदि से भी जांच की जा सकती है।
ऑपरेशन के बगैर उपचार
रोग के प्रारंभिक मामलों में दर्द और सूजन कम करने वाली दवाओं और गैर-ऑपरेशन तकनीकों से इलाज किया जाता है। गंभीर दर्द का भी कॉर्टिकोस्टेरॉयड से इलाज किया जा सकता है, जो पीठ के निचले हिस्से में इंजेक्ट की जाती है। रीढ़ की हड्डी को मजबूती और स्थिरता देने के लिए फिजियोथेरेपी की जाती है। अगर इन गैर-ऑपरेशन विधियों से लाभ नहीं होता तो हम सर्जरी कराने का सुझाव दे सकते हैं। ऐसी अनेक सर्जिकल तकनीकें हैं जिनका इस रोग के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है।
सर्जिकल उपचार
कम्प्रेसिव मायलोपैथी की समस्या के स्थायी इलाज के लिए प्रभावित स्पाइन की वर्टिब्रा की डिकम्प्रेसिव लैमिनेक्टॅमी (एक तरह की सर्जरी) की जाती है ताकि स्पाइनल कैनाल में तंत्रिकाओं के लिए ज्यादा जगह बन सके और तंत्रिकाओं पर से दबाव दूर हो सके।
यदि डिस्क हर्नियेटेड या बाहर की ओर निकली हुई होती हैं तो स्पाइनल कैनाल में जगह बढ़ाने के लिए उन्हें भी हटाया जा सकता है, जिसे डिस्केक्टॅमी कहते हैं।
कभी-कभी उस जगह को भी चौड़ा करने की जरूरत पड़ती है, जहां तंत्रिकाएं मूल स्पाइनल कैनाल से बाहर निकलती हैं। इस स्थान को फोरामेन कहते हैं। इस सर्जिकल प्रक्रिया को फोरामिनोटॅमी कहा जाता है।
क्या है बीमारी के लक्षण
डॉ, रीशिकांत सिंह का कहना की
रीढ़ की हड्डी नसों की केबल पाइप जैसी होती है। जब यह पाइप संकुचित हो जाती है, तो नसों पर दबाव से ये लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं …
सुन्नपन या झुनझुनी का अहसास होना
गर्दन, पीठ व कमर में दर्द और जकड़न
लिखने, बटन लगाने और भोजन करने में समस्या
गंभीर मामलों में मल-मूत्र संबंधी समस्याएं उत्पन्न होना
चलने में कठिनाई यानी शरीर को संतुलित रखने में परेशानी
कमजोरी के कारण वस्तुओं को उठाने या छोड़ने में परेशानी
बचाव व रोग का उपचार
व्यायाम इस रोग से बचाव के लिए आवश्यक है।
देर तक गाड़ी चलाने की स्थिति में पीठ को सहारा देने के लिए तकिया लगाएं।
कंप्यूटर पर अधिक देर तक काम करने वालों को कम्प्यूटर का मॉनीटर सीधा रखना चाहिए।
कुर्सी की बैक पर अपनी पीठ सटा कर रखना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल पर उठते रहना चाहिए। उठते-बैठते समय पैरों के बल उठना चाहिए।
दर्द अधिक होने पर चिकित्सक की सलाह से दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। फिजियथेरेपी द्वारा गर्दन का ट्रैक्शन व गर्दन के व्यायाम से आराम मिल सकता है।
HEALTH
मोतियाबिंद और फेको सर्जरी

मैं, मनीष स्वरुप, कॉफ्रेट का संस्थापक को एक अवसर मिला शहर के मशहूर और कारगर नेत्र चिकित्सक जोड़ी डॉक्टर पल्लवी सिन्हा और डॉक्टर शलभ सिन्हा से मिलने का। डॉक्टर शलभ सिन्हा और पल्लवी सिन्हा से उनके आई हॉस्पिटल नयनदीप नेत्रालय में मिलने पर मैंने मोतियाबिंद को करीब से जाना और इस कारण से कह सकता हूँ कि अधिकांश लोगों ने मोतियाबिंद के बारे में सुना है, लेकिन मैं इसे उन लोगों के साथ साझा करने के लिए लिख रहा हूं जो नहीं जानते हैं और जो जानते हैं लेकिन सिर्फ अपने ज्ञान की जांच करने के लिए। डॉक्टर शलभ सिन्हा और पल्लवी सिन्हा के अनुसार मोतियाबिंद तब होता है जब आँखों के लेंस में धुंधलापन बन जाता है। यह रेटिना तक पहुंचने वाले प्रकाश की मात्रा को सीमित करता है और दृष्टि को प्रभावित करता है। मोतियाबिंद उम्र के अवधि के साथ धीरे-धीरे विकसित होते हैं। प्रारंभिक अवस्था में वे कोई लक्षण उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। हालांकि, उपचार के बिना (आमतौर पर सर्जरी) मोतियाबिंद और खराब हो जाएगा और अंततः ग्रसित मरीज़ को पूर्ण अंधापन हो जाएगा।
कारण और जोखिम कारक: डॉक्टर शलभ ने बताया कि मोतियाबिंद का सबसे आम कारण उम्र बढ़ना है, जबकि अन्य कारणों में अन्य चिकित्सा स्थितियां, आंखों की चोट, आनुवंशिक दोष और कुछ दवाओं की प्रतिक्रिया शामिल हैं। मोतियाबिंद उम्र बढ़ने के साथ का एक स्वाभाविक हिस्सा है और 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में आम है। मोतियाबिंद से पीड़ित अधिकांश बुजुर्ग लोगों में स्वास्थ्य की स्थिति या आंखों की बीमारियों में कोई अन्य योगदान नहीं होता है। मोतियाबिंद एक दोषपूर्ण जीन के कारण जन्म के समय (जन्मजात मोतियाबिंद) भी हो सकता है, और गर्भावस्था के दौरान संक्रमण या आघात से जुड़े बच्चों (बचपन के मोतियाबिंद) में विकसित हो सकता है। नवजात शिशुओं और बच्चों में मोतियाबिंद दुर्लभ हैं। मोतियाबिंद एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है। मोतियाबिंद के विकास के जोखिम को बढ़ाने वाले अन्य कारकों में शामिल हैं: मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, आंखों की अन्य स्थितियां जैसे यूवाइटिस, पिछली आंख की सर्जरी, चोट या सूजन, कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवा का लंबे समय तक उपयोग (जैसे: प्रेडनिसोन) , प्रेडनिसोलोन), धूप में अत्यधिक संपर्क, धूम्रपान, बहुत अधिक शराब पीना, खराब आहार।
संकेत और लक्षण के विषय पर डॉक्टर पल्लवी सिन्हा कहती हैं कि मोतियाबिंद के लक्षण और लक्षणों में शामिल हो सकते हैं: धुंधला, क्लॉउडी , फजी , फोमी,ब्लरी या फिल्मी दृष्टि, प्यूपिल में एक ध्यान देने योग्य बादल, रोशनी से प्रकाश या चकाचौंध की संवेदनशीलता, उदाहरण के लिए: रात में गाड़ी चलाते समय हेडलाइट्स से, दूर दृष्टि में कमी लेकिन निकट दृष्टि में सुधार, दोहरी दृष्टि (डिप्लोपिया) या रोशनी के चारों ओर प्रभामंडल, आंखों के नुस्खे में बार-बार बदलाव, रंग फीका या पीला दिखना, रात में खराब दृष्टि, पढ़ने के लिए तेज रोशनी की आवश्यकता और अन्य क्लोज-अप कार्य।
डाइग्नोसिस : डॉक्टर शलभ सिन्हा और डॉक्टर पल्लवी सिन्हा के अनुसार मोतियाबिंद के लिए बताएं गए डाइग्नोसिस काफी ज्यादा सामान हैं। उन्होंने बताया कि एक नेत्र विशेषज्ञ आपकी दृष्टि का परीक्षण करने और आपकी आंखों की जांच करने के बाद प्रारंभिक निदान कर सकता है। यदि मोतियाबिंद का संदेह है, तो आमतौर पर एक नेत्र विशेषज्ञ (नेत्र रोग विशेषज्ञ) के लिए एक रेफरल की सिफारिश की जाती है। मोतियाबिंद के सटीक स्थान और सीमा को निर्धारित करने के लिए नेत्र विशेषज्ञ आंख और दृष्टि की अधिक विस्तृत जांच कर सकता है। फिर वे उचित उपचार की सिफारिश करेंगे। मोतियाबिंद को इस आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है कि वे लेंस के किस भाग को प्रभावित करते हैं। मोतियाबिंद का स्थान और सीमा भी दृष्टि हानि की सीमा को निर्धारित करती है। उदाहरण के लिए, यदि लेंस का केंद्र प्रभावित होता है (परमाणु मोतियाबिंद); हालांकि, यदि लेंस के किनारे प्रभावित होते हैं (कॉर्टिकल मोतियाबिंद) तो दृष्टि हानि मुश्किल से ध्यान देने योग्य हो सकती है।
उपचार और सर्जरी पर जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि वैसे तो मोतियाबिंद का उपचार सालो से हो रहा हैं लेकिन मेडिकल साइंस में तरक्की के वजह से फेको सर्जरी जिसमें किसी भी तरह के सुई का उपयोग नहीं होता हैं सबसे ज्यादा विश्वस्नियें तरीका हैं। आगे विस्तृत रूप से इन डॉक्टर्स पल्लवी सिन्हा और शलभ सिन्हा ने बताया कि नए नुस्खे वाले चश्मे और मजबूत रोशनी के साथ शुरुआती मोतियाबिंद के लक्षणों में सुधार किया जा सकता है। हालांकि, एक बार जब मोतियाबिंद इस हद तक बढ़ जाता है कि बिगड़ा हुआ दृष्टि आपके जीवन की गुणवत्ता को कम कर देता है और दैनिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करता है, तो सर्जरी ही एकमात्र प्रभावी उपचार है।
जब मैंने , मनीष स्वरुप, कॉफ्रेट के संस्थापक ने और पूछा तो उन्होंने बताया कि मोतियाबिंद सर्जरी में क्लाउडेड लेंस को हटाना और इसे एक स्पष्ट प्लास्टिक लेंस के साथ बदलना शामिल है जिसे इंट्राओकुलर लेंस (आईओएल) के रूप में जाना जाता है। सर्जरी का उद्देश्य जितना संभव हो सके दृष्टि (विशेषकर दूर दृष्टि) को बहाल करना है। अलग-अलग आवर्धक शक्ति वाले आईओएल का उपयोग पहले से मौजूद अल्प-दृष्टि (मायोपिया), दीर्घ-दृष्टि (हाइपरोपिया), या आपके कॉर्निया (दृष्टिवैषम्य) के आकार की समस्याओं को ठीक करने में मदद के लिए किया जा सकता है।आज आधुनिक तकनीक ने मोतियाबिंद का अधिक सुरक्षित तरीके से इलाज करने में बहुत मदद की है। यह नहीं भूलना चाहिए कि पुराने दिन चले गए हैं और आज इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसका उपयोग मोतियाबिंद सर्जरी के दौरान बहुत दर्द देने के लिए किया जाता था। आज सबसे अच्छी मोतियाबिंद सर्जरी फेको है और पुराने दिनों के विपरीत, रोगियों को एक बड़ा चीरा लगाने की आवश्यकता नहीं होती है जिससे सर्जरी के बाद बहुत सारी समस्याएं होती हैं। मोतियाबिंद सर्जरी आमतौर पर एक दिन के ठहरने की प्रक्रिया के रूप में की जाती है और आमतौर पर हल्के बेहोश करने की क्रिया के साथ स्थानीय संवेदनाहारी के तहत की जाती है। फेकमूल्सीफिकेशन, या फेको, मोतियाबिंद सर्जरी की विधि है जिसमें आंख के आंतरिक लेंस को अल्ट्रासोनिक ऊर्जा का उपयोग करके इमल्सीफाइड किया जाता है और एक इंट्राओकुलर लेंस इम्प्लांट, या आईओएल के साथ बदल दिया जाता है। सर्जरी में आंख के सामने एक छोटा चीरा लगाना शामिल है, जिसके माध्यम से पुराने लेंस को हटा दिया जाता है और कृत्रिम फोल्डेबल आईओएल डाला जाता है।यदि मोतियाबिंद दोनों आंखों को प्रभावित करता है, तो एक समय में केवल एक आंख का ही ऑपरेशन किया जाता है। आमतौर पर यह सिफारिश की जाती है कि दूसरी आंख का इलाज करने से पहले आंख अच्छी तरह से ठीक हो जाए। यह आमतौर पर कम से कम एक महीने का होता है।
सर्जरी होने के बाद डॉक्टर पल्लवी सिन्हा कहती हैं कि मरीजों को आम तौर पर क्लिनिक या अस्पताल में कुछ घंटों के ठीक होने के बाद घर भेज दिया जाता है, और जब बेहोश करने की क्रिया खत्म हो जाती है। आंख की सुरक्षा के लिए आमतौर पर पहली रात के लिए आंख के ऊपर एक आई पैड लगाया जाता है।मोतियाबिंद सर्जरी के बाद आंखों में हल्का दर्द और बेचैनी महसूस होना आम बात है। इसे आमतौर पर पैरासिटामोल जैसी दवाओं से अच्छी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।हालांकि आंखों को सिंक्रोनाइज़ करने में एक या दो दिन लग सकते हैं, लोग आमतौर पर रिपोर्ट करते हैं कि दृष्टि में तेजी से सुधार होता है, लगभग दो सप्ताह के भीतर सामान्य गतिविधियों में वापस आने में सक्षम होता है। दूर दृष्टि वापस आती है लेकिन ठीक या विस्तृत दृश्य कार्यों के लिए पढ़ने के चश्मे की आवश्यकता होगी।मोतियाबिंद सर्जरी आम तौर पर सुरक्षित होती है और गंभीर जटिलताओं के विकास का जोखिम कम होता है।
वही डॉक्टर शलभ सिन्हा जो कि पोस्टीरियर कैप्सूल ओपसीफिकेशन (पीसीओ) के विशेषगय हैं बताते हैं कि सबसे आम जटिलता पोस्टीरियर कैप्सूल ओपसीफिकेशन (पीसीओ) नामक एक स्थिति है, जिसमें सर्जरी के महीनों या वर्षों बाद लेंस इम्प्लांट के पीछे की ओर बढ़ने वाली त्वचा या झिल्ली शामिल होती है, जिससे दृष्टि फिर से धुंधली हो जाती है। झिल्ली को काटने के लिए पीसीओ का इलाज एक साधारण लेजर नेत्र शल्य चिकित्सा से किया जा सकता है।मोतियाबिंद सर्जरी में आंख के अंदर संक्रमण और रक्तस्राव का खतरा होता है और रेटिना डिटेचमेंट का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, अधिकांश जटिलताओं का इलाज दवा या आगे की सर्जरी से किया जा सकता है।
डॉक्टर शलभ और पल्लवी सिन्हा का सुरक्षा के दृष्टि से कहना हैं कि मोतियाबिंद को रोका नहीं जा सकता। हालांकि, कुछ दृष्टिकोण उनके विकसित होने की संभावना में देरी या कमी कर सकते हैं। आंखों को पराबैंगनी प्रकाश से बचाने वाले धूप का चश्मा पहनने की सलाह दी जाती है। फलों और सब्जियों में उच्च आहार, शराब का सेवन सीमित करना और धूम्रपान छोड़ना भी फायदेमंद माना जाता है।स्वास्थ्य स्थितियों का इष्टतम प्रबंधन जो मोतियाबिंद (जैसे: मधुमेह) के विकास के जोखिम को बढ़ा सकता है, की सलाह दी जाती है। यदि कॉर्टिकोस्टेरॉइड लंबे समय तक लिए जा रहे हैं, तो यह अनुशंसा की जाती है कि मोतियाबिंद के विकास के संकेतों के लिए एक जीपी या ऑप्टोमेट्रिस्ट नियमित रूप से आंखों की जांच करें। भले ही कॉर्टिकोस्टेरॉइड नहीं लिया जा रहा हो, 40 से अधिक उम्र के लोगों के लिए नियमित रूप से आंखों की जांच की सलाह दी जाती है ताकि विकास के शुरुआती चरण में मोतियाबिंद और अन्य आंखों की समस्याओं का पता लगाया जा सके।
HEALTH
प्रोस्टेट कैंसर के कारण, लक्षण और निवारण ? क्या प्रोस्टेट कैंसर का इलाज संभव है ?

देश के प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट डॉ निखिल रंजन चौधरी ,आईजीआईएमएस, पटना का कहना है कि मानव शरीर में पायी जाने वाली कैंसर की अनेक प्रजाति जैसे ब्लड कैंसर, पैंक्रिअटिक कैंसर की तरह ही प्रोस्टेट कैंसर भी एक प्रकार का कैंसर है। प्रोस्टेट कैंसर सिर्फ पुरुषों में ही पाया जाता है। कुछ कैंसर ऐसे भी होते हैं जो कि पुरुषों और महिलाओं दोनों में पाये जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो कि या तो पुरुषों में पाए जाते हैं या सिर्फ महिलाओं में पाये जाते हैं। प्रोस्टेट कैंसर महिलाओं में नहीं पाया जाता है। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर ज्यादा पाया जाता है। प्रोस्टेट कैंसर के मरीज़ आजकल बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।
प्रोस्टेट ग्लैंड या ग्रंथि में होने वाले कैंसर को ही हम प्रोस्टेट कैंसर कहते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि एक अखरोट की आकार की ग्रंथि होती है जो कि सिर्फ पुरुषों में पाई जाती है। यह ग्रंथि महिलाओं में नहीं पाई जाती है। प्रोस्टेट पुरुषों में पाए जाने वाली एक छोटी सी ग्रंथि होती है जो कि पेट के निचले हिस्से में पाई जाती है। इस ग्रंथि में जिस तरल पदार्थ का निर्माण होता है उसे सीमन के नाम से जाना जाता है। जब प्रॉस्टेट ग्रंथि मे कोशिकाओं का विकास असामान्य तरीके से होता है तो उसे प्रोस्टेट कैंसर के नाम से जाना जाता है.
प्रोस्टेट ग्रंथि क्या होती है?
प्रोस्टेट एक प्रकार की ग्रंथी है जो केवल पुरुषों में ही पाई जाती है। इस ग्रंथि का मुख्य कार्य एक सफ़ेद रंग के पदार्थ का निर्माण करना होता है जो वीर्य का ही भाग होता है। इसका मुख्य कार्य शुक्राणुओं के लिए भोजन की व्यवस्था करना होता है।
प्रोस्टेट ग्रंथि पुरुषों में उम्र के साथ साथ अपने आकार को परिवर्तित करती जाती है। कई बार इसी के चलते प्रोस्टेट ग्रंथि में कोशिकाओं का विभाजन सही प्रकार से नहीं होता। कोशिकाएं अनियंत्रित होकर विभाजित होने लगती हैं जिससे प्रोस्टेट ग्रंथि में कैंसर बनना शुरू हो जाता है। इस स्थिति को ही प्रोस्टेट कैंसर के नाम से जाना जाता मानव शरीर में पायी जाने वाली कैंसर की अनेक प्रजाति जैसे ब्लड कैंसर, पैंक्रिअटिक कैंसर की तरह ही प्रोस्टेट कैंसर भी एक प्रकार का कैंसर है। प्रोस्टेट कैंसर सिर्फ पुरुषों में ही पाया जाता है। कुछ कैंसर ऐसे भी होते हैं जो कि पुरुषों और महिलाओं दोनों में पाये जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो कि या तो पुरुषों में पाए जाते हैं या सिर्फ महिलाओं में पाये जाते हैं। प्रोस्टेट कैंसर महिलाओं में नहीं पाया जाता है। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर ज्यादा पाया जाता है। प्रोस्टेट कैंसर के मरीज़ आजकल बहुत तेजी से बढ़ रहे है.
डॉ निखिल रंजन चौधरी बताते है कि
प्रोस्टेट ग्लैंड या ग्रंथि में होने वाले कैंसर को ही हम प्रोस्टेट कैंसर कहते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि एक अखरोट की आकार की ग्रंथि होती है जो कि सिर्फ पुरुषों में पाई जाती है। यह ग्रंथि महिलाओं में नहीं पाई जाती है। प्रोस्टेट पुरुषों में पाए जाने वाली एक छोटी सी ग्रंथि होती है जो कि पेट के निचले हिस्से में पाई जाती है। इस ग्रंथि में जिस तरल पदार्थ का निर्माण होता है उसे सीमन के नाम से जाना जाता है। जब प्रॉस्टेट ग्रंथि मे कोशिकाओं का विकास असामान्य तरीके से होता है तो उसे प्रोस्टेट कैंसर के नाम से जाना जाता है।
कैंसर क्या है?
हमारे शरीर को विकास करने के लिए नई कोशिकाओं की आवश्यकता होती है। हमारा शरीर निरंतर नई कोशिकाओं का निर्माण करता रहता है। इसी के साथ पुरानी कोशिकाओं की मरम्मत और ख़राब हुई कोशिकाओं को पूर्णतः ख़त्म करने का भी कार्य शरीर में होता रहता है।
शरीर में कोशिका विभाजन का कार्य एक निश्चित रेखा में होता है। शरीर में कोशिका विभाजन को संयम रखने के लिए कुछ चेक प्वाइंट भी होते हैं। ये चेक प्वाइंट यह सुनिश्चित करते हैं कि माइटॉसिस और मियॉसिस (कोशिका विभाजन चक्र) के दौरान जो भी कोशिका विभाजन हो रहा है वह निश्चित समय अवधि में ही हो रहा है।
कैंसर की अवस्था होने पर ये निश्चित रूपरेखा प्रभावित होने लगती है। चेक पॉइंट्स फ़ेल हो जाते हैं और कोशिकाएं अनियंत्रित होकर विभाजित होने लगती हैं। इस प्रकार शरीर में फ़ालतू कोशिकाएं बनने लगती हैं जिन्हें कैंसर कोशिकाएं कहते हैं। यह स्थिति कैंसर कहलाती है। शरीर में कैंसर वह बीमारी है जो कोशिका विभाजन को प्रभावित करती है।
डॉ निखिल रंजन चौधरी का कहना है कि कैंसर बीमारी होने के बहुत से कारण हो सकते हैं। धूम्रपान, तम्बाकू, शराब इत्यादि के सेवन से कैंसर की संभावना ज़्यादा बढ़ जाती है। इसी के साथ जो लोग धूम्रपान, तंबाकू या शराब का सेवन नहीं करते हैं ऐसे लोगों में भी कैंसर की संभावना बनी रहती है और इसका कारण असंतुलित आहार और कम नींद लेना है।
प्रोस्टेट कैंसर के प्रकार
प्रोस्टेट कैंसर के दो प्रकार होते हैं:
1) एग्रेसिव प्रॉस्टेट कैंसर: एग्रेसिव प्रोस्टेट कैंसर को तीव्र विकसित होने वाला कैंसर भी कहा जाता है। यह कैंसर बहुत तेजी से शरीर में विकसित होता है और शरीर के अन्य अंगों में भी फैल जाता है।
2) नॉन एग्रेसिव प्रोस्टेट कैंसर: नॉन एग्रेसिव प्रोस्टेट कैंसर को धीमी गति से विकसित होने वाला कैंसर भी कहा जाता है। यह कैंसर पुरुषों में सिर्फ प्रोस्टेट ग्लैंड में ही पाया जाता है।
प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण
प्रोस्टेट कैंसर की शुरुआत का पता नहीं चल पाता है जिससे इसका समय पर इलाज नहीं हो पाता है। फिर भी और बीमारियों की तरह प्रोस्टेट कैंसर के भी कुछ लक्षण होते हैं-
1) पेशाब आना
अधिकतर लोगों में या देखा गया है कि बार-बार पेशाब का आना एक बहुत ही प्रमुख प्रोस्टेट कैंसर का लक्षण है।
2) पेशाब करते समय खून का आना
पेशाब करते समय खून का आना भी प्रोस्टेट कैंसर होने का एक प्रमुख लक्षण है। अगर किसी भी पुरुष को पेशाब करते समय खून आ जाता है तो उसे तुरंत ही अपना इलाज शुरू करवाना चाहिए ।
3) पीठ में दर्द
पीठ में दर्द होना भी एक प्रोस्टेट कैंसर का ही लक्षण है। हमें इस समस्या को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और तुरंत ही हमें अपने डॉक्टर को सूचित करना चाहिए।
4) पेशाब का रुकना
कई बार यह भी देखा गया है कि कई पुरुषों में पेशाब का सही से ना होना या रुक रुक कर आना भी प्रोस्टेट कैंसर का एक प्रमुख लक्षण है।
प्रोस्टेट कैंसर के कारण
प्रोस्टेट कैंसर के कई कारण हो सकते हैं जिनमें से कुछ कारण यह भी है-
1) अधिक उम्र
अधिक उम्र होने के कारण भी प्रोस्टेट कैंसर हो सकता है। यह कैंसर ज्यादातर उम्र दराज लोगों में ही देखा गया है। इसलिए उम्र दराज लोगों को अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
2) मोटापा
मोटापा का होना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी बीमारी है। जिन पुरुषों का वजन बहुत अधिक होता है उनमें भी यह बीमारी पाई जाती है। इसलिए पुरुषों को अपने वजन पर भी ध्यान देना चाहिए।
3) हारमोंस
हारमोंस का परिवर्तन सामान्य तरीके से ना होने के कारण भी प्रोस्टेट कैंसर हो जाता है।
4) अन्हेल्थी फूड या संतुलित आहार
जो पुरुष ज्यादा तली भुनी चीजें और बाहर की चीजें खाते हैं उनको भी प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा हो जाता है। इसलिए हम सभी को पौष्टिक आहार ही खाना चाहिए।
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज हो सकता है। समय रहते ही हमें इसका इलाज शुरू करवा देना चाहिए ताकि हमारी जिंदगी बेहतर हो सके। डॉ निखिल रंजन चौधरी बताते कि प्रोस्टेट कैंसर का इलाज किस तरह किया जा सकता है?
1) दवाई
इस कैंसर का इलाज दवाई के द्वारा से भी कर सकते हैं। प्रोस्टेट कैंसर के लिए बहुत सारी दवाएं मौजूद हैं। यदि हम समय-समय पर अपनी दवाइयां ले तो हम कैंसर से छुटकारा पा सकते हैं।
2) सर्जरी
जब हमारा इलाज किसी भी अन्य तरीके से नहीं हो पाता है तब हमारे पास यह एक आखिरी तरीका बच जाता है। इस सर्जरी को प्रोस्टेटेक्टमी कहा जाता है। इसमें सर्जिकल तरीके से प्रोस्टेट ग्लैंड को निकाल दिया जाता है।
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बिहार : पिता की मृत्यु हुई तो बेटे ने श्राद्ध भोज के बजाय गांव के लिए बनवाया पुल
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JOBS3 weeks ago
IBPS ने निकाली बंपर बहाली; क्लर्क, PO समेत अन्य पदों पर निकली वैकेंसी, आज से आवेदन शुरू