इस साल भारत अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है. 15 अगस्त को आजादी के वर्षगांठ पर देश के उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जाता है जिन्होंने देश की आजादी के लिए खुद को कुर्बान कर दिया. उन महापुरुषों में एक नाम खुदीराम बोस का भी है, जिन्होंने सिर्फ 18 साल की उम्र में वो कर दिखाया जो हर पीढ़ी के युवाओं के लिए प्रेरणादायक है.

खुदीराम बोस की आज 113वीं पुण्यतिथि है. 11 अगस्त 1908 को बम हमलों के आरोप में खुदीराम बोस को मौत की सजा सुनाई गई थी. फांसी के वक्त उनकी उम्र 18 साल 8 महीने 8 दिन थी. उनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां हुआ था. खुदीराम बोस जब बहुत छोटे थे, तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था. उनकी बड़ी बहन ने उनका लालन-पालन किया था.

स्कूल में लगाने लगे थे अंग्रेजों के खिलाफ नारे
खुदीराम बोस स्कूल के दिनों से ही अंग्रेजों के खिलाफ राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लग गए थे. वे बेहद कम उम्र में ही आजादी के लिए लगने वाले जुलूसों में शामिल होकर अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे. उनमें देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने 9वीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और 1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद देश को आजादी दिलाने के लिए स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े और सत्येन बोस के नेतृत्व में अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया.

वंदे मातरम् पैम्फलेट बांटने में निभाई अहम भूमिका
उन दिनों आजादी की मांग को लेकर देश के हर कोने में जन आंदोलन होते थे. खुदीराम बोस रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम् पैम्फलेट बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया. इस दौरान उन्हें 28 फरवरी 1906 को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन वे कैद से भाग निकले. लगभग 2 महीने बाद अप्रैल में फिर से पकड़े गए. 16 मई 1906 को उन्हें जेल रिहा कर दिया गया.

ट्रेन पर किया हमला
खुदीराम बोस बच्चों पर कोड़ा बरसाने वाले मुजफ्फरपुर के मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड से काफी नाराज थे. क्रांतिकारियों के दल ने किंग्सफोर्ड मारने की जिम्मेदारी खुदीराम और प्रफुल्लचंद्र चाकी को दिया था. उन्होंने अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर सेशन जज किंग्सफोर्ड से बदला लेने की योजना बनाई. 6 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परंतु गवर्नर बच गया. 1908 में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया लेकिन वे भी बच निकले.

30 अप्रैल 1908 को सेशन जज की गाड़ी पर बम फेंक दिया, लेकिन उस समय गाड़ी में किंग्सफोर्ड की जगह उसकी परिचित दो यूरोपीय महिला कैनेडी और उसकी बेटी सवार थी. किंग्सफोर्ड के धोखे में दोनों महिलाएं मारी गई जिसका खुदीराम और प्रफुल्ल चंद चाकी को बेहद अफसोस हुआ. अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लगी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया. अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लचंद चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम बोस पकड़े गए.

18 साल की उम्र में हुई फांसी
अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार होने के बाद खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई. कुछ इतिहासकार उन्हें देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी देशभक्त मानते हैं. उनकी शहादत के बाद कई दिनों तक स्कूल बंद रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे जिनकी किनारी पर ‘खुदीराम’ लिखा होता था. फांसी के बाद खुदीराम बोस इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिनकी किनारी पर ‘खुदीराम’ लिखा होता था.

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