समस्तीपुर। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का व्यक्तित्व हर किसी को हमेशा से प्रभावित करता रहा। महात्मा गांधीजी के अनुयायी रहे डा. प्रसाद ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के साथ खादी आंदोलन में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। उनका खादी प्रेम ही उन्हें वैनी तक खींच लाया। वह भी राष्ट्रपति रहते हुए। आज भले ही राजेंद्र बाबू हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी स्मृतियां आज भी वैनी में ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में संरक्षित हैं। राजेंद्र बाबू के साथ तत्कालीन राज्यपाल डॉ. जाकिर हुसैन एवं बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष ध्वजा प्रसाद साहु भी थे।

Rajendra Prasad Biography in Hindi | राजेन्द्र प्रसाद जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी

विशेष रेलगाड़ी से पहुंचे थे महामहिम

बात 1960 की है। देशरत्न डाक्टर राजेंद्र प्रसाद उस समय देश के राष्ट्रपति थे। छोटी लाईन की विशेष रेलगाड़ी (प्रेसिडेन्ट स्पेशल) से पूसारोड (अब खुदीराम बोस पूसा) रेलवे स्टेशन पर राजेंद्र बाबू उतरे थे। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उन्हें खादी भंडार वैनी का निरीक्षण करना था। वैनी में एक जनसभा को भी संबोधित करनी थी। उनके आगमन की सूचना के मद्देनजर मिले निदेश के आलोक में वैनी खादी परिसर को सादगी के साथ सजाया संवारा गया था। राजेंद्र बाबू के आह्वान पर ही वैनी में खादी ग्रामोद्योग की स्थापना राजेंद्र बाबू बिहार में खादी संस्था के संस्थापक थे। दिसंबर 1925 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पटना अधिवेशन के प्रस्ताव के अनुसार अखिल भारतीय चर्खा संघ की स्थापना हुई थी। राजेंद्र बाबू को अखिल भारतीय चर्खा संघ के बिहार शाखा का एजेन्ट नियुक्त किया गया था। राजेंद्र बाबू खादी ग्रामोद्योग के विकास की महत्वपूर्ण धुरी बन गये। उनके आह्वान पर वैनी में भी खादी ग्रामोद्योग की स्थापना हुई। खादी कार्यकर्ता समर्पित भाव से खादी ग्रामोद्योग के काम को विस्तारित करने में जी जान से जुट गए थे। उस जमाने में शायद ही कोई घर था जहां चर्खा नहीं चल रहा हो। इस महाभियान में उस समय राजेंद्र बाबू ने संस्थान में आने का आश्वासन दिया था लेकिन ऐसा नहीं हो सका। लेकिन उन्हें अपना आश्वासन याद रहा। उन्होंने अपनी बातें याद रखी। राष्ट्रपति होते हुए भी वे वैनी आये।

सभी विभागों की ली थी जानकारी

खादी परिसर में चल रहे सूत उत्पादन, खादी की बुनाई, सरंजाम ग्रामोद्योग सहित अन्य गतिविधियों का महामहिम ने बारीक निरीक्षण किया। जिस विभाग में गए वहां के कार्यकर्ता से बात कर प्रगति रिपोर्ट ली। यहां तक कि कत्तिनों से पूछा कि मजदूरी समय से मिल रही है या नहीं। खादी संस्था परिसर में ही उनके लिए विश्राम की व्यवस्था की गई थी। यहीं उन्होंने अपने हाथों से चीकू का पौधरोपण किया था। आज वह विशाल वृक्ष बन चुका है।

आज भी संरक्षित हैं उनकी यादें

नब्बे वर्षीय खादी कार्यकर्ता नंदकिशोर मिश्र उस समय खादी उत्पादन विभाग के व्यवस्थापक थे। वे बताते हैं कि खादी भंडार के तत्कालीन व्यवस्थापक रामश्रेष्ठ राय ने सभी खादी कार्यकर्ताओं को राष्ट्रपति के खादी भंडार में आगमन की सूचना देते हुए तैयारी का निदेश दे दिया था। इस कारण वहां सादगी से काफी तैयारी की गई थी। उस समय अंबर चर्खा के प्रसार निदेशक रहे वयोवृद्ध रमाकांत राय बताते हैं कि राजेंद्र बाबू की वैनी में जनसभा हुई थी। दिसंबर महीने की ठंड में भी बड़ी संख्या लोग उन्हें देखने एवं सुनने के लिए दूर दूर से अपनी व्यवस्था से आए थे। राजेंद्र बाबू जैसे संत सरीखे महापुरुष विरले ही हुए। भारतीयता एवं सादगी की प्रतिमूर्ति रहे देशरत्न राजेंद्र प्रसाद की छवि को आज भी वैनीवासी अपने दिलों में संजोए हुए हैं। खादी संस्था के वर्तमान मंत्री धीरेंद्र कार्यी कहते हैं कि जिस बंगले में राजेंद्र बाबू ने विश्राम किया था, उस बंगले का नामाकरण राजेंद्र भवन कर उनकी यादों को संरक्षित किया गया है। जहां उन्होनें पौधे लगाए उसे राजेंद्र पार्क के रूप में विकसित किया गया है।

Source : Dainik Jagran

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