मुस्लिम समुदाय के लोग आज ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का पर्व मना रहे हैं. इस त्योहार को बारावफात भी कहा जाता है. ये त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने की 12वीं तारीख को पड़ता है. मान्यताओं के अनुसार रबी अव्वल की 12वीं तारीख को ही मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था. इसीलिए मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन को बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं.

बारावफात पर क्या होता है खास?

हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन को पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस पर्व को बारावफात या ईद मिलादुन्नबी कहते हैं. इस मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोग रात भर मस्जिदों में इबादत करते हैं और जलसा (इस्लामिक सभा) का आयोजन होता है. इसमें मोहम्मद साहब की शान में नज़्म पढ़े जाते हैं. कई जगहों पर जुलुस भी निकाले जाते है. इस दिन मस्जिद व घरों में कुरान को खास तौर पर पढ़ा जाता है और गरीबों में जरूरत की चीजें दान की जाती हैं. घरों में पकवान बनाए जाते हैं और एक-दूसरे के साथ मिलकर भाईचारगी का संदेश देते है. इस्लाम धर्म में मानवता यानि इंसानियत को सबसे ऊपर रखा गया है इसीलिए बारावफात के दिन गरीबों को नए कपड़े, राशन और दान देकर इस परंपरा को लोगों तक पहुंचाया जाता है.

क्या है इसका इतिहास?

पैगंबर मोहम्मद का जन्म अरब के शहर मक्का में 570 ईस्वी में हुआ था. मोहम्मद साहब के पिता का नाम हजरत अब्दुल्लाह और माता का नाम आमना बीबी था. इस्लाम धर्म के अनुसार मोहम्मद साहब आखिरी नबी माने जाते हैं. हज़रत आदम अल इस्लाम से लेकर मोहम्मद साहब से पहले तक एक लाख चौबीस हज़ार नबी आये जिसमें हजरत नूह, हज़ार मूसा, हज़रात इसा के भी नाम शामिल हैं. मोहम्मद साहब आखिरी नबी थे और अल्लाह ने इन्हीं को पवित्र कुरान अता किया था जिसे आसमानी (अकाशी) किताब भी कहा जाता है.

इस्लाम धर्म में चार आसमानी (आकाशीय ग्रन्थ) है जिसमें कुरान की सबसे ज़्यादा मान्यता है. मोहम्मद साहब से पवित्र ग्रंथ कुरान के आदर पर ही इस्लाम धर्म का प्रचार किया था. इस्लाम धर्म को पूरी दुनिया में मानने वाले कुरान को मानते हैं.

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