सुमित झा (सीनियर एंकर, न्यूज़ 18 बिहार)

पटना. मंगलवार को नीतीश कैबिनेट की बैठक में पुलिस जांच से जुड़े मामलों की मॉनिटरिंग के लिए ‘इन्वेस्टीगेशन मॉनिटरिंग सेल’ के गठन का फैसला लिया गया है. पुलिस मुख्यालय स्तर पर इन्वेस्टीगेशन मॉनिटरिंग सेल (Bihar Police Investigation Monitoring Cell) का गठन होगा. ये मॉनिटरिंग सेल अपराध की जांच और उसकी प्रगति पर नजर रखेगा. मॉनिटरिंग सेल के लिए 69 पदों के सृजन को मंजूरी दी गई है. इन पदों में पुलिस अधीक्षक का एक पद, पुलिस उपाधीक्षक का सात पद, पुलिस निरीक्षक का 13 पद, आशु लिपिक सहायक अवर निरीक्षक के आठ पद, कंप्यूटर संचालक के 21 पद, सिपाही 11 पद और चालक सिपाही आठ पद यानी कुल 69 पद होंगे.

नीतीश कैबिनेट का यह फैसला आपको बाकी फैसलों की तरह साधारण लगे, लेकिन इस फैसले के पीछे दरअसल नीतीश का वो पुराना फॉर्मूला है, जिसके कारण अपने पहले कार्यकाल (2005 से 2010) में नीतीश ने अपराध पर काबू पाया था और क्राइम कंट्रोल उनका यूएसपी कहा जाने लगा. इसे समझने के लिए कुछ पुराने आंकड़ों को खंगालना होगा. दरअसल, यही नीतीश कुमार 2010 में थे, जिनकी पहल पर महज 3 सालों में 30 हजार से ज्यादा बड़े और छोटे अपराधियों को सज़ा दिलाई गई थी, जो एक रिकार्ड था. तब डीजीपी रहे अभयानंद को सीएम नीतीश ने अपराधियों पर लगाम कसने का टास्क दिया और उन्होने कानून का खौफ पैदा करने के आपराधिक मामलों की जांच में तेजी लाने और अपराधियों को सज़ा दिलाने में तेजी लाने के लिए मुख्यालय से लेकर निचले स्तर पर अधिकारियों को लगाया.

2010 में बना था अनोखा रिकॉर्ड

तब सीएम नीतीश ने सत्ता में आते ही अपराधियों को तुरंत सजा दिलाने के लिए जनवरी 2006 में स्पेशल कोर्ट का गठन किया था. 2010 में सबसे ज्यादा 14 हजार 311 अपराधियों को स्पीडी ट्रायल के तहत सजा दिलाई गई थी. इसका असर भी दिखा और अपराधियों के मन में कानून का खौफ पैदा हुआ, लेकिन अपने दूसरे और मौजूदा कार्यकाल में धीरे-धीरे नीतीश की यह पहल कमजोर पड़ती गई और क्राइम ग्राफ में इजाफा होता गया. 2010 में जहां सबसे ज्यादा 14 हजार 311 अपराधियों को स्पीडी ट्रायल के तहत सजा दिलाई गई थी, वहीं 2018 आते-आते यह संख्या आधे से भी कम हो गई. अंतिम उपब्लध आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में सिर्फ 5 हजार 926 अपराधियों को ही सज़ा दिलाई जा सकी जबकि अपराध के आंकड़ों में 2010 के मुकाबले 2018 में दोगुने से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.

शराबबंदी कानून का सच

साल 2010 में जहां संज्ञेय अपराध के 1 लाख 37 हजार 572 मामले दर्ज किए गए, वहीं 2018 में संज्ञेय अपराध के 2 लाख 62 हजार 802 मामले दर्ज किए गए. वहीं, अपराधियों को सजा दिलाने की रफ्तार सुस्त पड़ गई. एक और उदाहरण शराबबंदी कानून के तहत दर्ज मामले भी हैं. 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद महज 0.13 प्रतिशत कन्विक्शन रेट के साथ 5 सालों में 3 लाख 39 हजार 401 गिरफ्तारियों में सिर्फ 470 को सजा मिली, यानी महज औसतन हर साल 94 अभियुक्तों को सजा मिली.

इस साल अपराध के मामले में टॉप पर है राजधानी

साफ है नीतीश के पहले कार्यकाल में जिस तेजी से आपराधिक मामलों की जांच और अपराधियों को सज़ा दिलाई जाती थी, वो तेजी गायब होती गई और अपराधियों और शराब माफियाओं के हौसले बुलंद होते गए. अपराधियों को लगने लगा कि गिरफ्तारी होगी भी तो तुरंत सजा मिलेगी नहीं और जमानत पर छूट जाएंगे, होता भी यही है. इसका असर क्राइम ग्राफ में बढ़ोतरी में भी दिखा. हाल ही में बिहार पुलिस की ओर से इस साल के शुरुआती तीन महीने के ही आंकड़े को देखें, तो जनवरी से मार्च 2021 में राजधानी पटना मर्डर और चोरी मामलों में पूरे बिहार में टॉप पर रहा. इन तीन महीनों में पटना में 40 मर्डर हुए, जबकि चोरी की 157 वारदातें हुईं जबकि रेप की वारदातों में पूर्णिया अव्वल रहा जबकि 47 लूट के मामलों के साथ मधेपुरा टॉप पर रहा.

फिर से दिखेगा असर!

जाहिर है बढ़ते क्राइम ग्राफ पर काबू पाने के लिए जरूरी था अपराधियों के मन में एक बार फिर कानून का खौफ पैदा करना. इसके लिए जरूरी था क्राइम कंट्रोल का वही पुराना फार्मूला अपनाना, जिसके तहत आपराधिक मामलों की जांच में तेजी आए और अपराधी जल्द से जल्द सलाखों के पीछे जाएं. यही वजह है कि सीएम नीतीश ने पुलिस मुख्यालय स्तर पर ‘इन्वेस्टीगेशन मॉनिटरिंग सेल’ के गठन का फैसला लिया है. यानी आने वाले दिनों में आपराधिक मामलों की जांच में तेजी आएगी और बाहर घूम रहे अपराधी सलाखों के पीछे होंगे.

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