काबुल. अफगानिस्तान में तालिबान एक के बाद एक शहरों को कब्जाता जा रहा है. यहां के राष्ट्रपति अशरफ गनी मदद के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं. अमेरिका पहले ही साथ छोड़ चुका है. युद्धग्रस्त देश में महिलाओं की हालात बद से बदतर होती जा रही है. एक युवा महिला जर्नलिस्ट ने तालिबान का चेहरा लोगों के सामने रखा है. हिकमत नूरी ने अंग्रेजी अखबार द गार्डियन को दिए इंटरव्यू में अपनी आपबीती सुनाई. उसने बताया कि कैसे वह बुर्के में छिपकर तालिबान से बचती फिर रही है. नूरी ने दुनिया से गुजारिश की है कि उसके लिए दुआ की जाए.

गार्डियन से बातचीत में हिकमत नूरी ने बताया, ‘दो दिन पहले मुझे उत्तरी अफगानिस्तान से अपना घर, अपनी जिंदगी छोड़कर भागना पड़ा. तालिबान ने मेरा शहर छीन लिया. मैं अब भी भाग रही हूं. कोई सुरक्षित जगह नहीं है. पिछले हफ्ते मैं एक न्यूज जर्नलिस्ट थी. आज मैं अपने नाम से लिख नहीं सकती हूं और न कह सकती हूं कि मैं कहां से हूं या कौन हूं मैं.’

वह आगे कहती हैं, ‘कुछ ही दिन में मेरी पूरी जिंदगी का नामोनिशान खत्म हो गया. मुझे बहुत डर लग रहा है. मेरा क्या होगा मैं नहीं जानती. क्या मैं कभी घर जाऊंगी? क्या मैं अपने पैरंट्स को फिर से देख पाऊंगी? मैं कहां जाऊंगी? हाइवे दोनों तरफ से ब्लॉक है. मैं कैसे बचूंगी?’

नूरी ने आगे कहा, ‘अपना घर और जिंदगी छोड़ने का फैसला प्लान नहीं किया था. अचानक ही हो गया. पिछले कुछ दिन में मेरा पूरा प्रांत तालिबान ने छीन लिया. सरकार का जहां कंट्रोल बचा है, उसमें सिर्फ एयरपोर्ट और कुछ पुलिस डिस्ट्रिक्ट ऑफिस बचे हैं. मैं सुरक्षित नहीं हूं क्योंकि मैं एक 22 साल की लड़की हूं. मुझे पता है कि तालिबान अपने लड़ाकों के लिए परिवारों से बेटियों और बहुओं को उठवा रहा है. मुझे पता है कि तालिबान मेरे और मेरे साथियों को ढूंढते हुए आएगा.’

नूरी के मुताबिक, ‘वीकेंड पर मेरे मैनेजर ने मुझे कॉल किया. मुझसे कहा कि किसी अंजान नंबर से फोन आए तो जवाब न दूं. उन्होंने कहा कि हमें, खासकर महिलाओं को, छिपना चाहिए और अगर शहर से भाग सकें तो भाग जाएं. जब मैं पैकिंग कर रही थी, गोलियां और रॉकेट सुनाई दे रहे थे.प्लेन और हेलिकॉप्टर सिर के ऊपर से उड़ रहे थे. घर के ठीक बाहर गलियों में लड़ाई चल रही थी. मेरे अंकल ने मुझे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की पेशकश की तो मैंने फोन और चादरी (पूरी तरह ढकने वाला लिबास) उठाया और चल पड़ी.’

उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार नहीं निकल सका. हमारा घर शहर की जंग में फ्रंटलाइन पर है. रॉकेट फायर बढ़ने के साथ उन्होंने मुझसे निकलने को कहा, क्योंकि उन्हें पता था कि शहर से बाहर निकलने के रास्ते जल्द ही बंद हो जाएगे. मैंने उन्हें पीछे छोड़ दिया और अंकल के साथ भागकर निकल आई. मैंने तबसे उनसे बात नहीं की है, क्योंकि शहर में फोन ही नहीं काम कर रहे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘घर के बाहर कोहराम मचा था. मुझे घर के बाहर तालिबान के लड़ाके दिख रहे थे, सड़कों पर भी. वे हर जगह थे. ऊपरवाले का शुक्र है कि मेरे पास चादरी थी, लेकिन फिर भी मुझे डर लग रहा था कि वे मुझे रोक लेंगे या पहचान लेंगे. मैं चलते हुए कांप रही थी.’

जैसे ही हम निकले, एक रॉकेट हमारे करीब आकर गिरा. मुझे याद है, मैं चिल्लाने लगी और रोने लगी, मेरे आसपास महिलाएं और बच्चे बदहवास भाग रहे थे. मुझे लगा कि हम सब एक नाव पर फंस गए हैं और तूफान के बीच फंस गए हैं. हम किसी तरह मेरे अंकल की कार के पास पहुंचे और उनके घर की ओर निकले जो शहर से आधे घंटे की दूरी पर है.

‘रास्ते में हमें एक तालिबानी चेकपॉइंट पर रोका गया. मेरी जिंदगी का यह सबसे डरावना पल था. मैं अपनी चादरी में थी और उन्होंने मुझे नजरअंदाज कर दिया. लेकिन मेरे अंकल से पूछताछ की. अंकल से पूछा कि हम कहां जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम हेल्थ सेंटर गए थे और अब घर लौट रहे हैं. वे हमसे सवाल कर रहे थे और पीछे चेकपॉइंट से रॉकेट फायर किए जा रहे थे. किसी तरह हम वहां से निकले.’

उन्होंने आगे बताया, ‘अंकल के गांव पहुंचने के बाद भी हम सुरक्षित नहीं थे. उनका गांव भी तालिबान के कब्जे में है और कई परिवार तालिबान के साथ मिल गए हैं. हमारे पहुंचने के कुछ ही देर बाद पड़ोसियों को पता चल गया कि मैं वहां छिपी थी. उन्होंने कहा कि तालिबान को पता चल गया है कि मैं शहर के बाहर हूं और अगर उन्हें गांव के बारे में पता चला तो वे सबको मार देंगे.’

नूरी ने बताया, ‘मैं एक दूर के रिश्तेदार के घर के लिए निकली. हम चल रहे थे और मैं अपनी चादरी में थी, मेन रोड से दूर जहां तालिबान हो सकता था. अब मैं यहीं हूं. यह एक गांव है और यहां कुछ नहीं है. न पानी, न बिजली. फोन सिग्नल नहीं है और मैं दुनिया से कट गई हूं. जिन महिलाओं और बच्चियों को मैं जानती हू, वे भी सुरक्षित जगहों पर भाग गई हैं.’

हिकमत नूरी आगे कहती हैं, ‘मीडिया में मेरी सभी महिला साथी डरी हुई हैं. ज्यादातर शहर से भाग गई हैं और प्रांत से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हैं. हम पूरी तरह घिरे हुए हैं. हम सबने तालिबान के खिलाफ मुंह खोला था और अपने जर्नलिज्म से उन्हें गुस्सा कर दिया है. फिलहाल सब कुछ तनाव से भरा है. मैं सिर्फ भाग सकती हूं और उम्मीद कर सकती हूं कि प्रांत से बाहर निकलने का रास्ता जल्द ही खुल सके. प्लीज, मेरे लिए दुआ करें.’

Source : News18

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