चुनाव सुधारों के लिए लंबे समय से उठ रही मांगों को देखते हुए सरकार एक बार फिर से सक्रिय हुई है। समझा जा रहा है कि चुनाव सुधारों से जुड़े विधेयक को सरकार ने हरी झंडी दे दी है। चुनाव सुधार के जिन अहम बिंदुओं पर तेजी से काम चल रहा है, उनमें फर्जी मतदान और वोटर लिस्ट में दोहराव रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने, देश में एक ही मतदाता सूची तैयार करने, जिसका इस्तेमाल लोकसभा और विधानसभा चुनावों से लेकर पंचायत चुनावों तक होगा और चुनाव आयोग को और शक्तियां देने जैसे कदम शामिल हैं।

मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए नए युवा मतदाताओं को साल में चार बार मौका देने और महिला प्रतिरक्षा कार्मिकों को बराबरी का अधिकार देने की भी तैयारी है। यह भी संभव है कि सरकार बहुत जल्द इस संबंध में कोई घोषणा कर दे। चुनाव सुधारों को लेकर हाल ही में कानून मंत्रलय से जुड़ी संसदीय समिति ने कई अहम बैठकें कई सुझाव दिए हैं। जिसमें चुनाव आयोग की उन सिफारिशों को प्रमुखता दी गई है, जिसमें चुनाव सुधार की दिशा में मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने, कामन वोटर लिस्ट तैयार करने, रिमोट वोटिंग आदि विषय मुख्य रूप से शामिल हैं। विधेयक में प्रतिरक्षा कार्मिकों के लिए निर्वाचन नियमों में लैंगिक असमानता दूर करने का प्रयास किया गया है। अभी सेना के अधिकारी या जवान की पत्नी को मतदाता के रूप में नामांकित होने की हकदार है, लेकिन एक महिला सैन्य अधिकारी या जवान के पति को यह अधिकार प्राप्त नहीं है। इसमें बदलाव हो सकता है। इसके साथ ही चुनाव के दौरान झूठे हलफनामे दाखिल करने वालों के खिलाफ और सख्त कार्रवाई करने, चुनाव में तय सीमा से ज्यादा पैसा खर्च करने आदि के मामलों के लिए कड़े नियम बनाने की सिफारिश की गई है।

  • सभी तरह के चुनाव के लिए एक मतदाता सूची बनाने की भी तैयारी
  • साल में चार बार मिल सकता है सूची में नाम दर्ज कराने का मौका

वर्ष 2015 में शुरू हुई थी आधार जोड़ने की कवायद

उल्लेखनीय है आधार को वोटर कार्ड से जोड़ने की कवायद फरवरी 2015 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा के कार्यकाल के दौरान आयोग द्वारा शुरू की गई थी। हालांकि, आधार-वोटर आइडी लिंकिंग प्रक्रिया को अगस्त 2015 में निलंबित कर दिया गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड के उपयोग को एलपीजी और केरोसिन वितरण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) तक सीमित कर दिया था। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, लेकिन इसमें कटौती की जा सकती है, बशर्ते आधार विवरण एकत्र करने या राज्य के हित को अधिकृत करने वाला एक विशिष्ट कानून मौजूद हो।

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