कोरोना का असर सबसे ज्यादा असर मजदूरों पर पड़ा है. ऐसे में गया और नवादा के सैकड़ों परिवार नौकरी के लिए 500 किलोमीटर का सफर करने के लिए तैयार है. वो यहां से अयोध्या जाते हैं, जहां पर वो ईट के भट्टे पर काम करते हैं. जिससे उन्हें साल के 7 से 8 महीने तक रोजगार मिल जाता है. बारिश के मौसम में भट्टा बंद हो जाता है. जिस वजह से उन्हें अपने घर वापस लौटने लगते हैं.

रोटी की चिंता

बारिश की वजह से इस समय भट्टे का काम बंद हैं. ऐसे में 3 ट्रक में सवार होकर करीब 300 बच्चे, बूढ़े और महिलाओं अपने घर वापस आ गए हैं. ऐसे में उनके सामने एक बार फिर से रोजगार की चिंता है. गांव में उन्हें मज़बूरी में कर्ज लेना पड़ता है. जिसके बाद उन्हें ठेकेदारों द्वारा तय किये गए ईट के भट्टे पर काम करने के जाना पड़ता है.

बिहार में नहीं मिलता रोजगार

नवादा जिले के हरला गांव के रहने वाले रामविलास मांझी ने बताया कि गांव से 500 किलोमीटर दूर रोजगार के लिए अयोध्या जाते हैं. सभी मजदूर वहां ईंट के भट्ठा पर काम करते हैं. गया के अतरी की रहने वाली देवरानी देवी ने भी पलायन का दर्द बयां करते हुए बस किसी तरह कर्ज के सहारे जिंदगी ढोने को मजबूर हैं. स्थिति ऐसी है कि काम की तलाश में छोटे- छोटे बच्चों के साथ बाहर जाना पड़ता है और काम खत्म होते ही भूखे- प्यासे वापस अपने घर लौटना पड़ता है.

खिजरसराय गांव की रहने वाली रीना देवी का हाल भी कुछ ऐसा ही है. उन्होंने कहा कि आज तक फूस का मकान है उसी फूस के मकान में 15 सदस्य रहते हैं. ये लोग अभी तक इंद्रा आवास योजना से भी दूर हैं. उनका कहना है कि अगर बिहार में रोजगार मिल जाये तो उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ेगा.

Input: zee media

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