सरकारी-निजी अस्पतालों में कोरोना से हुई मौत के आंकड़े छिपाने का स्वास्थ्य विभाग ने नया तरीका ढूंढ़ा है। विभाग उन्हीं लोगों की माैत कोरोना से मानेगा जिनकी अस्पताल में भर्ती होने से पहले की जांच रिपाेर्ट काेराेना पॉजिटिव और मरने के बाद डेथ सर्टिफिकेट पर कोरोना से मौत लिखा हाे। लेकिन, अब तक मृत 664 लोगों में मुश्किल से 10 फीसदी के परिजन के पास ही मृतक के भर्ती होने के पहले की काेराेना जांच रिपाेर्ट है।

नए नियम के बाद अस्पताल प्रबंधन के भी पसीने छूटने लगे हैं। दरअसल अप्रैल से मई के दूसरे सप्ताह तक बड़ी संख्या में कोरोना पीड़ित लोगाें काे लक्षण के आधार पर अस्पतालाें में भर्ती कर आनन-फानन में इलाज शुरू कर दिया गया। कई की तो कुछ ही देर में मौत हो गई, तो कुछ ने एक-दाे दिन बाद दम ताेड़ा। अस्पतालाें के प्रबंधन का कहना है कि पहले ताे जान बचाना जरूरी था, इसलिए टेस्ट कराए बगैर काेराेना वार्ड में भर्ती कर इलाज शुरू कर दिया। जाे स्वस्थ हुए उन्हाेंने निगेटिव हाेने के कारण जांच नहीं कराई और जो नहीं बच सके उनका शव परिजन को सौंप दिया गया।

आकलन करने काे बनी टीम भी नहीं सुलझा सकी गुत्थी

जिले के निजी अस्पतालों में कोरोना से 307 की माैत हाे चुकी है। जबकि, एसकेएमसीएच में 341 की, सदर अस्पताल में 9 और ग्लोकल में 7 की जान गई। जिले में इतनी मौतें होने की बात सामने आने पर सीएस ने 9 ऑडिट टीमें गठित कीं। एक टीम को 2 अस्पतालाें की जांच करनी थी। लेकिन, टीम को 17 निजी अस्पतालों में काेई भी उक्त मरीजाें का अब तक न काेराेना पॉजिटिव रिपाेर्ट, न ही डेथ सर्टिफिकेट उपलब्ध करा सका है। अब सीएस ने उन अस्पतालों को नाेटिस भेज 2 दिनों में सर्टिफिकेट मांगा है।

एसकेएमसीएच अधीक्षक की मृतकों के परिजन से अपील- जिनके पास रिपाेर्ट हाे वे उपलब्ध कराएं

एसकेएमसीएच का हाल भी वही है। 341 में मात्र 35-40 की ही काेराेना जांच रिपाेर्ट उपलब्ध है। अस्पताल ने भी जाे डेथ सर्टिफिकेट जारी किया, उस पर कोरोना से मौत होने की बात नहीं लिखी गई। अस्पताल अधीक्षक डॉ. बीएस झा ने कहा कि जब बड़ी संख्या में लोग बीमार होकर अस्पताल पहुंच रहे थे, ताे सबसे पहला धर्म उनकी जान बचाना था। जांच कराए बगैर लक्षण के आधार पर इलाज शुरू कर दिया गया।

कई लोग भर्ती होने के कुछ घंटे में ही दम ताेड़ दिए। माैत के बाद परिजन शव लेकर चले गए। जो शव नहीं ले गए उनका प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार करा दिया गया। अब प्रशासन काे उनके पॉजिटिव हाेने की रिपाेर्ट देनी मुश्किल है। उन्होंने मृतकाें के परिजन से अपील की है कि यदि उनके पास पॉजिटिव हाेने की रिपाेर्ट हो तो वे अस्पताल प्रबंधन को उपलब्ध कराएं।

बड़ा सवाल

बड़ा सवाल यह है कि जब मृत लोगों के डेथ सर्टिफिकेट पर कोरोना से मौत नहीं लिखा है या उनके परिजन के पास उनके पॉजिटिव हाेने की रिपाेर्ट नहीं है ताे उन्हें मुआवजा अथवा बीमा राशि कैसे मिलेगी? स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी पहली लहर में 103 व दूसरी लहर में 29 मई तक 210 की काेराेना से मौत का डाटा जारी किया जा चुका है।

ऐसे में जाे कागजात विभाग के पास हैं, उन्हें सार्वजनिक करना चाहिए और यदि नहीं हैं तो आखिर विभाग ने इन 313 लाेगाें की मौत का डाटा किस आधार पर जारी किया। अब रिपाेर्ट व डेथ सर्टिफिकेट का सवाल उठाना कहीं माैत के अांकड़े छिपाने का खेल ताे नहीं? देखना है कि निर्दाेष परिजन बीमा या मुआवजा राशि से वंचित न रहें, इसलिए स्वास्थ्य विभाग व प्रशासन क्या निदान निकालता है?

सीएस ने कहा सभी अस्पतालों को नाेटिस भेज दो दिनों में मांगी गई है रिपोर्ट

सिविल सर्जन डॉ. एसके चौधरी का कहना है कि सरकार के निर्देश पर सरकारी-निजी अस्पतालों में मृत लोगों का वास्तविक कारण जानने के लिए टीम गठित हुई थी। टीम ने 17 निजी अस्पतालों का जायजा लिया, लेकिन मृत लोगों की न ताे काेराेना पॉजिटिव हाेने की रिपाेर्ट है और न ही डेथ सर्टिफिकेट पर काेराेना लिखा है। एसकेएमसीएच में भी यही स्थिति है।

अस्पतालाें काे नाेटिस भेजकर 2 दिनों में कागजात उपलब्ध कराने के लिए कहा गया है। जब तक ये कागजात नहीं मिल जाते, तब तक जिले में कोरोना से कितनी मौत हुई यह कहना मुश्किल है। स्वास्थ्य विभाग उन्हीं लोगों की माैत कोविड-19 से मानेगा, जिनके परिजन या अस्पताल के पास उक्त दाेनाें पेपर हाें।

Input: dainik bhaskar

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