– गौरवशाली इतिहास को ख़ुद में समायी वैशाली और मिथिला की साझी धरती मुजफ्फरपुर की कहानी का चौथा भाग, आपके सामने आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पुण्यतिथि के अवसर पर ला रहा हूं, आज फिर विषय छाती ठोक कर कहने का है की , जी हाँ मेरे मुजफ्फरपुर के कॉलेज में कभी देश के प्रथम राष्ट्रपति प्राध्यापक और प्राचार्य थे.

Rajendra Prasad Jayanti Know 10 Facts About First President Of India - Rajendra Prasad Jayanti: डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस तरह बने थे देश के पहले राष्ट्रपति, जानिए 7 बातें | Education News In Hindi

मुजफ्फरपुर का लाल किला नाम से मशहूर आजादी के समय का विश्वस्तरीय लंगट सिंह महाविद्यालय की काया जितनी विशाल है. उससे भी विशाल है इस महाविद्यालय का इतिहास, इस कॉलेज की नींव रखने वाले थे – बाबू लंगट सिंह, देशरत्न राजेन्द्र बाबू और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, जेबी कृपलानी जैसे महाज्ञानी थे, और ये सब लंगट सिंह कॉलेज में शुरुआती दिनों में पढ़ाते थे और आजादी के मतवालों को सींचते थे.

12 साल राष्ट्रपति रहने के बाद बोले थे राजेंद्र प्रसाद-लौटकर वहीं जाऊंगा जहां से चलकर आया हूं_dr rajendra prasad birth anniversary after he said i will return to that place where i

आज जब हमारे देश के जे.एन. यू और जामिया जैसे विश्वविद्यालयो में देश विरोधी नारे सुनाई देते है, तब याद आती है बाबू राजेन्द्र प्रसाद की जब हमारा देश अंग्रेजो के अधीन था तब राजेन्द्र बाबू कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे और वहां उनकी मुलाकात हुई लंगट सिंह से, लंगट बाबू मुजफ्फरपुर में कॉलेज खोलना चाहतें थे और उन्हें शिक्षक की तलाश थी, उन्होंने राजेन्द्र बाबू की ख्याति बहुत सुनी थीं, ये प्रस्ताव लेकर वो राजेन्द्र बाबू के पास गए कि क्या आप हमारे कॉलेज में पढ़ायेंगे ? और राजेंद्र बाबू ने हाँ कर दिया क्योंकि वो पढ़ाने के साथ साथ मुजफ्फरपुर के युवाओं को आज़ादी का दीवाना बनाना चाहते थे , नई पीढ़ी को आजादी के मायने और आजादी के जुनून को उनमें भरना चाहते थे, और ये करवा शुरू हुआ और राजेंद्र बाबू मुजफ्फरपुर आ गये और भारत के महानतम लोगो ने लंगट सिंह महाविद्यालय में पढ़ाया, जिस राष्ट्रकवि दिनकर की रचनाये लोग पढ़ते है वो दिनकर भी राजेन्द्र बाबू के साथ लंगट सिंह महाविद्यालय में पढ़ाते थे, आप सोच सकते है जिस कॉलेज में राजेंद्र बाबू और राष्ट्रकवि दिनकर जैसे प्रोफेसर हो उसका इतिहास कितना गौरवशाली रहा होगा.

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आज भी लंगट सिंह महाविद्यालय युवाओ को सींच रहा है, ये कॉलेज हमारे शहर में है हमारे लिये तो यहीं गर्व की बात है, आज भले हमारे शहर के लड़कों को पढ़ने दिल्ली – मुम्बई, बंगलोर जाना पड़ता है. लेकिन एक वक्त था जब समूचा भारत लंगट सिंह महाविद्यालय से पढ़ना चाहता था. वैसे इस विश्वविद्यालय की शान आज भी बरक़रार है, और बिहार में अब भी इसका नाम है , आधुनिक भारत की नींव की बात करे तो अँग्रेजी हुकूमत के वक्त खड़ा हुआ कॉलेज ने मुजफ्फरपुर को कई ज्ञानी दिए है, कई साहित्यकार इस कॉलेज में पढ़कर कर जन्में है.

राजेन्द्र बाबू के साधारण जीवनशैली से पूरा देश परिचित है, चम्पारण आंदोलन की रूपरेखा भी मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह महाविद्यालय में तैयार की गई थी, जिस चंपारण आंदोलन ने भारतवासी को आज़ादी का मकशद दिया था. उस चम्पारण आंदोलन की रूपरेखा मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह महाविद्यालय में तैयार हुई.

भूगौलिक दृष्टि से भी मुजफ्फरपुर बहुत समृद्ध है ये वैशाली, मिथिला और चंपारण तीनो से घिरा हुआ है और तीनों की ही सभ्यता संस्कृति और इतिहास विश्वप्रसिद्ध है..

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छाती ठोक कर कहिए, हम मुजफ्फरपुर से है, सीरीज़ में आज फिर हमने आपको शहर की एक और खास बात बताई, यक़ीन मानिये मुजफ्फरपुर की मिट्टी बहुत गरिमामयी है, इस मिट्टी को प्रणाम कीजिये कि आपको इस धरती ने आत्मसार किया, जल्द ही एक औऱ शानदार कहानी लेकर आयंगे हम, तबतक इसे शेयर करें और पढ़ते रहे मुजफ्फरपुर नाउ….और जिन्होंने पहले की तीन कहानी नहीं पढ़ी है वो भी जरूर पढ़ें.

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अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...

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