आजम खान के जया प्रदा को लेकर किए गए अमर्यादित टिप्पणी को लेकर मामला और बढ़ गया है. रामपुर में आजम खान बनाम जया प्रदा की लड़ाई में इतिहास एक बार से खुद को दोहरा रहा है.

उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट इन दिनों सुर्खियों में हैं. वजह हैं इनके प्रत्याशी. इस सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आजम खान और बीजेपी की प्रत्याशी जया प्रदा के बीच सियासी घमासान बढ़ता जा रहा है. आजम खान के जया प्रदा को लेकर किए गए अमर्यादित टिप्पणी को लेकर मामला और बढ़ गया है. रामपुर में आजम खान बनाम जया प्रदा की लड़ाई में इतिहास एक बार से खुद को दोहरा रहा है.

बॉलीवुड की ऑल टाइम हिट मूवी ‘शोले’ के स्पूफ का नाम ‘रामपुर के शोले’ क्यों होना चाहिए, इसके पीछे वजह है. अगर 2019 का रण जीतने के लिए उत्तर प्रदेश महान चुनावी रणक्षेत्र है, तो पश्चिमी यूपी का रामपुर वर्तमान लड़ाई का केवल एक बेतुका और अलग-थलग कार्टून है. इसका नमूना देखिये-

बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र के एक अंदरूनी गांव में भगवा कुर्ते में एक आदमी दर्शकों को संबोधित करने के लिए उठता है. उन्हें दक्षिण भारतीय फिल्मों के प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक और अभिनेता के रूप में पेश किया गया है और बताया गया है कि वे बीजेपी उम्मीदवार जया प्रदा के भाई राजा बाबू हैं. राजा बाबू अपने भाषण में कहते हैं, “बहनजी ने रामपुर को चमका दिया और वो राक्षस जया जी को भगा दिया.”

इसी बीच एक बीजेपी कार्यकर्ता नारे लगाना शुरू कर देता है, ‘जया जी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं.’

इसके बाद एक्ट्रेस से राजनेता बनी जया प्रदा की एंट्री होती है जो आजम खान के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं. अपने प्रतिद्वंदी पर सीधा हमला करते हुए वह कहती हैं, “कृप्या देश को मजबूत बनाइए और वोट दीजिए.”

विडम्बना देखिए 15 साल पहले आजम खान कांग्रेस से जुड़े नवाब परिवार के राजनीतिक आधिपत्य को चुनौती देने के लिए जयाप्रदा को रामपुर लेकर आए थे. जया प्रदा ने 2004 का चुनाव लड़ा और कांग्रेस की बेगम नूर को शिकस्त दी. अगले पांच सालों में आजम खान से उनके रिश्ते बिगड़ गए और वह अमर सिंह के कैंप में चली गईं. अमर सिंह उस समय मुलायम सिंह के करीबी सर्किट में उभरते सितारे थे.

अमर सिंह ने 2009 में समाजवादी पार्टी छोड़ दी थी. आम चुनावों में अमर सिंह ने रामपुर के लिए जयाप्रदा के चुनाव प्रबंधक बन गए. जया प्रदा और नूर बानो फिर आमने सामने थे.

सबसे कड़वे चुनावों में से एक इस चुनाव में आजम खान ने जया प्रदा को हरान के लिए काम किया. इस चुनाव के दौरान एक नेरेटिव ने आकार लिया कि नूर बानो आजम खान की उम्मीदवार हैं और जया प्रदा को आजम खान को चुनौती देने के लिए खड़ा किया है.

जया प्रदा फिर एक बार विजयी हुई. 2014 तक अमर सिंह और जया प्रदा दोनों ने सपा छोड़ दी थी. दोनों ने राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए. आजम खान 2012 के विधानसभा चुनावों से पहले अपनी मूल पार्टी में लौट आए थे.

इस आम चुनाव में आजम खान सपा के चिह्न पर चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि उन्हें देखकर लग रहा है कि वह अतीत से सबक सीखकर आए हैं. आजम खान अपने कड़वे और विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं, इन्हें लेकर उनके जनाधार के बीच एक क्रोध है.

2012 के विधानसभा चुनावों में रामपुर शहर में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने जिला पुलिस और उसके प्रमुख के खिलाफ बयान देते हुए कहा था, ‘बुढ़े चूहों की मूछ निकल जाए तो वो शहर का कप्तान नहीं हो गया.’

हालांकि इस चुनाव में आजम खान सावधानी के साथ चल रहे हैं. उन्होंने जिला प्रशासन और योगी आदित्यनाथ पर अपने खून का प्यासे होने का आरोप लगाया. वह हर भाषण में कह रहे है, ‘ये लोग मेरी जान के पीछ पड़े हैं. जाको राखे साइयां मार सके न कोय.’

लेकिन आजम ने अभी तक एक भी बार जया प्रदा पर निजी टिप्पणी नहीं की है. बीजेपी हर दिन आजम पर हमला बोल रही है और उन्हें उकसा रही है. आजम ने तब भी अपनी स्क्रिप्ट नहीं बदली जब राजा बाबू ने उन्हें राक्षस कहा.

बीएसपी के वोटों से उत्साहित आजम खान जानेत हैं कि उन्हें यह सुनिश्चित करना है कि सांप्रदायिक आधार पर कोई ध्रुवीकरण न हो.

जया प्रदा और आजम खान दोनों विटेंज भारतीय नेताओं की तरह नजर आते हैं. मुलायम, लचीले, अनुकूलन और अपनाने के लिए तैयार.

इस नाटक में केवल चेहरे बदलते हैं. वर्ना अपने वक्त में हर पुरुष और महिला को अनेक रोल निभाने पड़ते हैं.

Input : News 18

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