आगरा, विनीत मिश्र। ये बेबसी है, उस खिलाड़ी की, जिसने विदेशी धरती पर भी देश का नाम रोशन किया। मार्शल आर्ट कराटे में अपनी धमक दिखाने वाला अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मुफलिसी की जिंदगी गुजार रहा है। अपने ही देश में बेबस ये खिलाड़ी चाय की दुकान चला रहा है। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि विदेश में फिर अपने हुनर का दम भर सकें।

शहर के लक्ष्मी नगर मुहल्ले में रहने वाले हरिओम शुक्ला अंतरराष्ट्रीय स्तर के कराटे खिलाड़ी हैं। 28 वर्षीय हरिओम शुक्ला ने वर्ष 2006 में कराटे शुरू किया। अपनी प्रतिभा के दम पर खेल में हुनर दिखाया। देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित प्रतियोगिताओं में शिरकत की। कहीं सोना झटका, तो कहीं चांदी से झोली भरी। इंटरनेशनल ब्लैक बेल्ट यूएसए से प्रशिक्षित हरिओम के खेल का सफर यहीं नहीं रुका। श्रीलंका, काठमांडू, बांग्लादेश, थाईलैंड में आयोजित प्रतियोगिताओं में पदक हासिल करने वाले हरिओम मुफलिसी की जिंदगी काट रहे हैं। कमाई का कोई जरिया नहीं बचा तो हरिओम ने घर की पुस्तैनी चाय की दुकान संभाल ली। पिता दीनदयाल शुक्ला चौकी बाग बहादुर के पास वर्षों से चाय की दुकान चलाते हैं। तीन भाइयों का परिवार इसी चाय की दुकान से चलता है। ऐसे में जब कोई रोजगार नहीं मिला तो अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हरिओम ने भी चाय की दुकान संभाल ली।

चाय की दुकान से ही 11 लोगों का परिवार पलता है। इतनी आय नहीं होती कि बेहतर तरीके से जिंदगी कट जाए। ये बेबसी ही है कि विदेशों में देश का प्रतिनिधित्व करने का सपना देखने वाले हरिओम आर्थिक तंगी के चलते 2015 के बाद कहीं बाहर खेलने नहीं जा सके। कहते हैं कि इतना पैसा नहीं है कि आने-जाने के किराए की व्यवस्था हो सके। ऐसे में प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना ही छोड़ दिया।

जागा प्रशासन, मिली नौकरी

हरिओम शुक्ला की मुफलिसी की जानकारी डीएम नवनीत सिंह चहल को हुई तो उन्होंने हरिओम को नौकरी दिलाने की सोची। एमवीडए के विशेष कार्याधिकारी क्रांतिशेखर सिंह के जरिए जीएलए विवि के कुलाधिपति नारायण दास अग्रवाल से बात हुई। प्रशासन की पहल पर नारायण दास अग्रवाल ने हरिओम को अपने विवि में छात्र-छात्राओं को कराटे सिखाने के लिए 20 हजार रुपये मासिक पर प्रशिक्षक के रूप में रख लिया। हरिओम कहते हैं कि प्रशासन की अच्छी पहल है। लेकिन परिवार बड़ा है, ऐसे में नौकरी के बाद भी जीविको पार्जन के लिए चाय की दुकान पर काम करना पड़ेगा। वह कहते हैं कि उनकी तमन्ना सरकारी नौकरी की है।

Source : Dainik Jagran

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