कारगिल की जंग को 22 साल पूरे होने वाले हैं. मई 1999 की गर्मियों में कारगिल सेक्‍टर जो अब लद्दाख में है, उस समय जम्‍मू कश्‍मीर में आता था, वहां पर 60 दिनों तक भारत और पाकिस्‍तान की सेनाएं आमने-सामने थीं. इस जंग में भारत को कई सफलताएं हासिल हुईं. इन्‍हीं कई सफलताओं में से एक था तोलोलिंग पर फिर से कब्‍जा करना. तोलोलिंग, भारत और भारत की सेनाओं के लिए बहुत जरूरी है. इस पर कब्‍जा भारत के लिए एक अहम रणनीतिक विजय साबित हुआ था.

क्‍यों जरूरी था तोलोलिंग पर कब्‍जा

13 जून 1999 को इंडियन आर्मी ने पाकिस्‍तान की लाइट इनफेंट्री के सैनिकों को तोलोलिंग से खदेड़ा था. इस रेजीमेंट में सैनिकों के साथ ही पाकिस्‍तानी घुसपैठिये भी शामिल थे. तोलोलिंग, लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) के एकदम करीब है. इसकी पोजिशन ऐसी है कि यहां से श्रीनगर-लेह हाइवे जिसे नेशनल हाइवे 1 के तौर पर जानते हैं, उसे साफ देखा जा सकता है. यह हाइवे लद्दाख को जम्‍मू कश्‍मीर और देश के दूसरे हिस्‍सों से जोड़ने वाला अहम रास्‍ता है. पाकिस्‍तान सेना, तोलोलिंग से इस हाइवे को लगातार निशाना बना रही थी. इस हाइवे पर हमला यानी युद्ध में जीत का तय होना.

पाकिस्‍तान रख रहा था नजर

तोलोलिंग पर कब्‍जा आसान नहीं था और कई दिनों तक इस पर कब्‍जे के लिए युद्ध चला. करगिल के द्रास सेक्टर में तैनात 18 ग्रेनिडयर्स को तोलोलिंग की चोटी पर भारतीय तिरंगे फहराने का आदेश मिला था. तोलोलिंग पर कब्जा किए बिना दुश्मन को पीछे धकेलना आसान नहीं था. हजारों फीट की ऊंचाई पर बैठे घुसपैठियों को भगाने के लिए मेजर राजेश अधिकारी अपने जवानों को लेकर आगे बढ़े. पहले बताया गया कि घुसपैठियों की संख्या 4 से 5 के बीच है लेकिन जब सेना वहां पर पहुंची तो पूरी एक कंपनी मौजूद थी. तोलोलिंग टॉप पर होने की वजह से वो एक मजबूत स्थिति में पहुंच गए थे. टॉप पर होने की वजह से पाकिस्‍तानी घुसपैठिये लगातार इंडियन आर्मी पर नजर रखे हुए थे.

25 जवान हो गए थे शहीद

भारतीय सेना के ऑफिसर्स और जवानों के जज्‍बे का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सबने खाने के पैकेट की जगह गोला-बारूद साथ ले जाना बेहतर समझा था. पाकिस्‍तानी सेना को जैसे ही आहट मिली उन्‍होंन अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी. इस गोलीबारी में 18 ग्रेनेडियर्स के 25 जवान शहीद हो गए जिसमें मेजर राजेश अधिकारी भी शामिल थे. इसी समय कर्नल कुशल ठाकुर ने मोर्चा संभाला और लेफ्टिनेंट कर्नल विश्‍वनाथन भी उनके साथ आ गए. 2 और 3 जून को पूरी यो‍जना बनाकर फिर से हमला किया गया लेकिन इस बार भी असफलता मिली.

दुश्‍मन पर टूट पड़े यशवीर सिंह

2 राजपूताना राइफल्‍स के मेजर विवेक गुप्‍ता 90 जवानों के साथ हमले के लिए आगे बढ़े. मेजर गुप्‍ता प्‍वाइंट 4950 पर कब्‍जा करने वाली थी कि अचानक 12 जून को दुश्‍मन ने फिर से फायरिंग तेज कर दी. 13 जून को हवलदार यशवीर सिंह पाकिस्‍तानी सेना के बंकरों पर टूट पड़े. उनका यह शौर्य भारतीय सेना के लिए विजय में तब्‍दील हो गया. भारत ने तोलोलिंग से दुश्‍मन को खदेड़ा और इस चोटी पर भारतीय तिरंगा फहराया. युद्ध के बाद मेजर राजेश अधिकारी, मेजर विवेक गुप्‍ता और दीगेंद्र कुमार को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्‍मानित किया गया. साथ ही कर्नल विश्‍वनाथन और हवलदार यशवीर सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्‍मानित किया गया थ

Input: tv9

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