थाने की स्थिति सुधरने वाली नहीं। राजधानी से लेकर जिला स्तर पर हाकिमों का आदेश जारी होता, लेकिन थाने में आते सब कागज में ही सिमट जाता। हाल ही में साहब ने काफी दिनों से जमे थाने के कई मुंशियों का तबादला किया, लेकिन अभी भी कई उसी थाने में जमे हैं। कई तो आदेश के बाद दूसरी जगह चले गए, लेकिन आदर्श कहे जाने वाले शहर के एक थाने के मुंशी जमे हैं। उनके द्वारा कई तरह के खेल से हर दिन कागज के मोटे बंडल उन्हें प्राप्त होते। इससे वे यहां जमे रहना चाहते हैैं। इसी में एक मुंशी तो ऐसे हैं जो हर सप्ताह कागज का मोटा बंडल राजधानी स्थित अपने ठिकाने पर पहुंचा देते, मगर कोई देखने वाला नहीं। साहब के नीचे वाले हाकिम थाने के बगल में बैठते हैैं, फिर भी ये स्थिति है।

चौराहे वाले थाने में हर दिन होता खेल

चौराहे वाले थाने बाहर से कबाड़ बन गए हैैं। इसकी आड़ में तरह-तरह के खेल हो रहे हैैं। इन्हें देखने के लिए न तो हाकिम के पास फुर्सत और न ही बड़े साहब के पास ही समय। किसी भी काम के लिए बिना जेब गर्म किए यहां कुछ नहीं होता। कोतवाल से ज्यादा वहां के मुंशी व अन्य स्टार वाले हाकिम इलाके में पावर रखते हंै। उनका पूरे इलाके में रौब है। प्राथमिकी दर्ज होते ही मुंशी द्वारा आरोपित के पास काल कर दी जाती है। कापी प्राप्त करने के बदले आवेदक व आरोपित को जेब गर्म करनी पड़ती। इसके अलावा कई तरह के गैरकानूनी काम करने वालों से इन सभी के मधुर रिश्ते हैैं। शाम ढलने के बाद थाने पर इनका जमघट लगता है। कहा जा रहा कि कोतवाल के सीधेपन का नाजायज फायदा वहां के अन्य कर्मी उठा रहे हैैं, लेकिन सबकुछ जानते हुए साहब की इसपर नजर नहीं है।

काल रिसीव करने से कतराते कोतवाल

कोतवाल की कुर्सी चाहिए, मगर जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे। सिर्फ जेब गर्म करने के खेल में सक्रियता दिखाएंगे। कई कोतवालों की यही स्थिति है। रात में अगर किसी तरह की अप्रिय वारदात पर थानेदार के सरकारी मोबाइल पर काल कर दी तो कई उसे अनसुना कर देंगे। एक बार में वे काल रिसीव नहीं करेंगे। अगर दो-तीन घंटी बजी और आपकी किस्मत अच्छी रही तो शायद काल रिसीव कर लें। इसमें कई तो ऐसे हैं जिन्हें रात में फोन उठाने में भी परेशानी होती है। शहर में भी एक-दो कोतवाल की यही स्थिति है। ग्रामीण इलाके के अधिकतर थानेदारों का हाल बदतर है। कई थानेदार मोबाइल को दूसरे मोड में डाल चैन की नींद सोते। इस तरह की शिकायत पर साहब ने संज्ञान नहीं लिया तभी तो कोतवाल इलाके में अपने को साहब से कम नहीं समझते और खेल कर जेब गर्म करते रहते।

करोड़ों लूटकर यहां छिपे थे लुटेरे

स्थानीय लुटेरे पड़ोसी जिले व देश की राजधानी में वारदात को अंजाम दे रहे हंै। बगल के जिले में करोड़ों की लूट के बाद लुटेरों ने यहां शरण ले रखी थी। कोतवाल से लेकर हाकिम व साहब को भनक तक नहीं। इससे प्रतीत हो रहा कि जिले की पुलिस का खुफिया इनपुट कितना कारगर है। पड़ोसी जिले की टीम यहां छापेमारी कर लूट की मोटी रकम के साथ लुटेरे को उठाकर ले गई और यहां की पुलिस देखती रह गई। गत दिनों राजधानी की टीम भी यहां पहुंची, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। दो लुटेरों को राजधानी की टीम वहां पर दबोच चुकी है। यहां कार्रवाई किस तरीके से हो रही। इसका उदाहरण है कि गत दिनों टोल प्लाजा वाले थाना क्षेत्र में बैंक से लूट का प्रयास हुआ। आदर्श कहे जाने वाले थाना क्षेत्र में कैश वैन से लूट की कोशिश हुई, लेकिन लुटेरे पकड़े नहीं जा सके।

Source : Dainik Jagran

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