अगर आप अनाथ बच्चे को गोद लेना चाहते हैं तो यह खबर आपके मतलब की है. बच्चों के एडॉप्शन को लेकर पहले समाज में कई तरह की रूढ़िवादी भ्रांतियां रहती थीं. इसको लेकर कई तरह की सोच लोगों में थी. शायद ऐसी ही सोच के कारण बच्चों के एडॉप्शन में लोग ज्यादा तत्पर नहीं होते थे. लेकिन, अब इसमें बदलाव हो रहा है और बच्चा गोद लेना आसान हो गया है. बता दें कि पहले अगर किसी को बच्चा अडॉप्ट करना होता था तो उसे 2 से ढाई साल तक का इंतजार करना पड़ता था. लेकिन अब बच्चों के एडॉप्ट करना बेहद आसान है. दरअसल, इसको लेकर लोगों में जागरूकता आ रही है और अब वे खुले दिल से बच्चों का अपने जीवन में स्वागत कर रहे हैं.

पटना में राज्य सरकार द्वारा संचालित विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान अरुणोदय और सृजनी में बच्चों को गोद लेने को लेकर लोगों में रुचि बढ़ी है. तीन-चार साल पहले तक बच्चों को गोद लेने को लेकर इतनी रुचि नहीं देखी जाती थी, लेकिन अब यह संख्या काफी हद तक बढ़ गई है. जिला बाल संरक्षण इकाई की मानें तो केवल पटना में ही 2019 से लेकर अब तक 80 बच्चों को वैधानिक तौर पर एडॉप्शन में दिया जा चुका है. इनमें लड़के और लड़कियां दोनों है. खास बात यह है कि इन 80 बच्चों में 13 बच्चों का एडॉप्शन विदेश के लोगों ने किया है.

जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारियों की मानें तो लोगों में जागरूकता का एक सबसे बड़ा कारण सब कुछ ऑनलाइन और पारदर्शी की वजह से है. बाल संरक्षण इकाई के द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, अगर किसी को दत्तक ग्रहण करना होता है तो उसे carings.nic.in पर जाकर पूरे डाक्यूमेंट्स के साथ रजिस्ट्रेशन करना होता है. इसमें बच्चों को ग्रहण करने वालों को अपने बारे में पूरी जानकारी देनी होती है. अप्लाई करनेवाली दंपत्ति को एक यूनिक आईडी और पासवर्ड दे दिया जाता है. इसके बाद दंपति के द्वारा दिए गए 3 राज्यों के ऑप्शन में इंक्वायरी शुरू हो जाती है.

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जब वेटिंग लिस्ट में आवेदन करने वाले दंपति का सीरियल नंबर टॉप फाइव में आ जाता है तो उस दंपति के मोबाइल नंबर पर एक मैसेज आता है, जिसमें यह बताया जाता है कि एक तय समय सीमा के अंदर बच्चे को दिखाया जाएगा. जिसमें बच्चे की तस्वीर के साथ ही एमईआर यानी मेडिकल स्टडी रिपोर्ट और सीएसआर यानी चाइल्ड स्टडी रिपोर्ट दोनों शामिल होती है. अगर वह बच्चा दंपति को पसंद आ गया तो वह एक्सेप्ट कर लेता है फिर आगे की कार्रवाई की जाती है.

जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक उदय कुमार झा के अनुसार, पहले जागरूकता की कमी और कई जटिलताओं के कारण बच्चों के अडॉप्शन की इंक्वायरी कम आती थी, लेकिन अब यह पूरा तरीका पारदर्शी हो गया है तो बड़ी संख्या में लोगों की इंक्वायरी आ रही है. कई मामलों में तो लोगों को दो-दो साल तक इंतजार करना पड़ रहा है. अभी हाल ही में जिस बच्ची को एक कपल ने गोद लिया है. उनको गोद लेने के लिए 3 साल तक का इंतजार करना पड़ा था. लेकिन अब प्रक्रिया सरल होने से अडॉप्शन के प्रति लोगो मे उत्साह है.

Source : News18

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