सहरसा. पूर्व सांसद आनंद मोहन को लोकसभा उप चुनाव के 31 साल पुराने अपहरण के मामले में एमपी एमएलए कोर्ट ने बरी कर दिया है. कोर्ट के इस फैसले से आनंद मोहन के समर्थकों में खुशी देखने को मिल रही है. दरअसल 1991 में लोकसभा उपचुनाव के दौरान पीठासीन पदाधिकारी गोपाल यादव के अपहरण मामले की सुनवाई करते हुए एमपी- एमएलए विशेष कोर्ट के न्यायाधीश एडीजे तीन विकास कुमार सिंह ने साक्ष्य के अभाव में पूर्व सांसद को बरी किया है. हालांकि आनंद मोहन फिलहाल जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे. पूर्व सांसद की ओर से वरीय अधिवक्ता शंभू गुप्ता,अरूण कुमार सिंह व संगीता सिंह ने अपनी दलीलें दीं.

इस दौरान पूर्व सांसद आनंद मोहन ने अपने ऊपर लगे आरोप को गलत करार दिया और कोर्ट के फैसले को सच्चाई की जीत बताया. इसे लेकर उन्होंने न्यायालय का प्रति आभार जताया. इस दौरान बड़ी संख्या में कोर्ट परिसर में उपस्थित समर्थकों ने मिठाईयां बांटकर अपनी खुशी का इज़हार किया. आनंद मोहन ने कहा कि जल्द सभी आरोपों से मुक्त होकर जेल से बाहर आएंगे और मुख्य धारा की राजनीति से जुड़कर बिहार में परिवर्तन करेंगे.

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आनंद मोहन ने रिहाई पर कही यह बात

इस दौरान उन्होंने अपनी रिहाई को लेकर सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि बिहार का बच्चा-बच्चा जानता है जिलाधिकारी जी कृष्णइया हत्याकांड में आनन्द मोहन सिंह पूरी तरह से निर्दोष है. बावजूद सजा पूरी होने के बाद भी 14 वर्षों से अधिक समय से मैं जेल में बंद हूं. यहां तक की एनडीए की सरकार है. इसके हर छोटे बड़े नेताओं ने और बिहार में कोई पार्टी नहीं बची है, जिसके शीर्ष नेताओं ने भी कई मौके पर कहा आनंद मोहन निर्दोष है. बावजूद इसके सजा पूरी होने के बाद हम अपने मित्रों की सरकार में जेल में बंद हैं. लेकिन निराश नहीं है.

‘बिहार में परिवर्तन की राजनीति करेंगे’

आनंद मोहन ने कहा कि क्योंकि हम जानते हैं अंधेरा चाहे कितना भी घना क्यों नहीं हो सूरज को उगने से नहीं रोक सकता है. इस लिए हम इन बातों से घबराते नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हो सकता है नियति ने हमारे लिए बड़ी भूमिका तय की हो. इस लिए हम निराश नहीं है, हताश नहीं है और हम मजबूती से अभी भी न्याय के प्रति न्यायपालिका के प्रति आस्था रखते हैं. आज नहीं तो कल सब साफ हो जाएगा. जल्द सभी आरोपों से मुक्त होकर जेल से बाहर आ जाएंगे. मुख्य धारा की राजनीति से जुड़कर बिहार में परिवर्तन करेंगे.

फिलहाल जेल में ही रहेंगे आनंद मोहन

बता दें, फिलहाल आनंद मोहन जेल में बंद हैं. बिहार सरकार के तरफ से उन्हें परिहार नहीं दिया जा रहा है इसलिए वह जेल में है. भले ही उन्हें एमपी एमएलए कोर्ट से बरी कर दिया गया हो. लेकिन, आगे कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक फिलहाल उन्हें जेल में रहना होगा. वहीं आनंद मोहन रिहाई की खबर सुनकर काफी संख्या में उनके समर्थक भी कोर्ट पहुंचे थे.

भीड़ ने डीएम जी.कृष्णैया की पीट-पीटकर कर दी थी हत्या

5 दिसम्बर, 1994 की मनहूस दोपहरी थी, जब अधिकारियों की बैठक में शामिल होने के बाद गोपालगंज के जिलाधिकारी जी.कृष्णैया वापस लौट रहे थे. एक दिन पहले ही उत्तर बिहार के एक नामी गैंगस्टर छोटन शुक्ला की गैंगवार में हत्या हुई थी और हजारों का जन समुदाय शव के साथ एनएच जाम कर रोष प्रदर्शन कर रहा था. अचानक नेशनल हाईवे-28 से एक लाल बत्ती वाली कार गुजरती दिखी. उसी गाड़ी में आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया बैठे थे.

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लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी और गाड़ी पर पथराव करना शुरू कर दिया. ड्राईवर और अंगरक्षक ने डीएम को बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. उग्र भीड़ ने कृष्णैया को गाड़ी से बाहर खींच लिया और खाबरा गांव के पास पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी. आरोप था कि शुक्ला के एक भाई ने डीएम की कनपटी में एक गोली भी मार दी थी. उस हत्याकांड ने प्रशासनिक और सियासी हलके में उस वक्त तूफान ला दिया था.

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आनंद मोहन को सुनाई गयी थी मौत की सजा

जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या मामले में पटना की निचली अदालत ने पूर्व सांसद आनंद मोहन को 2007 में फांसी की सजा सुनाई थी. आनंद मोहन के साथ पूर्व मंत्री अखलाक अहमद और अरुण कमार को भी मौत की सजा सुनाई गई थी. बाद में पटना हाईकोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदल दिया. इसी केस में आनंद मोहन की पत्नी और पूर्व सांसद लवली आनंद, छोटन शुक्ला के भाई मुन्ना शुक्ला, शशि शेखर और छात्र नेता हरेन्द्र कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने दिसंबर 2008 में सबूत के अभाव में इन्हें बरी कर दिया था. आनंद मोहन फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गये, लेकिन अदालत ने 2012 में हाईकोर्ट के फैसले को बहाल रखा. बाकी आरोपी बरी हो गये, लेकिन आनंद मोहन अभी भी जेल में हैं, हालांकि उनकी सजा की अवधि पूरी हो चुकी है.

आंध्रप्रदेश के निवासी थे जी. कृष्णैया

आइएएस जी. कृष्णैया के जन्म आंध्रप्रदेश के महबूबनगर जिले ( अब तेलंगाना प्रांत) के एक दलित परिवार में हुआ था. उनका बचपन अभावों में गुजरा. वे 1985 बैच के बिहार कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे. हत्या के वक्त उनकी उम्र 35 साल थी. वे उस गोपालगंज में जिलाधिकारी थे, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद का गृह जिला था. कृष्णैया के बारे में मशहूर था कि वे उच्च कोटि के ईमानदार और अत्यंत सादगी पसंद अधिकारी थे, जिनका दरवाजा हमेशा आम लोगों के लिए खुला रहता था.

Source : News18

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