भले बिहार की राजनीति में क्या–कब हो जाए यह कहना बड़ा मुश्किल सा लगता है लेकिन उत्तर बिहार में एक ऐसा जिला है ना जहां की राजनीति और आंतरिक बात अगर आप समझ गए ना गुरु तो सच में प्रशांत किशोर पार्ट 2 बन जाइएगा बात अपने आपके जिले मुजफ्फरपुर की है।

मुजफ्फरपुर में कुनबे राजनीतिक किला और नए राजनीतिज्ञ हमेशा दो फार में रहते कारण है कुनबा का शिखर पर पहुंचना और स्वार्थ, भूत, भविष्य के साथ सोच की क्षमता की लंबाई आंख की दूरी 25 सेंटीमीटर से ज्यादा होना।

आने वाले समय में बिहार में नगर निगम चुनाव है और प्रशांत जी का साथ में जन सुराज कुछ तो है भाई प्रशांत जी का लॉबी कहता है 40% युवा के साथ 60% बुजुर्ग यानी युवाओं के साथ पर बुजुर्गो का आशीर्वाद भारी लगता है।

एक तस्वीर फेसबुक पर मिली टाइटल को जोड़े तो पांडेय जी और पांडेय जी का मिलन बड़ा जच रहा था। एक पांडेय जी को राजनीति का चाणक्य कहा जाता तो दूसरे ने मुजफ्फरपुर में राजनैतिक सरगर्मी को जरुर गर्मा दिया है। एक लाइन कहे तो बड़ा जचेगा देश के चाणक्य के साथ मुजफ्फरपुर का चंद्रगुप्त।

आने वाले समय में यह उम्मीद लगाया जा रहा है की प्रशांत किशोर मुजफ्फरपुर में एक राजनीतिक किलर की खोज कर रहे थे जो पांडेय जी के रूप में देखने को मिल सकता है। आपकों बता दे की पांडेय जी नगर निगम चुनाव में खुद को प्रत्याशी भी घोषित कर चुके हैं और साथ में आपका बेटा आपके द्वार एक अनोखा आत्मीय कार्यक्रम में बीते कई महीनों से चला रहे हैं और आशीर्वाद भी मिल रहा है अपार।

अब नगर निगम की राजनीतिक घोषणा क्या आने वाले समय में बिहार की राजनीतिक में मुजफ्फरपुर के विचार से पांडे जी का कुनबा खड़े किले पर अपना बुलडोजर चला पाएगा ? यह एक बड़ा सवाल है।

एक राजनीतिक शायरी है

 

हमारी रहनुमाओ में भला इतना गुमां कैसे,

हमारे जागने से, नींद में उनकी खलल कैसे

 

दरअसल निगम चुनाव का जो खलल है ना जिले की राजनितिक करवट को तावे की रोटी जैसी बदलने का एक मात्र एहसास पुत्र से पुत्री, नाती से नतनी और जातीय लॉबी को भी समाप्त करने का बहुत बड़ा हालात पर पावर ब्रेक होगा।

नोट : यह लेखक की निजी राय है।

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