झारखंड हाई कोर्ट का आरक्षण पर बड़ा फैसला आया है। बिहारियों को झारखंड प्रदेश में किसी प्रकार का कोई आरक्षण नहीं मिलेगा। उच्‍च न्‍यायालय के लार्जर बेंच के दो जजों ने इस संबंध में सोमवार को अपना फैसला सुनाया। यह व्‍यवस्‍था बिहार के सभी मूल निवासियों पर लागू होगी। हालांकि फैसला सुनाने वाले हाई कोर्ट के इस लार्जर बेंच के एक जज का आदेश इन दोनों जजों से अलग था। बिहार के रहने वाले रंजीत कुमार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर झारखंड पुलिस बहाली में आरक्षण का लाभ मांगा था। बीते साल अक्‍टूबर में इस मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब हाई कोर्ट के फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि बिहारियों को झारखंड में आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा।

बिहार के स्थाई निवासियों को झारखंड राज्य के नौकरी में किसी भी प्रकार के आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। हाई कोर्ट की लार्जर बेंच ने बहुमत से अपना फैसला सुनाया है। हालांकि एक जज इससे असहमत हैैं। दरअसल, हाई कोर्ट के जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की लार्जर बेंच ने इस मामले की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को अदालत ने अपना फैसला सुनाया। सबसे पहले जस्टिस एचसी मिश्र ने आदेश पढ़कर सुनाया।

उन्होंने अपने आदेश में कहा कि प्रार्थी एकीकृत बिहार के समय से ही झारखंड क्षेत्र में रह रहा है, इसलिए उनसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। यह कहते हुए उन्होंने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और प्रार्थियों को नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया। इसके बाद जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने अपना आदेश पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीर सिंह के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए कहा कि एक राज्य का निवासी दूसरे राज्य में आरक्षण का हकदार नहीं होगा। यही आदेश जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति का भी था। इसके बाद दोनों जजों ने प्रार्थियों की अपील को खारिज करते हुए सरकार के पक्ष को सही माना।

सरकार की दलील : झारखंड के मूल निवासियों को ही आरक्षण

पूर्व में सुनवाई के दौरान पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार ने अदालत को बताया था कि एकीकृत बिहार या 15 नवंबर 2000 से राज्य में रहने के बाद भी वैसे लोग आरक्षण के हकदार नहीं होंगे, जिनका ओरिजिन (मूल) झारखंड नहीं होगा। आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हें ही मिलेगा जो झारखंड के ओरिजिन (मूल) होंगे। जहां तक 18 अप्रैल 2016 से लागू स्थानीय नीति का सवाल है। जो लोग इसकी परिधि में आते हैं। उन्हें सिर्फ सामान्य कैटगरी में ही विचार किया जा सकता है।

झारखंड सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के बीर सिंह वर्सेज केंद्र सरकार के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा है कि माइग्रेटेड (बाहरी) राज्य से आने वाले लोगों को दूसरे राज्य में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में एकलपीठ का आदेश बिल्कुल सही है। दरअसल एकलपीठ ने पूर्व में वादियों की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उनके सभी सर्टिफिकेट बिहार के हैं, ऐसे में उन्हें राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है। इस दौरान अपर महाधिवक्ता मनोज टंडन ने सहयोग किया था।

वादी की दलील : झारखंड में रहने की वजह से मिले आरक्षण का लाभ

प्रार्थी की ओर से कहा गया था कि एकीकृत बिहार, वर्तमान बिहार और वर्तमान झारखंड में उनकी जाति एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में शामिल है, इसलिए वर्तमान झारखंड में उन्हें एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में आरक्षण मिलना चाहिए। उनका कहना था कि पिछले कई सालों से वे झारखंड क्षेत्र में रह रहे हैं और सिर्फ इसलिए उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वो वर्तमान में बिहार राज्य के स्थाई निवासी हैं। उनकी ओर से अदालत को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में जो अधिकार मिला हुआ है। उसके अनुसार उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।

यह है मामला

दरअसल झारखंड में सिपाही की बहाली हुई थी। इस दौरान बिहार के स्थाई निवासियों ने आरक्षण का लाभ लिया था। बाद में मामला उजागर होने पर उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद पंकज कुमार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। एकलपीठ ने सरकार के फैसले खारिज करते हुए उन्हें बहाल करने का निर्देश दिया। इसके बाद सरकार ने खंडपीठ में अपील दाखिल की थी। वहीं, रंजीत कुमार सहित सात अभ्यर्थियों ने पुलिस में बहाली आरक्षण का लाभ नहीं मिलने पर हाई कोर्ट की शरण ली थी। एकलपीठ ने सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी थी। इन्होंने भी खंडपीठ में अपील दाखिल की थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए खंडपीठ ने सभी मामलों को एक साथ टैग करते हुए 9 अगस्त 2018 को लार्जर बेंच में भेजने की अनुशंसा की थी। इसके बाद लार्जर बेंच में मामले की सुनवाई हुई।

झारखंड हाई कोर्ट में आरक्षण मामला : कब कब क्या हुआ :

  1. वर्ष 2017 में सिपाही की बहाली हुई
  2. आरक्षण का लाभ लेने वाले बिहार को सफल उम्मीदवारों को सरकार ने बर्खास्त किया
  3. 2018 में एकलपीठ में बर्खास्तगी को चुनौती दी गई
  4. एकलपीठ ने याचिका खारिज कर सरकार को नियुक्त करने का आदेश दिया।
  5. एकलपीठ के आदेश के खिलाफ सरकार खंडपीठ गई
  6. 09 अगस्त 2018 : खंडपीठ ने तीन जजों की बेंच में मामला स्थानांतरित किया
  7. 18 अक्टूबर 2019 : तीन जजों की बेंच ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा
  8. 24 फरवरी 2020 : तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया

हाई कोर्ट के फैसले से बिहारियों में मची खलबली

इधर उच्‍च न्‍यायालय का फैसला आने के बाद लोगों में खलबली मच गई है। बिहार से वर्ष 2000 में अलग होकर बने नए झारखंड राज्‍य में आज भी अधिकतर आबादी बिहारियों की है। ऐसे में हाई कोर्ट के इस फैसले से बड़े पैमाने पर बिहारियों को नुकसान उठाना पड़ेगा। एकीकृत बिहार के समय से ही झारखंड में रहने वाले बिहारियों के लिए उच्‍च अदालत का यह फैसला भारी पड़ेगा।

अक्‍टूबर 2019 में इस मामले की सुनवाई करते हुए तत्‍कालीन कार्यवाहक मुख्‍य न्‍यायाधीश एचसी मिश्र, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बहस के दौरान याचिकाकर्ता रंजीत कुमार की ओर से यह दलील दी गई थी कि एकीकृत बिहार, अभी के बिहार और झारखंड में उनकी जाति पिछड़ा वर्ग के रूप में अधिसूचित है। ऐसे में झारखंड में भी उन्‍हें इसका लाभ मिलना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने कहा था कि वह पिछले कई वर्षों से झारखंड में रह रहा है। ऐसे में नया राज्‍य बनने के बाद आरक्षण की पुरानी व्‍यवस्‍था लागू रहनी चाहिए। दलील दी गई कि सिर्फ बिहार का स्‍थाई निवासी होने के चलते उन्‍हें झारखंड में आरक्षण का लाभ लेने से वंचित नहीं किया जा सकता। इस मामले में झारखंड सरकार की ओर से बहस के दौरान दलील का विरोध किया गया। सरकार ने कहा कि दूसरे राज्‍यों के लोगों को झारखंड की आरक्षण नीति का लाभ नहीं दिया जा सकता। बिहार के स्‍थाई निवासी को यहां आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता।

Input : Dainik Jagran

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