जमीन संबंधी एक मुकदमे में बिहार में आरा की अदालत ने 108 साल बाद फैसला सुनाया है। केस लड़ रहे वादी की यह चौथी पीढ़ी है, जबकि उनके वकील की तीसरी पीढ़ी है। न्याय में दशकों की देरी के बावजूद कोईलवर के अतुल सिंह और उनका परिवार संतुष्ट है। अब अतुल आरा के व्यवहार न्यायालय में एडीजे-7 श्वेता सिंह के फैसले की कापी लेकर एसडीएम कोर्ट में जमीन को मुक्त कराने के लिए जाएंगे। कोईलवर से बबुरा जाने वाली सड़क पर तीन एकड़ जमीन अभी भी परती पड़ी है। अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि नौ एकड़ जमीन की कानूनी लड़ाई 108 साल पहले 1914 में शुरू हुई थी।

कुल नौ एकड़ जमीन मूलत: कोईलवर निवासी नथुनी खान की थी। 1947 में देश बंटवारे के वक्त इनके वंशज पाकिस्तान चले गए, इनके पीछे जमीन के दो खरीदार मुकदमा लड़ते रहे। दरअसल, 1911 में नथुनी के निधन के बाद पत्नी जैतून खान, बहन बदलन एवं बेटी बीबी सलमा के बीच बंटवारे का विवाद हो गया। कोर्ट में 1914 में वाद दायर किया गया। इस बीच जमीन के एक हिस्सेदार से कोईलवर के रईस स्व. दरबारी सिंह ने तीन एकड़ जमीन खरीद ली। वहीं, जैतून खान की पत्नी से दूसरी पार्टी ने पूरी जमीन खरीद ली। इस पर दोनों खरीदारों में मुकदमा शुरू हो गया। तत्कालीन दंडाधिकारी ने धारा 145/146 के तहत 14 दिसंबर 1931 को पूरी नौ एकड़ विवादित जमीन को जब्त करने का आदेश दे दिया। तब स्व. दरबारी सिंह ने जमीन को मुक्त कराने के लिए कोर्ट में वाद दाखिल किया। 17 मार्च 1992 को अदालत ने पक्ष में जमीन मुक्त करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ दूसरे पक्ष के लोगों ने अपील दायर की थी।

अधिवक्ता गणोश पांडेय और सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि जज श्वेता सिंह ने इतने पुराने मामले को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत की और कोरोना में भी केस की लगातार सुनवाई की। कई कागज दीमक चाट गए थे और उन्हें किसी तरह जोड़ कर उनका अवलोकन किया गया।

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अतुल कुमार सिंह ने बताया कि उनकी मां मुन्नी देवी को जब फैसले की जानकारी हुई तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे, उन्होंने इस जमीन के लिए पिता जी और बाबा के संघर्ष को देखा है।

14 दिसंबर, 1931 को सरकार ने जब्त कर ली थी पूरी नौ एकड़ जमीन

मूल मालिक पाक गए, दो खरीदार मुकदमा लड़ते रहे, कोईलवर में चौथी पीढ़ी को तीन एकड़ जमीन पर कब्जा देने का हुआ आदेश

मुवक्किल की चार पीढ़ी और अधिवक्ता की तीन पीढ़ी केस में

अतुल सिंह के परदादा स्व. दरबारी सिंह ने जमीन खरीदी थी और लगभग 40 साल केस लड़ा। फिर उनके पुत्र स्व.राजनारायण सिंह इस केस को लेकर आगे बढ़े, उनके बाद अतुल के पिता अलखदेव नारायण सिंह ने केस को देखा। वहीं, इस केस को लड़ रहे अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह के दादा स्व.शिवव्रत नारायण सिंह स्व.दरबारी सिंह के वकील थे। उसके बाद उनके पुत्र अधिवक्ता स्व. बद्री नारायण सिंह ने इस केस को लड़ा। फैसले के समय स्व. बद्री नारायण के पुत्र सत्येंद्र नारायण केस को देख रहे थे।

Source : Dainik Jagran

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