राज्य के दो लाख हेक्टेयर खेतों में फसल की जगह कंक्रीट उग आए हैं। यह भी कह सकते हैं कि शहरीकरण की तेज रफ्तार से खेती की दो लाख हक्टेयर जमीन घट गई। शहरी जनसंख्या में वृद्धि के कारण खेती में उपयोग होने वाले इतने रकबे का उपयोग आवासीय या व्यावसायिक कार्य में होने लगा।

कृषि विभाग के अधिकारी आकलन के लिए जब खेतों में उतरे तो कृषि योग्य दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन कम हो गई। वर्ष 2020 में राज्य में 42.02 लाख हेक्टेयर में खेती हुई थी। उस समय का यह रकबा उस साल के लिए सही नहीं था, क्योंकि वर्षों से अनुमान के आधार पर ही खेती का लक्ष्य तय हो रहा है। वर्षों पुराने रकबे के आधार पर हर बार थोड़ा कम-अधिक कर खेती का लक्ष्य तय होता रहा है। इस बार सही आकलन किया तो पता चला कि मात्र 39 लाख 72 हजार 488.52 हेक्टेयर में खरीफ की खेती होगी।

खास बात यह है कि कुल रकबा घटने से धान की खेती का रकबा बढ़ गया। दो साल पहले 33 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती थी। इस साल इसका रकबा बढ़कर 34 लाख 69 हजार 150.52 हेक्टेयर हो गया। लेकिन मक्का की खेती का रकबा साढ़े चार लाख से घटकर तीन लाख 34 हजार हेक्टेयर हो गया।

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राज्य में कृषि का रकबा और उत्पादन के लक्ष्य के लिए कृषि विभाग ने इस बार नया प्रयोग शुरू किया है। इस नये प्रयोग से खेती की सही तस्वीर सामने आई। जिन पंचायतों की जिम्मेदारी जिन कर्मियों को दी गई है, वह अपने क्षेत्र के हर गांव में गये। वहां किसानों से बात कर इस साल कितने रकबे में धान और मक्के के साथ दूसरी फसलों की खेती की जानी है इसकी जानकारी कर्मियों ने संबंधित एप पर डाली। इस तरह खरीफ में खेती का इस साल का लक्ष्य तय हो गया।

उत्पादन का भी सही आंकड़ा जल्द सामने आएगा

विभाग ने इस काम में चार हजार कर्मियों को लगाया था। अब रकबा एप पर आ जाने के बाद जिला कृषि अधिकारी उस जिले में फसलों की उत्पादकता के आधार पर उत्पादन का लक्ष्य तय कर मुख्यालय को रिपोर्ट भेजेंगे। मुख्यालय का काम सिर्फ सभी जिलों से मिले आंकड़े को एक साथ कर राज्य का लक्ष्य तय कर देना है। इसी के साथ उत्पादन का भी सही आंकड़ा जल्द ही सामने आ जाएगा।

Source : Hindustan

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