लिच्छवी कहलाने वाला यह इलाका शुरू से सरस रहा है। परदेसियों को गले लगाने में यहां के लोगों की सानी नहीं है। मुजफ्फरपुर में 1957 में हुए दूसरी लोकसभा के उप चुनाव में ही गुजरात के अशोक रंजीतराम मेहता यहां से सांसद चुने गए थे। उनके बाद जॉर्ज फर्नांडिस तो पांच बार यहां से दिल्ली पहुंचे। अबतक लोकसभा के सोलह बार हुए चुनावों में से दस बार बाहर के लोगों ने ही बाजी मारी। उत्तर बिहार की आर्थिक राजधानी मुजफ्फरपुर शुरू से बिहार का प्रमुख राजनीतिक केन्द्र रहा है। पचास और साठ के दशक में जब पूरे देश में कांग्रेस का बोलबाला था तो 1957 में यहां आचार्य जीबी कृपलानी की पार्टी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का पताका लहरा गया था। 1957 के चुनाव में कांग्रेस के अवधेश्वर प्रसाद सिन्हा ने जीत हासिल की थी। मगर उसके ठीक बाद उनका निधन हो गया। उप चुनाव में गुजरात से आए एआर मेहता उम्मीदवार बनाए गए और विजयी हुए। हालांकि उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दरियादिली दिखाते हुए पीएसपी के सामने कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं उतारा।
मुजफ्फरपुर के नाम से सात लोकसभा सीटें थीं
1952 में यह मुजफ्फरपुर ईस्ट हुआ करता था। मुजफ्फरपुर के नाम से सात लोकसभा सीटें थीं। मुजफ्फरपुर सेन्ट्रल, मुजफ्फरपुर कम दरभंगा वन और टू (दो सीटें), मुजफ्फरपुर नार्थ ईस्ट, मुजफ्फरपुर ईस्ट और मुजफ्फरपुर नार्थ वेस्ट वन और टू (दो सीटें)। इनमें मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, शिवहर और दरभंगा और मधुबनी के कुछ हिस्से शामिल थे। 1957 में मुजफ्फरपुर लोकसभा कहलाया।
इस बार एनडीए व महागठबंधन में कड़े मुकाबले के आसार
मुजफ्फरपुर में कोई एक या दो जाति कभी भी निर्णायक भूमिका में नहीं होती है। इसलिए किसी के साथ किसी का जुड़ना अधिक महत्वपूर्ण होता है। इस बार एनडीए और महागठबंधन में यह समीकरण लगभग नेक टू नेक है। संख्या बल में भूमिहार, यादव, वैश्य, मुस्लिम, मल्लाह(निषाद) और कुशवाहा निर्णायक मोड में रहते हैं। इसमें जो कोई दूसरे के घर में सेंध लगाने में सफल रहता है,बाजी मार ले जाता है।
मुकाबला होगा दिलचस्प
इस बार यहां चुनावी बिसात लगभग बिछ गई। भाजपा ने फिर से अपने सांसद अजय निषाद को मैदान में उतारा है। महागठबंधन में यह सीट वीआईपी के खाते में गई है। वीआईपी ने डॉक्टर राजभूषण चौधरी निषाद को उम्मीदवार बनाया है। दोनों की उम्मीदवारी स्पष्ट होने के बाद चुनावी घमासान शुरू हो गया है। भाजपा अपनी सीट बचाने के लिए जंग लड़ेगी, जबकि यहां का परिणाम वीआईपी का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। शुरुआती दौर में वीआईपी के सुप्रीमो मुकेश सहनी ने यहीं से हुंकार भरी थी।
कौन जीते कौन हारे
2014
जीते:अजय निषाद, भाजपा 4,69,295
हारीं:अखिलेश प्रसाद सिंह,कांग्रेस,246873
2009
जीते:जयनारायण निषाद,जदयू,195091
हारे:भगवान लाल सहनी,लोजपा, 147282
2004
जीते: जॉर्ज फर्नांडिस,जदयू, 370127
हारे: भगवान लाल सहनी,राजद,360434
1999
जीते:जयनारायण निषाद, जदयू, 363820
हारे: महेन्द्र सहनी,राजद, 303100
Input : Hindustan