पटना. बिहार के शुभम कुमार ने संघ लोक सेवा आयोग में पहला स्थान प्राप्त किया था. शुभम ने न सिर्फ अपने माता-पिता बल्कि पूरे प्रदेश के लोगों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. बधाइयों का क्रम जब शुरू हुआ तो मीडिया ने फुल कवरेज दिया और उनकी हर उस बात को सामने लाया जो आने वाले समय में अन्य छात्र-छात्राओं के लिए भी प्रेरणा का काम करे. शुभम ने स्वयं भी इस उपलब्धि को पूरे बिहार के लोगों का कहा और अपनी बातों से बिहारी व बिहारियत (प्रतिभाशाली व संघर्षशील) के जज्बे को भी अपनी जुबां से बयां भी किया. IAS टॉप करने के बाद उन्होंने अपने संबोधनों में इस बात का भी जिक्र किया कि कैसे एक बिहारी छात्र अपने गृह प्रदेश से बाहर कई स्तरों पर अपमानित होने के बाद भी अ पीछे नहीं हटता और लक्ष्य प्राप्ति तक नहीं रुकता. जाहिर है जब उनकी बातों में कहीं भी कोई अभिमान या किसी तरह के भेदभाव होने की बात सामने आई. बीते 24 सितंबर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने सिविल सेवा परीक्षा-2020 का परिणाम आया है तब सैकड़ों इंटरव्यू दे चुके शुभम ने कभी भी अपनी जाति का जिक्र नहीं किया. लेकिन, आपको दाद देनी पड़ेगी ऐसी सियासी नजर की जिसने शुभम को बिहारी नहीं रहने दिया बल्कि उनकी अर्जित की हुई उपलब्धि को भी जाति, भेदभाव, अगड़ा-पिछड़ा जैसे शब्दों में बांट दिया.

यूपीएससी टॉपर शुभम कुमार को इंटरव्यू में प्राप्त अंक पर जातिवादी राजनीति.

दरअसल संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने सिविल सेवा परीक्षा-2020 के कट ऑफ मार्क्स और कैंडिडेट्स के व्यक्तिगत अंक जारी कर दिया है. शुभम कुमार ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित सिविल सर्विसेज परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ 52.04 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं. वहीं, दूसरे स्थान पर रहीं जागृति अवस्थी को 51.95 प्रतिशत अंक मिले. विशेष बात यह है कि शुभम कुमार को इंटरव्यू में टॉप 10 में सबसे कम अंक मिला, लेकिन बावजूद इसके वह सिविल सर्विसेज परीक्षा में टॉपर रहे. इसका मुख्य कारण रहा शुभम को लिखित परीक्षा में बेहतरीन अंक आए जिससे उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की.

शुभम कुमार को 2025 अंको की परीक्षा में सबसे अधिक कुल 1054 अंक मिले हैं. शुभम को लिखित परीक्षा में 878 और इंटरव्यू में 176 अंक मिले. टॉप 10 में जहां शुभम को इंटरव्यू में सबसे कम अंक मिला, वहीं रिटेन में सबसे अधिक अंक मिले. जाहिर है एक आम आदमी तो यही समझ रहा था कि शुभम कलम का धनी है, लेकिन अपनी बातों को साक्षात्कारकर्ताओं के समक्ष रख पाने में बहुत खरा नहीं उतरे, इसलिए उन्हें कम अंक मिले. बहरहाल, यहां तक तो ठीक था, लेकिन जैसे ही यह बात सामने आई कि शुभम कुमार कुशवाहा, यानी ओबीसी समाज से आते हैं, इसे राजनीति ने अपने चश्मे से देखना शुरू कर दिया.

इस सियासत में सबसे आगे वह पार्टी नजर आ रही है जो कह रही है कि वह बदल गई है और जातिवादी नहीं बल्कि सर्वसमाज की पार्टी है. जीहां, हम बात कर रहे हैं लालू प्रसाद यादव के नायकत्व से आगे बढ़ चुके उनके सुपुत्र तेजस्वी यादव की अगुवाई वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की. तेजस्वी यादव खुद को सभी वर्गों का प्रतिनिधि बताते रहे हैं, जिसका परिणाम उनको बीते विधानसभा चुनाव में मिला भी. हर जाति समुदाय के युवाओं ने तेजस्वी यादव को वोट किया और राजद बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. लेकिन, तेजस्वी के बेहद करीबी माने जाने वाले उनके रणनीतिकार संजय यादव ने यूपीएससी परीक्षा में मिले अंकों को भी जातिवादी नजरिये से एंगल ढूंढा और अंत में आपके-हमारे सामने ले भी आए.

खुद को तेजस्वी यादव का राजनीतिक सलाहकार कहने वाले संजय यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा, ”इस बार UPSC परीक्षा OBC वर्ग के कुशवाहा जाति से आने वाले शुभम कुमार ने टॉप किया. उन्हें Top-10 में लिखित परीक्षा में सबसे अधिक अंक 878, लेकिन इंटरव्यू में सबसे कम 176 अंक प्राप्त हुए. वहीं Top-10 में लिखित में सबसे कम 816 अंक लाने वाली अल्पा मिश्रा को इंटरव्यू में सबसे अधिक 215अंक मिले.” जाहिर है संजय यादव के इस सियासी एंगल को कुछ लोग समझ गए और कुछ नहीं भी समझे.

पर संजय यादव को लोगों के जेहन में कुछ बात भर देनी थी सो उन्होंने फिर ट्वीट किया और आगे लिखा, ”5वीं रैंक प्राप्त करने वाली ममता यादव को लिखित में 855 और इंटरव्यू में मात्र 187 अंक मिले जबकि उनसे लिखित में 839 कम अंक प्राप्त करने वाली तीसरी रैंक अंकिता जैन को इंटरव्यू में 212 तथा चौथी रैंक यश जलुका को लिखित में 851 और इंटरव्यू में 195 अंक मिले. यह संयोग है या प्रयोग!”.

जाहिर है ट्विटर पर इतना भर एंगल निकलना था कि सोशल मीडिया पर जातिवादी मानसिकता के लोगों ने अपनी ‘बौद्धिकता’ दिखानी शुरू कर दी. कोई एकलव्य के अंगूठे से तुलना करने लगा तो कोई मनुवादी व्यवस्था को कोसने लगा. सोशल मीडिया पर शुभम के अंक पत्र के साथ ही टॉप 10 में आने वाले सफल अभ्यर्थियों के अंकों के स्क्रीनशॉट शेयर किए जाने लगे.

सोशल मीडिया जातिवादी टिप्पणियों से भर गए और शुभम एक बिहारी नहीं, सभी बिहारियों का गर्व नहीं बल्कि अब कुशवाहा जाति यानी ओबीसी समाज के गौरव कहलाए जाने लगे. शायद शुभम कुमार ने कभी भी खुद को जातिवादी नजरिये से नहीं देखा होगा तभी वह पूरे बिहार के गौरव बन पाए. उनके साथ उनके चाहने वाले सभी परिजनों, पड़ोसियों व मित्रों (जाति बंधन से परे) का आशीर्वाद और दुआएं होंगीं तभी वह इतना आगे बढ़ पाए.

बहरहाल, सोशल मीडिया पर शुभम के जरिये संजय यादव ने जातिवादी आग तो लगा दी, लेकिन उन्हें इसी सोशल मीडिया पर काफी लताड़ (बिहारी भाषा में इसका मतलब काफी भीतर तक शाब्दिक कुटाई) भी लगी. किसी ने कहा यादव जी सोशल मीडिया के बाहर निकलिए, आंखें खोलिए देखिए भारत खुला है. एक व्यक्ति ने लिखा, बिहार के बड़ी संख्या में लोग पलायन कर गए हैं. आप जातिवादी राजनीति कर रहे हैं. जब हर एक व्यक्ति शिक्षित हो जाएंगे आप की राजनीतिक ठंडे बस्ते में चले जाएगी. किसी ने उन्हें प्रवासी कहकर भी संबोधित किया और जातिवादी करार दिया.

बता दें कि तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने इन्हीं संजय यादव के लिए ‘प्रवासी सलाहकार’ शब्द का इस्तेमाल किया था. तेज प्रताप यादव का इशारा यही था कि यह व्यक्ति हम दो भाइयों (तेजस्वी यादव- तेज प्रताप यादव) के बीच दरार पैदा कर कर रहा है.

एक बात यहां बताना आवश्यक है क्योंकि बिहार को जाति की राजनीति ने काफी पीछे रखा है. दरअसल शुभम कुमार उस आर्थिक वर्ग से आते हैं जहां जातियों के बंधन टूट जाते हैं. उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई पूर्णिया जिले के परोरा स्थित विद्या विहार से की है जहां डे स्कॉलर यानी अपने घर से स्कूल जाने वाले छात्र के एक महीने की फीस भी 10000 रुपये महीने से अधिक है,

सबसे खास बात जिन शिक्षकों से शुभम सबसे अधिक करीब रहे हैं उनके नाम सुन शायद संजय यादव को शर्म भी आ जाए.  दरअसल शुभम ने विद्या विहार में अपने संबोधन में जिन शिक्षकों के नाम लिये उनके गोपाल झा सर (ब्राह्मण), निखिल रंजन सर (यादव) सोनाली राय (ब्राह्मण) और वासुदेवन सर (दक्षिण भारतीय ब्राह्मण) प्रमुख रहे. सबसे खास बात यह है कि इन चारों शिक्षकों  ने शुभम कुमार की जाति नहीं बल्कि उनकी प्रतिभा देखकर ही अपनी गाइडलाइन व आशीर्वाद दिए.

खैर, संजय यादव ने अपनी सियासी चाल चल दी और बिहार के अभिमान को जाति में बांट भी दिया. अपनी जातिवादी सियासत के मामले में वह खुद को कामयाब भी कह सकते हैं क्योंकि उन्होंने बिहार में एक बार फिर अगड़ी-पिछड़ी राजनीति की बहस छेड़ दी है. पर सच यह भी है कि बिहारी होने के गौरव और बिहारीपन के अभिमान को उन्होंने अपनी इस कुत्सित सोच से चकनाचूर भी कर दिया है.

Source : News18

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