नगर निकायों में आरक्षण मामले की सुनवाई जारी है। बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता और राज्य चुनाव आयोग की ओर से दलील पेश की गई। इसपर गुरुवार को राज्य सरकार की ओर से जवाब दिया जाएगा। सुबह साढ़े दस बजे शुरू हुई सुनवाई देर शाम पांच बजकर चालीस मिनट तक चली।
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल तथा न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई की। आवेदकों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा सहित हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट मृगांग मौली, अधिवक्ता एसबीके मंगलम, रवि रंजन ने कोर्ट को बताया कि सरकारी नौकरियों में आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाना है जबकि नगर निकायों में आरक्षण देने के लिए सिर्फ राजनीतिक पिछड़ेपन को देखना है। उनका कहना था कि पिछड़ी जातियों को कैसे और किस प्रकार से आरक्षण देना है, इस बारे में कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने नगर निकायों में आरक्षण देने के पूर्व ट्रिपल टेस्ट करने के बाद ही आरक्षण देने का आदेश दिया है। उनका कहना था कि राज्य में जिस आधार पर सबसे पहले 2005 में पंचायत चुनाव तथा 2006 में म्यूनिसिपल चुनाव में आरक्षण दिया गया, जो आज तक लागू है। बिहार में करीब तीन सौ पिछड़ी जातियां है। किस जाति के लोग किस वार्ड में हैं, इसका कोई डाटा सरकार के पास नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन जांच अर्हता का पालन कर ओबीसी के पिछड़ेपन पर आंकडे जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने व आयोग की सिफरिशों के बाद प्रत्येक निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने का आदेश दिया है। आवेदकों की ओर से दलील पूरी होने के बाद राज्य चुनाव आयोग की ओर से कोर्ट को बताया गया कि नगर निकायों में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार से पत्राचार किया गया था। अब गुरुवार को राज्य सरकार की ओर से दलील पेश की जाएगी।
आदेश का उल्लंघन याचिका कर्ताओं का कहना है कि प्रत्येक नगरपालिका की जनसंख्या में पिछड़ी जातियों के अनुपात में ही पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाना है। लेकिन राज्य सरकार नगरपालिका की जनसंख्या में पिछड़ी जाति की जनसंख्या का अनुपात निर्धारित किये बिना ही बीस प्रतिशत सीट पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिया है।
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि राजनीतिक पिछड़ेपन का डाटा संग्रह करने के बाद ही पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करना है। वार्डों की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण देना है ना कि पूरे राज्य की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण देना है। यही नहीं, किसी भी सूरत में बीस प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं देना है। लेकिन राज्य सरकार सूबे की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दे रही है। किसी-किसी वार्ड में पिछड़ी जाति का पांच प्रतिशत से कम जनसंख्या होने के बावजूद आरक्षण दिया गया है।
Source : Hindustan